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अथ श्री महामंदिर कथा सम्पूर्णम्: किन्तु कलियुग में राम नहीं रावण राज रहेगा

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ओ पालन हारे…निर्गुन और न्यारे…
तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं,
हमारी उलझन… सुलझावो भगवन
तुमरे बिन हमरा कौनो नाही।
तुम ही हमका होश संभाले
तुम्हई हमरे…. रखवाले
तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं।

चम्पक के बोल समयानुसार बदलते रहते हैं। आज वह भजनानंद से सराबोर था। अभी वह राम भक्ति में लीन था। बाबूलाल ने जैसा ही उसका भजन पूरा हुआ वैसे ही उससे कहा-भगवान को भोग तो लगाया नहीं, फिर प्रसाद कैसे पायेगा? उसने कहा, भोग लगाने का काम मेरा नहीं है, यह दूसरो का है। भगवान की भक्ति करता हूं और जानता हूं इसका फल आज नहीं तो कल मिलेगा। नहीं तो सालों बाद तो मिलना ही है। देखा नहीं, संघ वालों को ‘‘राम’’ की भक्ति आखिर फलिभूत हुई या नहीं? ईश्वर के दरबार में ‘‘देर है, अन्धेर नहीं है।’’ अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर बनेगा। देश की 90 करोड़ जनता जो हिन्दू हैं, उनकी आस्था का प्रतीक भगवान श्री राम का मंदिर 2024 तक तैयार हो जाएगा। हमारे पी.एम. नरेन्द्र भाई ही मंदिर का उद्घाटन करेंगे। यह सब राम कृपा से ही तो हो रहा है।
ठीक कह रहे हो चम्पक, मैनें रामायण पढ़ी है। उसमें लिखा है, जब पवित्र समय आया। दसों दिशाएं प्रसन्न हुई। मंद, सुगंधमय पवन बहने लगा। चैत्र माह, शुक्ल पक्ष, परिपूर्ण नवम तिथि, पुनर्वसु नक्षत्र का सुयोग और मध्याह्न काल में माता कौशल्या के सन्मुख चतुर्भुज के रूप में भगवान श्रीराम प्रगट हुवे थे।
यह तो सब ठीक है भाई। अब इसी अयोध्या में श्री राम की जन्मभूमि में राममंदिर का भूमिपूजन मध्याह्न काल में बुधवार तिथि द्वितीया को अभिजीत मुहुर्त में सम्पन्न हुआ है। नक्षत्र धनिष्ठा है। यह चौघडिय़ा राजनैतिक अभिगम रख निकाला गया है। रामकृपा से सब अच्छा ही होगा। श्रीराम तो अंतर्यामी हंै। हमेशा प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं। हर किसी के मन की बात जानते हैं। जिन्होंने अर्तआत्मा से कभी राम का नाम नहीं लिया, वे आज उनका झंडा पकड़े हुवे हैं। हम मंदिर वहीं बनायेंगे…. वाली व्यथा का अब अंत हुआ है। किन्तु, प्रसन्नमुद्रा में रहने वाले राम मुझे उदास लग रहे हैं। मैं राम दरबार में जब उनके दर्शन करने गया, तब मुझे ऐसा लगा कि जाने वे कह रहे हों क्या मेरा याने राम का मंदिर बन जाने से भारत में ‘‘रामराज्य’’ स्थापित होगा? पंचवर्षीय चुनाव जीतने तक ही मेरा नाम लिया जाता है, मेरी भक्ति की जाती है। उसके बाद तो मैं कौन और तू कौन? ऐसा व्यवहार होने लगता है। देखो शहरवासी सच कहूं टीवी चैनलों में देखा तभी मुझे जानकारी हुई कि- ओ ओ ओ… इतने सारे भक्त हैं मेरे। इतनी बड़ी संख्या में भक्तों को देखकर मुझे जितना आनंद हुआ, उससे अधिक गुना विषाद भी हुआ। इतने सारे भक्त होने के बावजुद एक मंदिर बनाने के लिए अनेक वर्षों लग गए? एक मंदिर निर्माण के लिए? शहरवासी तुम्हारे सहित पूरे देश-दुनिया के भक्तगण जानते हैं कि एक ऐसा भी युग था, जिस युग में रहने के लिए राम का आलिशान महल था और राम की सुव्यवस्था और सुराज्य के कारण ही उस युग में ‘‘रामराज्य’’ शब्द का आविष्कार हुआ और आज उसी राम को रहने के लिए आजाद भारत के अब तक के शासकों, नागरिकों, भक्तों को एक मेरे मंदिर निर्माण के भूमि पूजन में कई साल लग गए?
देखो शहरवासी, मैं फिर कहता हूँ। भगवान राम से कुछ भी छिपा नहीं। वे हर किसी के मन की बात, महत्वाकांक्षा, उनके असली ध्येय को जानते हैं। वे बड़े दयालु हैं। सभी की इच्छा पूरी करते हैं। रही सुव्यवस्था, सुराज याने रामराज की बात तो मित्र, वह त्रेतायुग था, यह कलियुग है। सबसे बड़ा फर्क तो यही है। राम राज्य की परिकल्पना करना अच्छा है किन्तु दर्शन तो रावण राज्य के ही होंगे। भ्रष्टाचारी, दुराचारी, पापाचारी, रावणों के दर्शन करने जनता विवश है, इसको खत्म करने थोक में ‘‘राम’’ चाहिए। यहां तो एक राम के दर्शन धरती पर नसीब नहीं, फिर थोक में कहां से आयेंगे?

झूठ का युग और बढ़ता कोरोना
भाई मेरे जिस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं आया है। उसी बीमारी का इलाज करवा कर लाखों लोग ठीक भी हो गए। वाह! और तो और कुछ लोगों ने इस खौफ ‘‘कोरोना वायरस’’ के तथाकथित ईलाज के नाम पर करोड़ो-अरबों कमा भी लिए। चम्पक तुम्हारी बातों में दम तो है। कोरोना वायरस का खौफजदा डर ही है कि देश व राज्यों में उसका विकराल साम्राज्य स्थापित हो गया है। डर का साम्राज्य विभिन्न देशों के द्वारा जो झूठ का साम्राज्य खड़ा किया है, वस्तुत: वह जिम्मेदार है। इसमें झूठों के सरताज डोनाल्ड ट्रम्प हंै, बाबूलाल ने कहा। फेसबुक और ट्वीटर पर उन्होंने एक विडियों चलाया था, फिर बाद में उसे सोश्यल मीडिया प्लेटफार्म से हटा दिया गया, क्यों कि उस विडियों में बच्चे कोरोना वायरस के सामने बिल्कुल इम्युन हैं। ऐसा झूठा दावा किया गया था। जिस देश के सोश्यल मीडिया प्लेटफार्म ने उसी देश के प्रमुख की सोश्यल मीडिया पोस्ट बगैर किसी चेतावनी के रिमुव कर दी, यह कृत्य अपने आप में ही शर्मनाक है। किन्तु, ट्रम्प को इसकी कुछ नहीं पड़ी। इसी प्रकार, दुनिया के अन्य कई नेताओं, प्रमुखों, प्रधानमंत्रियों को भी कुछ नहीं पड़ी।
डीयर चम्पक-बाबूलाल, देश में ही लाखों पाजिटिव केसेज हो गए, इसके बावजूद प्रेसवार्ता परिषद से एक निश्चित दूरी रखने वाले नेताओं बाबत क्या बात करें? बात करने से कुछ फायदा भी नहीं। यहां भी शर्म नाम का तत्व सम्पूर्ण रूप से लोप हो गया है। जिस देश में कोरोना वायरस का संक्रमण अधिक है, उस देश के नेता ही झूठ बोलते हैं। जनता को सच्चे आंकड़े और सच्ची जानकारी न देकर उन्हे अंधेरे में रखा जाता है शहरवासी ने कहा।
संक्रमित दुर्भाग्यशाली और इसी वायरस के शिकार हुवे मृतकों की संख्या अधिकारिक संख्या से बहुत ज्यादा है। जनता भी इसे जान गई है। कोरोना के कारण विभिन्न देशों की सरकारें जनता का विश्वास जीत नहीं सकी, यह सच है। दुनिया में पाजिटिव केसों की संख्या दो करोड़ के करीब पहुंच गई है। वास्तविक संख्या तो बहुत बड़ी है। वर्तमान में कोरोना से बचने के लिए वेक्सिन के सिवाय अन्य कोई उम्मीद की किरण दिखती नहीं। क्यों कि प्लाजमा थेरेपी पूरी तरह सफल नहीं हुई। सगर्भा महिलाओं के लिए कोरोना खतरनाक है। कोरोना एक दीर्घाकार राक्षस है, जिसे नियंत्रण में लेने विश्व की श्रेष्ठ टेक्नालाजी भी अभी तक सफल नहीं हुई। सबसे बड़ी विडम्बना और विरोधाभास यह कि विश्व के सबसे बड़े और विकसित अनेक बंदरगाह और शहर ही कोरोना के पंजे में जकड़े हुवे हैं। देश का प्रत्येक राज्य, शहरों में मुंबई हो या न्यूयार्क, प्रत्येक दिन हजारों पाजिटिव केस दर्ज हो रहे हैं। जो केस दर्ज नहीं होते या दर्ज नहीं किए जाते, इसकी संख्या तो इससे भी ज्यादा है। छत्तीसगढ़ में भी दिन ब दिन पाजिटिव केस बढ़ रहे हैं। शहर और शहरीजन कोरोना वायरस के 1000 केवी करण्ट के बीच सांस ले रहे हैं लेकिन इसके बावजुद वे गंभीर नहीं, यह भी एक विडम्बना है। लाकडाउन में भी केस बढ़ रहे थे, यह भी अपने आप में एक रहस्य है।

कोरोना फंडिंग में चल रहा बड़ा खेल
कोरोना महामारी को रोकने वैसे तो दोनों सरकारें तमाम तरह से हरसंभव प्रयास कर रही हैं। प्रशासन भी इसके संक्रमण को रोकने के लिए ऐहतियाती कदम उठा रहा है। समय बीतने और कोरोना के बढ़ते केस के बीच लोगों में इसका खौफ भी अब कम होते नजर आ रहा है। हालांकि अभी भी जिले में रोजाना कोरोना पाजिटिव मरीज सामने आ रहे हैं। कोरोना मरीजों का उपचार नि:शुल्क तो है, यानि मरीज अथवा उनके परिजनों को कोई रूपए नहीं देना होता, बल्कि उपचार का पूरा खर्च सरकार वहन करती है। केन्द्र सरकार द्वारा कोरोना ग्रस्त मरीजों के उपचार में होने वाले खर्च के लिए राशि का प्रावधान भी किया गया है, लेकिन कोरोना फंडिंग को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कोरोना मरीज के उपचार हेतु प्रतिदिन तीन हजार रूपए के हिसाब से खर्च करने का प्रावधान है। यदि कोई कोरोना पेशेंट है तो उसके उपचार के लिए मरीज की तबियत की गंभीरता के अनुसार पांच हजार रूपए से लेकर डेढ़ लाख रूपए तक खर्च का प्रावधान सरकार ने कर रखा है।
शहर सहित जिले की बात करें तो कोरोना मरीजों की संख्या किसी दिन अचानक बढ़ रही है, किसी दिन कम हो रही है। कई मरीजों को उनमें कोई सिम्टम नहीं होना बताकर तो कई मरीजों को महज चार-पांच दिनों में ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जा रही है। इससे इतर कई ऐसे मरीज भी देखे गए, जिन्हें 14 दिनों तक अस्पताल में रखकर उपचार किया गया। कई मरीज तो सिर्फ चार-पांच दिनों में ही स्वस्थ होकर अस्पताल से अपने घर पहुंच गए। दूसरी ओर कोरोना मरीजों के उपचार का जिम्मा सिर्फ सरकारी अस्पतालों को ही दिया गया है, जबकि कई ऐसे निजी अस्पताल भी हैं, जहां पर कोरोना मरीजों का उपचार हो सकता है। इन सबके बीच यह सवाल लोगों के जेहन में है कि मरीजों के उपचार हेतु प्रतिदिन 25 हजार रूपए तक खर्च करने का प्रावधान केन्द्र सरकार द्वारा किया गया है तो क्या वास्तव में उतनी राशि का खर्च प्रति मरीजों के पीछे हो रहा है अथवा पूरी रकम डकार ली जा रही है?

एस.पी. जितेन्द्र शुक्ला का हटना लोगों को रास नहीं आ रहा
राजनीति और प्रशासन का क्षेत्र यूं तो अलग-अलग है। राजनीति प्रशासन नहीं है और न ही सारे प्रशासन को केवल राजनीति का विषय मानना उचित है। निवृतमान एस.पी. जितेन्द्र शुक्ला ने अपने प्रशासनिक कौशल से अपने अधीनस्थ सभी पुलिस थानों को नियंत्रण में रखा था। अपराधों में अकुंश भी लगा था। शराब माफियाओं के हौंसले उन्होंने पस्त कर दिए थे। कानून के द्वारा प्रदत शक्तियों का प्रयोग करके उन्होंने जनता में विशिष्ट छबि अंकित की थी। सिविल ड्रेस में बाइक पर सवार होकर शहर के भ्रमण पर भी निकल पड़ते थे। अपराध और उसे अंजाम वाले अपराधियों को बख्श देना, यह उनकी कार्यप्रणाली में शामिल नहीं था। किन्तु, समझौते की पक्षधर राजनीति, अपने हितों के मद्देनजर सामंजस्य करने वाली राजनीति, पार्टी संबंधित राजनीति के चलते जितेन्द्र शुक्ला का केवल 4 महिने में ही लूप लाईन में तबादला जनता को हजम नहीं हो रहा है। कानून की वैध सीमा अन्तर्गत अपराध को नियंत्रित करने में शुक्ला समझदारी के साथ सफल देखे जा रहे थे, वहीं उनका असमय तबादला चकित करने वाला रहा। शुक्ला सार्वजनिक कानून का विस्तृत एवं व्यवस्थित रूप से क्रियान्वयन कर रहे थे, इससे कांग्रेस की भूपेश सरकार की भी लोकप्रियता में वृद्धि हो रही थी। अब अचानक जिले के पुलिस प्रशासन में फेरबदल जनता को रास नहीं आ रहा है।

नई शिक्षा नीति और उससे जुड़ी परेशानियां
केन्द्र सरकार की नई शिक्षा नीति में कहा है कि अब ‘‘बैगलेस’’ शिक्षा होगी। नि:संदेह सरकार ने चिन्तन के दौरान ही यह निर्णय लिया होगा। आज कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि हो रही है। जो कुपोषित नहीं है, वे भी इतनी शारीरिक क्षमता नहीं रखते कि भारी बस्तों (बैग्स) का बोझ उठा सके। भारी बस्ता लिए जब बच्चे स्कूल से घर लौटते थे, तब उनकी कमर झुकी हुई और चेहरे में थकान साफ दिखती थी। बालमंदिर, प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक शालाओं के बच्चों को भविष्य में बुलवाने बैगलेस शिक्षा बहुत जरूरी थी।
अब विद्यार्थी व उनके पालक स्कूलें कब खुलेंगी? स्कूली वातावरण ही बच्चों को प्रिय है। घरों में आन लाईन शिक्षा का होना, न होना एक बराबर है। अब तो स्कूल संचालक भी फीस की डिमान्ड कर रहे हैं। स्कूल के समकक्ष चलने वाली कोचिंग की आनलाईन शिक्षा प्रदान करने वाले भी फीस वसूल रहे हैं। फीस के मुद्दे को दरकिनार भी करें तो क्या इस आनलाईन शिक्षा से चालू शैक्षणिक वर्ष उनके लिए उपयोगी बनेगा? यूं भी नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन कब से होगा? क्या स्कूल संचालकों ने भी इसकी कोई तैयारी शुरू कर दी है? निजी शालाएं तो सरकारी पैसा नहीं मिलने से वैसे ही आर्थिक संकट से गुजर रही है। कुल मिलाकर फिलहाल तो इस शैक्षणिक वर्ष में बच्चों के साथ-साथ शिक्षा का भी भविष्य अंधकार से भरा लग रहा है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई
श्री कृष्ण याने आकर्षित करने की शक्ति जिनमें हंै वे। ब्रहमा, विष्णु और महेश इन तीनों का ही एक स्वरूप याने श्रीकृष्ण। भगवान श्री कृष्ण का जीवन पारदर्शक है। उनके जीवन में कहीं अहंकार नहीं है। स्वयं तीन भूवन के नाथ होनें के बावजुद वे कभी अर्जुन के सारथी बनते हैं, कभी द्वारकाधीश, कभी सुदामा के मित्र बनते हैँ तो कभी युधिष्ठिर को चरणपादुका पहिनाते हैं। कभी पांडवों के राजसूय यज्ञ में घोड़ों को चारा डालते हंै तो कभी अपने को तीर मारने वाले को क्षमा कर उन्हें छाती से लगाते हैं और मोक्ष प्रदान करते हैं।
कृष्ण प्रतिबद्ध थे कर्म के प्रति परन्तु कर्म फल से नहीं। वे कहते हैं- कर्म करो किन्तु मन में अकर्ता का भाव रखो। भगवान श्रीकृष्ण जीवंत धर्म के प्रतीक हैं। वे कहते है? दु:ख और सुख को समान समझने वाले धीर पुरूष को इन्द्रियों और विषयों का संयोग व्याकुल करते नहीं, वही व्यक्ति ही मोक्ष की प्राप्ती के योग्य हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का बुधवार, 12 अगस्त को जन्मोत्सव है। सभी श्रद्धालुजनों को जन्माष्टमी की अग्रिम शुभकामनाएं।

जय श्री कृष्ण।
गुलजार की रचना-
जीवन से लंबे है बंधु,
ये जीवन के रस्ते
इक पल थम के रोना होगा,
इक पल चलना हंस के।
राहो से राही का रिश्ता,
कितने जनम पुराना,
एक को चलते जाना आगे,
एक को पीछे आना,
मोड़ पे मत रूक जाना
बंधु दोराहो में फंस के।
जीवन से लंबे है बंधु…
– शहरवासी

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