Home छत्तीसगढ़ विघ्नसंतोषी नर सदा सुखी….

विघ्नसंतोषी नर सदा सुखी….

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विघ्नहर्ता गणेश दादा इस वर्ष फिर समयानुसार पधार चुके हैं, बिराजमान भी हो गए। दादा की पोजिशन तब आकवर्ड हो जाती है, जब उनके ही सामने समाज में विघ्नों की आपूर्ति करने वाले अनेक ‘‘विघ्न कर्ता’’ स्वयं ही जब अपने विघ्नों को दूर करने के लिए विघ्नहर्ता याने उन्ही के सामने प्रार्थना करते हैं। ‘‘विघ्नसंतोषी नर सदा सुखी’’ ऐसी कहावत अभी तक सुनी तो नहीं, इसके बावजुद इस कहावत को सच साबित करने हेतु भगीरथ कार्य करने वालों की आज कमी नहीं है। ऐसे महानुभावों के लिए ‘‘विघ्नसंतोष परम धन’’ है।

जब तक वे दिन भर में किसी न किसी को विघ्न संतोष का दान न करे तब तक उन्हें जीमना भी अच्छा नहीं लगता। विघ्न पहुंचाने में ऐसे लोगों को मजा मिलता है।
चम्पक गणेश दादा का भक्त है। उसने भी श्रद्धापूर्वक तहेदिल से ‘‘दादा’’ को घर में बिराजमान किया है। पूजापाठ कर पुष्पमाला अर्पण करने के बाद उसने भावपूर्वक दादा से करजोड़ कर प्रार्थना की कि यह रहस्यमय और बेकाबू बन चुके ‘‘कोरोना’’ का कैसे भी करके जितनी जल्दी हो सके ‘‘विसर्जन’’ कर दो। प्रभु कोरोना ने तो आप को भी नहीं बख्शा। कोरोना ही के कारण दादा आप को मोहल्ले में नहीं बिठाया गया है। आप के दर्शनार्थियों पर भी नियमों की मार लगी है। नियमानुसार दर्शनार्थियों के नाम और उनका मोबाईल नम्बर दर्ज करना होगा। आने वालों को मास्क पहिनना तो अनिवार्य ही है। आयोजन मंडल को पंडाल में सीसीटीवी कैमरे भी लगाने होंगे।

सच्चे मन से की गई प्रार्थना ने गणेश दादा को भी बोलने विवश कर दिया। उन्होंने कहा, अरे नादान कोरोना तो फरवरी-मार्च में आया है और तू उसका विसर्जन करने की बात कर रहा है। तेरे समाज में कोरोना के सिवाय और कुछ विसर्जन करने लायक नहीं है? कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक वायरस, जो वर्षों से घर कर गया है जिसे तुम लोग ‘‘दंभ’’ कहते हो, उस दंभ के वायरस का विसर्जन कराने की प्रार्थना क्यों कोई नहीं करता?

चम्पक ने बड़ी विनम्रता से कहा कि दादा, जिसे आप खतरनाक वायरस कह रहे है, उस दंभ के बगैर हमारे अनेक झंडाबरदार कथित समाजसेवी, धर्मप्रेमी महानुभाव, अर्थप्रेमियों का तो जीना ही दुभर हो जाएगा। खादी के सफेद वस्त्रों को पहिन घुमने और बात करने वाला नेता राजनेता दंभमुक्त दिखाई देता है, क्यों कि उसने दंभ शब्द को अपने जीवन की डिक्सनरी से कभी का हटा दिया है। किन्तु, वास्तव में वे दंभी ही होते हैं और ऐसा ही जीवन जीते हैं। चेहरे पर नि:दंभपने का मेकअप किए ऐसे कई अज्ञानी ज्ञानसत्रों का आयोजन करते रहते हैं। ऐसे दंभियों को दंभयुक्त करने कुछ तो करो दादा।
एक बात और दादा, हमारे यहां विघ्नसंतोषी राजनीतिज्ञों और राजनीति की हरियाली छायी हुई है। एक माह पहले पायलट और गहलोत एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते थे, अब यही द्वय राजसेवक एक दूसरे की शोभायात्रा का स्वागत कर रहे हैं। एक दूसरे का हाथ पकड़ कर अब अपने पंजे को मजबूत कर रहे हैं। एक माह पहले ये नेता और इनके भक्तगण ‘‘जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा, उस गली में हमें पांव रखना नहीं’’ गाते थे, अब एक माह बाद ‘‘तू जहां जहां चलेगा…. मेरा साया साथ साथ हो….गा?’’ गुनगुना रहे हैं। कई समय का तो कई इसे सत्ता का खेल कह रहे हैं।

निर्विघ्नम् कुरूमेदेव, सर्व कार्येषु सर्वदा
‘‘नेता शब्द उल्टा पढ़े
तो ताने होते हैं’’
एक बार चूनने के बाद
सब नेता को ता-ने देते हैं।

बाबूलाल हताशाभरे वातावरण से बेहद हताश था। कोरोना वायरस के खतरे के साथ साथ बेरोजगारी, ध्वस्त हो रही कानून व्यवस्था, डूबती अर्थ व्यवस्था और सामाजिक विद्वेष ने लोगों से जीने का उत्साह ही छीन लिया है। चम्पक मित्र को नर्वस देख बोला-डीयर हाल ही मैने वरिष्ठ लेखक और पत्रकार संजय यादव का चिंतन उनके स्वलिखित पुस्तक में पढ़ा, जिसमें उन्होंने लिखा है कि हमें कोरोना के भय के साथ ही जीना होगा। कोरोना महाकाल उन्ही प्रभावित लोगों का प्राण ले रहा है, जिसकी मौत इस बीमारी से सुनिश्चित है। इसलिए डरने की बात नहीं है। बेखौफ रहें, साथ ही अपनी ओर से सुरक्षा का उपाय करते रहें। क्यों कि, सुरक्षा हटी और दुर्घटना घटी। महाकाल तो तैयार बैठा है। विश्वास रखें कि यह बुरा दौर, बुरा समय भी गुजर जाएगा।

फिक्र इसलिए भी मत करो कि गणेश दादा पधारे हैं। ‘‘निर्विघ्नम् कुरूमेदेव, सर्वकार्येषु सर्वदा’’ श्रद्धालु जब ऐसा दादा के सामने बोलते हैं, तभी दादा को भी अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो जाता है। वे सब कुछ ठीक कर देंगे। और फिर! अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन और मंदिर के शीघ्र निर्माण की मुहिम सुपरफास्ट चल रही है। निर्माण बाद राम केवल मंदिर में ही नहीं, देशवासियों के मनों में भी पैर फैलायेंगे, ऐसी श्रद्धा रखनी ही चाहिए। फिर यार मेरे, देश में ‘‘रामराज्य’’ स्थापित होना ही है।

बाबूलाल बोला-तुम्हारी श्रद्धा को साधुवाद चम्पक। किन्तु मै जो देख-समझ रहा हूं, वह इसके बिल्कुल विपरीत है। राममंदिर निर्माण को लेकर कुछ सवर्णों को छोड़, जिन लोगों में 30 वर्षों पहले जो उत्साह था, वह वर्तमान में कहीं नजर नहीं आ रहा है। कुछ लोगों ने ही गत पांच को दीये जलाए थे। ऐसा इसलिए भी कि देश और समाज न केवल बंट रहे हैं, बल्कि आर्थिक दौड़ में पिछड़ भी रहे हैं। जो अयोध्या में 100 करोड़ रूपए के भव्य राम मंदिर निर्माण और छत्तीसगढ़ में 35 करोड़ से माता कौशल्या मंदिर के भव्य निर्माण के हल्ले से भी कतई प्रभावित नहीं है। देखा गया अधिक संख्या में लोग इस मेगा इवैंट को लेकर तटस्थ हैं। नहीं तो, यह वही देश है जिस में 90 के दशक में राम मंदिर निर्माण को लेकर हाहाकार मच गया था। तब ऐसा भी लगने लगा था कि मानो मंदिर नहीं बना तो कोई पहाड़ टूट पड़ेगा और देश, धर्म व संस्कृति सब खतरे में पड़ कर नष्ट हो जायेंगे।

डीयर बाबूलाल, देश की जनता की स्थिति बहुत दुविधाजनक है। सरकार का लेखाजोखा तो जनता को मालुम ही नहीं होता। 2014 में सत्ता पाने की कोशिश मेें नरेन्द्र भाई ने जनता को रिझाने के लिए जो लुभावने वादे किए थे, उस पर भोली जनता ने विश्वास किया और मोदी लहर चली और फिर 2019 में तो मोदी सुनामी आ गई।

नरेन्द्र भाई ने जनता से वादे किए थे अगर हम सत्ता में आए तो देश विकास के पथ पर तेजी से बढ़ेगा। हम हर साल दो करोड़ नौकरिया देंगे। देश से बेरोजगारी मिटा देंगे। भ्रष्टाचारियों को जेल भेजेंगे। देश-विदेश में रहा कालाधन वापस लायेंगे। देशवासियों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करायेंगे। किन्तु, इन वादों का क्या हश्र हुआ? ये सभी जानते हैं। 2014 के कार्यकाल में नोटबंदी और जीएसटी से शुरू हुई देश भर में आर्थिक मंदी आज तक छायी हुई है। कोरोना महामारी ने तो ‘‘दुबले पर दो आषाढ़ ‘‘जैसी आर्थिक पहिए को पंचर कर दिया है। सरकारी योजनाएं, फिर वह केन्द्र की हो या राज्य की, उसे इसी एक कहावत से ही समझा जा सकता है कि ‘‘तेल जले सरकार का, मुर्गा खेले फाग’’। सुनियोजित भ्रष्ट रैकेट भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहा है। ग्राउंड लेवल पर तो योजनाओं का पलिता लग रहा है। इसके अलावा भी देश में अनेक समस्याएं मुंहबाएं खड़ी हैं।

न शुद्ध पानी और न ही शुद्ध दूध उपलब्ध:महामारी भी इसीलिए
स्वच्छ भारत, स्वच्छ प्रदेश, स्वच्छ शहर वाले अपनी उपलब्धियां पर गर्व कर रहे हैं। करना भी चाहिए, अच्छी बात है। लेकिन इसका क्या? शुद्ध व स्वच्छ पानी लोगों को उपलब्ध नहीं है। नलों से मिलने वाला पानी अशुद्ध व मटमैला होने के बावजुद तरसे-प्यासे-जरूरतमंद उसे पीने, उसका उपयोग करने लाचार हैं। जो लाचार नहीं हैं, पास में पैसा है, वे लोग तो घरों में आर.ओ. लगाकर और घर के बाहर महंगा डिस्टलरी का पानी खरीदकर अपनी सेहत का बचाव कर रहे हैं। लेकिन, सरकार ने करोड़ों खर्च कर शुद्ध पेयजल आम लोगों को उपलब्ध हो, इसके लिए प्लान्ट लगाए हैं, वे क्यों अपना काम सही नहीं कर रहे हैं?

शहरवासियां को इसी प्रकार पचास से साठ रूपए प्रति लीटर दूध खरीदने के बावजूद शुद्ध दूध नसीब नहीं है। न दूध में स्वाद है, न ही मलाई निकलती है। जिले से लेकर राज्य स्तर तक खाद्य विभाग (मिलावटी) निष्क्रीय है। समय-समय पर अपनी लेव्ही का टार्गेट पूरा करने ही सक्रिय होते हैं।
विभिन्न दूध डेयरियों और दूध विक्रेताओं के यहां से संबंधित विभागीय अधिकारी दूध का सेम्पल लेकर जांच व सर्वे करें तो सेम्पल का पृथ्थकरण करने के बाद उसमें एन्टीबायोटिक की मात्रा ज्यादा मिलेगी। प्रश्न यह कि यह कार्य जनहित में ईमानदारी से किया जाएगा? महत्वपूर्ण यह कि एन्टी बायोटिक रोग प्रतिरोधक शक्ति घटाता है और मानव शरीर को नुकसान पहुंचाता है, उसकी इम्युनिटी कम करता है। शहरों व राज्यों में कोरोना के संक्रमण में जो इजाफा हो रहा है, उसका कारण भी दूध का गुणवत्ताविहीन होना है। दूध के अधिकांश सेम्पल में एंटी बायोटिक की मात्रा अधिक मिलेगी। लोगोंं को नुकसान हो, वैसा दूध शहर में खुले आम मिल रहा है। अगर गाय-भैंस कम दूध देती हैं या दूध देना बंद कर देती है तो पशुओं को इंजेक्शन लगाया जाता है। इंजेक्शन लगातेे ही दूध आना शुरू हो जाता है। इस प्रकार पशुओं का भी शोषण किया जाता है। बच्चों में जो अनिन्द्रा की तकलीफ है, उसका कारण भी मिलावटी दूध है। जिला प्रशासन सहित राज्य सरकार को दूध में मिलावट रोकने ठोस मुहिम चलानी होगी।

ललितासन मुद्रा, षष्ठभुजी नृत्य और बाल रूप में बनी गणपति की प्रतिमा का है संग्रहण
यहां पुरातत्व अवशेष में प्राप्त 11वीं, 12वीं शताब्दी में निर्मित प्रतिमाओं की जिले में प्राचीन काल से हो रही है विभिन्न रुपों में पूजा।
राजनांदगांव जिले की प्राचीनकाल से अपनी समृद्ध राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा रही है। समय समय पर यहां जैन, बौद्ध, शैव, शाक्त, सौर, वैष्णव संप्रदायों का प्रभाव रहा है। जिसके प्रमाण पुरावतत्व शेषों के रूप में प्राप्त होते रहे हैं। मौका है गणेशोत्सव का। आपकों को यह जानकर हैरानी होगी कि राजनांदगांव जिले में प्राचीन काल से ही भगवान गणेश की पूजा होते आ रही है। यहां पुरातत्व वशेषों में 11वीं 12वीं शताब्दी में निर्मित ललितासन मुद्रा, षष्ठभुजी नृत्य और बाल रूप में भगवान गणपति की मूर्तियां मिल चुकी है।
अलग-अलग समय पर प्राप्त इन प्राचीन मूर्तियों को राजनांदगांव कलेक्टोरेट परिसर स्थित संग्रहालय में रखा गया है। इसके अलावा कई प्राचीन मूर्तियां मंदिरों में स्थापित है जहां आज भी प्रभू की पूजा की जाती है। सहा. पुरातत्ववेता डॉ. शिवाकांत बाजपेयी द्वारा संपादित पुस्तिका में इन प्राचीन मूूर्तियों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

षष्ठभुजी नृत्य गणेश प्रतिमा डोंगरगढ़ ब्लाक से
सर्वप्रथम नाम आता है षष्ठभुजी नृत्य गणेश प्रतिमा का। यह मूर्ति डोंगरगढ़ ब्लॉक में स्थित पुतली पुलिया नामक स्थल से प्राप्त हुई है। बलुआ भूरा पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा करीब 12 वीं शताब्दी की है। मूर्ति का परिमाप 112&76&27 सेंटीमीटर है। इस प्रतिमा के उर्ध्व भाग में आकाशचारी दो गंधर्वों का अंकन है, जो खंडित है। मूर्ति के सिर पर मुकुट और गले में अलंकृत चंद्रहार तथा सीने पर सर्परूपी यज्ञोपवीत है। यह प्रतिमा नृत्य मुद्रा में है, जो भरतनाट्यम की प्रस्तुति कर रही है।

ललितासन मुद्रा में हो रही पूजा
गंडई से करीब 5 किलोमीटर दूर घटियारी में भूमिजन शैली में निर्मित शिव मंदिर है। यहां से ललितासन मुद्रा में भगवान गणेश की प्रतिमा प्राप्त हुई है। जो 11वीं 12वीं शताब्दी की है। ललितासन मुद्रा में गणेश हाथों में श्रीफल, सर्प, अंकुश और मोदकपात्र धारण किये हैं। गणेश मुकुट, हार, भुजबंद, सर्प, यज्ञोपवीत, पाजेब धारण किये हैं। पुरातत्वेताओं की माने तो उस समय में छवि या फिर आज के समय में जिसे फोटोग्राफी कहा जाता है, ये नहीं थे। केवल वेद पुराणों के वर्णन के आधार पर कलाकारों ने इन आकर्षक मूर्तियों का निर्माण किया, जो किसी आश्चर्य से कम नहीं है।

पुराने पुलों में गढ़ी थी मूर्तियां
संग्रहालय के मार्गदर्शक की माने तो राजनांदगांव में पुराने समय में निर्मित पुल पुलियों और रास्तों के किनारों में कई प्राचीन मूर्तियां गढ़ी मिली थी। जानकारी मिलने पर टीम ने इन मूर्तियों को वहां से यहां लेकर आए। 11वीं शताब्दी में निर्मित बाल गणेश की प्रतिमा ऐसे ही स्थानों से प्राप्त हुई थी। यह मूर्ति कठुआ पुलिया (पाटेकोहरा) से प्राप्त हुई थी। इस मूर्ति में भगवान गणेश के बाल काल का वर्णन किया गया है, जो अपने आप में रोचक है।

जगह नहीं थी तो पुराने स्टेडियम में रखी गई थी प्रतिमाएं
पहले राजनांदगांव में संग्रहालय का निर्माण नहीं हुआ था। राजनांदगांव जिले के गठन के बाद कई अफसर आए। ये अफसर अक्सर दौरे पर जाते रहते थे, तब वहां उन्हें प्राचीन प्रतिमाएं नजर आती थी। इन प्रतिमाओं को सुरक्षा प्रदान करने के दृष्टि से स्टेडियम में रखा गया था। जब संग्रहालय बना तो इन मूर्तियों को संग्रहालय में स्थापित किया गया, तब से ये यहीं है। यहां और भी बहुत से प्राचीन मूर्तियां है।

भूलनबाग का अस्तित्व शहर में खत्म
प्राचीनकाल में रजवाड़े के समय शहर के शीतला मंदिर के पीछे भूलनबाग का निर्माण किया गया था। मिली जानकारी के अनुसार यहां पर रास्ते व अन्य बनावट एक सामान ही थे। बाग में कोई भी प्रवेश करते थे, वे रास्ता भटक जाते थे। बताया जा रहा है कि भूलनबाग का निर्माण उस समय के राजा द्वारा युद्ध होने की स्थिति में दुश्मनों से बचने इसका निर्माण किया गया था। भूलनबाग का अस्तित्व अब खत्म हो गया है।
लास्ट में-
डॉ. डी.एम. मिश्र चिन्तनशील कवि
की चंद लाइने गौरतलब हैं-
बवंडर उठ रहा है क्या तूम्हे इसकी खबर भी है
तबाही से डरे हैं लोग घबराहट इधर भी है।
मेरेी मंजिल मुझे आवाज देती है चले आओ
उधर है डूबता सूरज, इधर धुंधली नजर भी है।
समझने बूझने में साल कितने ही गंवा डालेे
समय है कम हमें मालूम है लंबा सफर भी है।
जरा हिम्मत तो देखो अब सहारा वो मुझे देगा
अभी कमसिन बहुत उसकी बड़ी पतली कमर भी है।
वहां खेती नहीं करता कोई खाता मगर अच्छा
हमारे गांव से कुछ दूर पर ऐसा नगर भी है।
बड़ी मीठी जुबां वाला मुझे इन्सां मिला कोई
मगर जब दिल खंगाला उसका तो निकला जहर भी है।
– शहरवासी

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