गोपालपुरखुर्द गांव में 11 वीं सदी से विराजमान मूर्ति का पूजा करते आ रहे ग्रामीण
राजनांदगांव (दावा)
जिले में एक ऐसा भी गांव है जहां 11वीं सदी में भगवान श्री गणेश के प्रतिमा की स्थापना हो चुकी है। तब से भगवान गणेश विदा ही नहीं हुए है। भगवान गणेश के इस प्रतिमा के प्रति ग्रामीणों की आस्था ऐसी है कि इस गांव में आज तक किसी ने मिट्टी की प्रतिमा नहीं रखी है। ग्रामीण सदियों पुराने स्थापित प्रतिमा का ही पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।
इस साल कोरोना संक्रमण के कारण गणेशोत्सव फीका पड़ गया है। कोविड-19 के गाइड लाइन को सख्ती से पालन करते हुए गिने चुने स्थानों पर ही बप्पा की मूर्ति की स्थापना की गई है। यही वजह की लोगों में ज्यादा खुशी नहीं दिख रही है। लेकिन इस खास मौके पर हम आपकों ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहें हैं, जहां मिट्टी से बनी मूर्ति की स्थापना नहीं की जाती, क्योंकि वहां पहले से ही 11वीं सदी में निर्मित श्री गणेश की मूर्ति है। यूं कहे कि 11वीं सदी में ही यहां प्रभू की स्थापना हो चुकी थी, तब से उन्हें विदा ही नहीं किया गया, सिर्फ गणेशोत्सव नहीं साल के पूरे दिन प्रभू की आराधना की जाती है।
जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर है ग्राम
यह गांव है राजनांदगांव जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत सिंगारपुर के आश्रित ग्राम गोपालपुरखुर्द। इस गांव में आज तक मिट्टी से बनी प्रतिमा की स्थापना नहीं की गई। गांव में मान्यता है कि जब प्रभू वर्षों पहले से यहां विराजमान है तो फिर मिट्टी की प्रतिमा क्यों रखी जाए। यहां तक की गांव में दुर्गोत्सव में भी देवी प्रतिमा की स्थापना नहीं की जाती है। गांव में हर दिन सुबह शाम भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। इस पूजा में सभी ग्रामीण शामिल होते है। समय-समय पर मंदिर परिसर में तरह तरह के धार्मिक आयोजन कराएं जाते है। ग्रामीणों की माने तो उनके पिता व दादा के समय से कभी इस गांव में मिट्टी से बने प्रतिमा की पूजा नहीं हुई। यह भी बताया गया कि किसी परिवार ने एक बार मिट्टी से बने प्रतिमा की स्थापना की थी, तो अशुभ हो गया था। तब से लेकर आज तक इस परंपरा को बदलने के लिए किसी ने कोशिश भी नहीं की।
पहले पेड़ के नीचे थी प्रतिमा, 2006 में बना मंदिर
ग्रामीणों की माने तो पहले प्रतिमा नीम के पेड़ के साथ सटी हुई थी। 2006 में मंदिर का निर्माण कराया गया। श्रृंगारपुर में स्थापित भगवान हनुमान और गणेश की प्रतिमा एक ही समय के है। उस समय के लोग श्री गणेश की मूर्ति को ले जाना चाह रहे थे, लेकिन ले जा नहीं और यहीं छोड़ गए।