लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में,
किसकी बनी है आल में नापाएदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसे,
इतनी जगह है, दिले दागदार में
उम्र दराज मांग के लाए थे चार दिन,
दो आरजू में कट गए, दो इंतजार में।
लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े बयार में।
बहादुर शाह जफर के बोल लिए इस फिल्म गीत की लाइनें जब चम्पक ने अपने मित्रों को सुनाई, तब उन्होंने कहा, चम्पक अब तुम क्या कहना चाहते हो? तब वह बोला, भाई कहना तो बहुत कुछ चाहता हूं, किन्तु उसके पहले जो सोच रहा हूं, क्या वो बयां कर दूं? स्वागत है चम्पक, तुम्हारी सोच चिन्तनकारी होती है। ऐसा बाबूलाल, हौसला अफजाई का शुक्रिया, चम्पक ने कहा मित्रों 2014 के पहले का वो दौर था, जब हम भारतीय वाकई बड़े दु:खी थे। फैक्ट्रियों में काम चल रहा था तो क्या मजदूर बहुत दु:खी थे? वे क्या उन्हें मिलने वाले वेतन या मजदूरी से दु:खी थे? सरकारी कर्मचारियों की सैलेरी समय-समय पर आने वाले वेतन आयोगों से बढ़ रही थी, क्या वह बुरे दिन थे? समय-समय पर महंगाई भत्ते मिल रहे थे, नौकरियां खुली हुई थीं। सवर्ण-दलित, हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख-इसाई सभी के लिए बैंकों में, मीडिया क्षेत्र में, रेल्वे व अन्य क्षेत्रों में नौकरी थी। निजी क्षेत्र उफान पर थे, मल्टी नेशनल कम्पनियां आ रही थी, जाब मिल रहे थे। एक से बढक़र एक नामी कम्पनियों की कारें आ रही थीं और कार प्रेमी पर्चेस भी कर रहे थे। क्या वह समय खराब था? याने कि हर तरफ, हर जगह क्या अथाह दु:ख पसरा हुआ था? क्या लोगबाग नौकरी मिलने से दु:खी थे? रियल स्टेट प्रापर्टी, सर्राफा का मार्केट दौड़ रहा था, क्या वह अच्छा नहीं था?
बाबूलाल ने यह सब सुना और ठहाके लगाकर हंस पड़ा। फिर बोला- अब मैं जानता हूं, तुम क्या बोलना चाहते हो? यही ना कि फिर ‘अच्छे दिन’ का स्लोगन देश भर में गूंजा। जिसके गुंजायमान से जादुई चमत्कार हुआ। जनता ने चमत्कार को नमस्कार किया। उसके बाद से विगत छह सालों में जनता चमत्कृत है और सिलसिलेवार राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक चमत्कारों के दर्शन कर रही है। लगभग 10 फीसदी की रफ्तार से चलने वाली तीव्र अर्थव्यवस्था शून्य पर पहुंच गई है। कालाधन तो विदेशों से नहीं आया, देश मेंं खानदानी परिवारों के अनेक वर्षों से जमा खजाना खाली हो गया है। बाजीगर का ही कमाल है कि चोर जनता जो कालाधन छिपाकर बैठी थी, उसे सर्वज्ञानी बाजीगर ने एक ही मास्टर स्ट्रोक में बाहर ला दिया। यह अविस्मरणीय नोटबंदी का खेल था। ऐसे तो बाजीगर ने एक से बढक़र एक उम्दा खेल खेला। जिसे सब जानते ही हैं। जनता अभी तक समझ नहीं पा रही है कि उसे ताली बजाना चाहिए या माथा पीटना चाहिए।
अर्थव्यवस्था हाशिए में, कोरोना ऊंचाई पर
मित्र बाबूलाल, हमारा देश और हमारे देश की राजनीति अनेक प्रकार की संभावनाओं से भरी हुई है। कई क्रिएटिव और फिक्सिनियस इतिहासकारों का इसी संदर्भ में कहना है- ‘नथिंग इज इंपासिबल।’ बस आदमी पानीदार होना चाहिए।
देश आज डरावने कोरोना काल में सफर कर रहा है। देश और व्यक्ति की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। किन्तु सरकारी खर्च बढ़ते ही जा रहा है। कोविड-19 के संक्रमण से उत्पन्न लाकडाउन में थमी अर्थव्यवस्था और सरकारी राजस्व में आई गिरावट ने आने वाले दिनों की दुश्वारियों की आशंका को मजबूत कर दिया है। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों में भारत अब विश्व में पांचवे नंबर पर आ गया है और हमारा शहर भी कोरोना संक्रमण बाबत प्रगति कर रहा है। शायद कुछ अकल्पनीय हो रहा है। अनलॉक से हालात और बेकाबू होते जा रहे हैं।
कोविड-19 वायरस से संक्रमितों की बड़ी तादात से भारत पूरी तरह से अनियंत्रित दिशा की ओर अग्रसर है। केन्द्र सरकार के लिए यह इम्तिहान की घड़ी है। किन्तु सरकार का नेतृत्व करने वाली भाजपा अपना चुनावी हित साधने में लगी है। भारत के चुनावी इतिहास में एक नए युग की शुरूआत हो गई है। भाजपा ने वर्चुअल रैली के जरिए बिहार के आगामी चुनाव के प्रचार का शंखनाद कर दिया है। न धूल उड़ी, न बजे ढोल-नगाड़े, न गाडिय़ों का काफिला दिखा और न ही लाउडस्पीकर की कानफोड़ आवाज सुनाई दी और रैली भी सम्पन्न हो गई थी। वर्चुअल रैली को शहरवासी, गांववासी, वनवासी, पर्वतवासी जहां-जहां मतदाता स्थित है, वह वहां लगे टेलिविजन से नेताओं के भाषणों को उन्होंने सुना, उन्हें देखा। पार्टी नेताओं के कटआऊट्स को देखा जा सकता है। इस तरह का वर्चुअल प्रचार संसाधन लोगों को रैलियों का एहसास कराता है। आर्थिक मंदी से देश गुजर रहा है, किन्तु राजनीतिक दलों के पास बहुत धन है और भाजपा तो सबसे धनाढ्य पार्टी है।
म्युनिसिपल स्कूल में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा किन्तु स्कूल बेग का वजन कम होगा?
सर्वेश्वर दास स्कूल की शिक्षा और उसकी भव्य बिल्डिंग ऐतिहासिक है। यहां से पढक़र निकलने वाले अनेक विद्यार्थियों की उपलब्धियां भी पुष्टि करती है कि म्युनिसिपल स्कूल की शिक्षा, उससे जुड़े शिक्षकवृंद और आदर्श विद्यार्थियों की बड़ी संख्या ने देश, समाज में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है। महापौर हेमा देशमुख की भावना व संवेदनशीलता म्युनिसिपल स्कूल से स्वभाविक रूप से इसलिए भी महत्व रखती है कि उनके ससुर स्व. श्री नेकराम देशमुख बहु-आयामी ताजिंदगी इस स्कूल में शिक्षकीय सेवा देकर शिक्षा को गुणवत्तायुक्त बनाने में अहम भूमिका निभाई है। हेमा एस. देशमुख ने सरकार की मंशा अनुसार म्युनिसिपल स्कूल का अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदाय करने के ध्येय से चयन कर अच्छा कदम उठाया है। अब यहां अंग्रेजी माध्यम से गरीब परिवारों के बच्चों को कक्षा पहली से बारहवीं तक नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त होगी। इसके लिए श्रीमती देशमुख व्यक्तिगत रूचि लेकर पवित्र उद्देश्य को सार्थक करने में जुट गई हैं।
ध्यान रहे कि बालमंदिर, प्राथमिक व पूर्व व उच्च. माध्यमिक शाला का शैक्षणिक स्तर ऊंचा उठाने केन्द्र व अभी तक की राज्य सरकारों ने बहुत चिन्तन-मनन किया है, किन्तु जमीनी स्तर पर श्रेष्ठ शैक्षणिक कार्यों का क्रियान्वयन नहीं हुआ, जो खेदजनक है।
सरकार का शिक्षा विभाग ही वास्तव में प्रशिक्षित नहीं है। अभी तक देखने में यही आया है कि नन्हें विद्यार्थियों की क्षमता, ज्ञान या सूचना क्षेत्र में ऊंचा उठाने का ईमानदार प्रयास नहीं हुआ है, बल्कि इसके विपरीत विद्यार्थियों की स्कूल बैग जरूर वजनदार होती है। इस पर से लगता है कि शिक्षा विभाग में किसी वजनदार व्यक्ति ने भारी स्कूल बैग पर कहीं पी.एच.डी. तो नहीं किया है? बच्चों की पीठ और उनके नाजुक हाथों का तो किसी ने चिन्तन ही नहीं किया। ज्ञान तो जल से भी पतला होता है, ऐसा कहा जाता है। जो पतला होता है, उसका वजन भी नहीं होता। किन्तु लगता है स्कूल शिक्षा विभाग ने ज्ञान के बदले स्कूल बैग को अधिक महत्व दिया है।
अब तीसरी आंख से निगरानी होगी
जिले में पुलिस कप्तान फार्म में हैं। अपने अधीनस्थ पुलिस को आधुनिक टेक्नालाजी से लैस कर उन्हें स्मार्ट, सक्सेज व डिफेन्सिव बनाने की दिशा वे चल पड़े हैं। पुलिस थानों को डिजिटल करने के साथ अब शहर को सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में रखने महत्वपूर्ण स्थानों का उन्होंने चयन किया है। शहर के मुख्य चौक-चौराहों के साथ शहर की एंट्री और एग्जिट पाइंट पर अति आधुनिक कैमरे लगाने की तैयारी करने में जुटे हैं। कैमरों की मदद से लोगों के चेहरे और उनके वाहनों के नंबर प्लेट की पहचान नि:संदेह आसान हो जाएगी। इससे आपराधिक गतिविधियों व यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों पर अंकुश लगेगा। अपराध की जांच में शहर में तीसरी आंख सदृश्य लगे सीसीटीवी कैमरे महत्वपूर्ण रहेंगे।
पुलिस कप्तान जितेन्द्र शुक्ल के ही कार्यकाल में यह खास काम पूर्ण हो जाए तो बेहतर होगा। मिले अवसर पर किया गया परिश्रम सफल होता ही है। संस्कारधानी शहर अपराधों से मुक्त होना चाहता है।
कोरोना संकट में प्रिंट मीडिया को सहयोग करें
अनेक व्यापार-उद्योग देश में हाशिए पर चले गए हैं। ऐसे में हम प्रिय पाठकों को अवगत कराना चाहते हैं कि अखबार उद्योग भी विज्ञापनों के अभाव में भारी संकट में है। लाकडाउन के लम्बे समय में अखबारों की बिक्री भी प्रभावित है। कोरोना संकट में कई पाठकों ने अपने घरों में हाकर और उसके पास रहे अखबार को प्रवेश देने से मनाही कर दी है। किन्तु, इसके भयावह परिणाम का अनुमान किसे हैं? किसको चिन्ता है? अनेकानेक छोटे और मध्यम श्रेणी के अखबार बंद हो गए हैं। धनाढ्य और साधन सम्पन्न हिन्दी व अंग्रेजी अखबारों को कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा है। किन्तु, उन्होंने देश में हजारों पत्रकारों-कर्मचारियों की छुट्टी कर उन्हें बेरोजगार बना दिया है। इंडियन न्यूज पेपर्स एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जो आवेदन पेश किया है, उसके अनुसार अखबार जगत से नौ से दस लाख लोग सीधे जुड़े हुए हैं। जो अप्रत्यक्ष अखबारों से जुड़े हैं, जैसे विज्ञापन एजेंसियां, विक्रेता बंधुओं सहित 18 से 20 लाख लोग असरग्रस्त हैं। शहर से भी प्रकाशित होने वाले चंद अखबार बंद हो गए हैं। राजधानी रायपुर से प्रकाशित होने वाले बड़े अखबारी उद्योगपतियों ने भी शहर में कार्यरत अनेक कर्मचारियों, रिपोर्ट्र्स, फोटोग्राफर्स को निवृत्त कर दिया है।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले प्रिंट मीडिया का पूर्ववत सहयोग देने की पहली जवाबदारी-फर्ज, वफादार व समझदार पाठकों की है। सोशल मीडिया व मोबाइल पीछे व्यर्थ समय व धन का अपव्यय न करें। विश्वसनीय व जवाबदार प्रिंट मीडिया को सहयोग करें।
अंत में देवेंद्र कुमार मिश्रा की सामयिक चंद लाइनें-
हमारे पास सत्ता है
सो जनता के पास भत्ता है,
जनता खुश रहो
जो मिले उसमें
ज्यादा मांगोगे
तो उतर जाएगा कपड़ा-लत्ता
हमारे पास सीबीआई
टाप का कटखना कुत्ता
खैरियत इसी में है कि
बने रहो मरियल कुत्ता
सहते रहो भ्रष्टाचार, महंगाई
अपराध की मार
आवाज की, तो काट खाएगा कुत्ता,
भेज देंगे जेल
जिंदगी हो जाएगी फेल
नक्सली था मारा गया
आतंकी था उठाया गया
जनता के मुख से अच्छी
लगती है जयकार
मुसीबत क्यों लेते हो यार,
चुनाव से पहले हम
भीख बढ़ाने पर करेंगे विचार।
– शहरवासी