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सत्ता का अर्थ ”शासकीयÓÓ नहीं, शासन को नियंत्रण में रखना है

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पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री मोरारजी देसाई ने कहा था-किसी भी राष्ट्र का स्वास्थ्य उसके नागरिकों की हिम्मत, चरित्र और राष्ट्रभक्ति पर आधार रखता है। अगर, लोग अपने व्यक्तिगत क्षुद्र स्वार्थों और स्वाहितों से ऊंचा उठे तभी ही एकता और समानता सिद्ध होगी। वर्तमान में देश में किसान वर्ग, मजदूरवर्ग, मुस्लिम वर्ग के नाम पर विभिन्न राजनैतिक दल राजनीति कर रहे हैं। किन्तु, उनकी ”मुक्तिÓÓ व ”विकासÓÓ की चिन्ता किसे है? जनता तो राजनैतिक शतरंज में प्यादा है। राजनीतिज्ञ ”सत्ताÓÓ का अर्थ ”शासकीय अर्थÓÓ मानते हैं। किन्तु, सत्ता का अर्थ शासन को नियंत्रित रखना है। समझशक्ति में गणतांत्रिक भारत में नागरिकों की सत्ता पांच वर्ष में एक मरतबे वोट देकर केवल दर्शक बनकर रह जाने की नहीं है। जागरूक और सक्रिय रहने की है। सक्रियता का यह अर्थ नहीं है कि केवल आंदोलन करें और पत्थरबाजी करें। जनता को संविधान का प्राथमिक ज्ञान और सम्मानजनक व्यवहार अनिवार्य है। ताकि राजकीय-राजनैतिक वर्ग जनता को गुमराह न कर सके।

26 नवम्बर 2020 के दिन ”संविधान दिवसÓÓ को पी.एम. नरेन्द्र भाई ने कहा था कि भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान का प्राथमिक ज्ञान होना ही चाहिए। अभी तक संविधान से जुड़े विवाद संसद और उच्चत्तम न्यायालय तक ही सीमित थे। नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करने की जवाबदारी, अधिकारिक सत्ता उच्चत्तम न्यायालय की है। संविधान में नागरिकों को मूलभूत अधिकार दिए हैं, किन्तु इसके साथ कर्तव्य भी होता है, जिसकी अवगणना नहीं की जा सकती। फिर भी इसे दरकिनार किया जाता है। पिछले अनेक वर्षों से संविधान का उपयोग जन आंदोलन में ”ढालÓÓ के रूप में हो रहा है। जवाबदार-जिम्मेदार राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियां संविधान का राजनैतिक उपयोग करके लोगों को गुमराह करने का काम कर रही हैं।

गणतंत्र व स्वतंत्र भारत में जनता को आंदोलन, विरोध प्रदर्शन करने का ”अधिकारÓÓ है। विडम्बना यह कि विरोध-प्रदर्शन में अनुशासन व संयम की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन हो रहा है। नि:संदेह जनता जनार्दन शक्तिशाली है, बशर्ते वह एकजूट हो। प्रत्येक नागरिक सुशिक्षित, स्वस्थ और जवाबदार हो तभी ही राष्ट्र सामथ्र्यवान होगा। इसके लिए, समाज के प्रत्येक वर्ग को विकास का अवसर मिले, प्रोत्साहन, मार्गदर्शन मिले, ये जरूरी है। आजादी के बाद देश में सर्वांगीण बहुत प्रगति हुई है, विकास हुआ है, किन्तु इसका फायदा सभी को समान रूप से नहीं मिला है। दूसरी बात यह भी कि नागरिकों के विरोध प्रदर्शन को सशस्त्र पुलिस व सेना के जरिए शक्ति प्रदर्शन कर असफल करना, यह भी उचित नहीं है। संविधान गैर साम्प्रदायिक होता है। धर्म के आधार पर भेदभाव की इसमें कोई गुंजाइश नहीं है। तमाम नागरिकों के अधिकार और उनका दर्जा समान है। सेक्युलरवाद के नाम पर राजनीतिज्ञों के द्वारा कौमवाद को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसे देश की ”कुसेवाÓÓ कहना चाहिए। वर्तमान में देश कौमवाद के मार्ग पर चल पड़ा है। जिससे सामाजिक समरसता जोखिम में है। कई वर्षों से वोटबैंक बनाने में कौम का उपयोग हो रहा है। तभी शहरवासी के सामने चाय की प्याली आ गई। उसके चिन्तन पर एकाएक विराम लगा। चाय की चुस्की लेकर उसने अपने मन-मस्तिष्क को रिलेक्स किया। अनाम पंक्तियां गौरतलब-
चलता है दो चक्र से ये यंत्र है,
एक जनता है और दूसरा तंत्र है,

रखें समतौल दोनों चक्र को, लोकतंत्र का और दूसरा क्या मंत्र है?
पी.एस.सी. घोटाला: शिक्षित बेरोजगार हताशा में

बढ़ रही बेरोजगारी ने शिक्षित युवा वर्ग को हताशा में डाल दिया है। हजारों-लाखों खर्च करके ऊंची शिक्षा प्राप्त की, डिग्री हासिल की और अपेक्षित नौकरिकों का अता-पता न हो, तब उनका डिप्रेशन में रहना स्वाभाविक है। कोरोना महामारी ने यूं भी कइयों की नौकरियां छीन ली है। ऐसे निराशाजनक हालात में यही कह सकते हैं कि ”घायल की गत घायल जानेÓÓ। नौकरी तो अमावस की रात में अंधेरे कक्ष में काली बिल्ली को ढूंढने जैसा प्रयास हो गया है। राज्य में ऐसे हालात में पी.एस.सी. में व्याप्त अनियमितता और भ्रष्टाचार युवावर्ग को भारी आहत कर गया है। विपक्ष की भूमिका में भाजपा बेजोड़ है। भारतीय जनता युवा मोर्चा व वरिष्ठ भाजपाइयों के नेतृत्व में विरोध स्वरूप मानव मंदिर चौक में मुख्यमंत्री व पी.एस.सी. चेयरमैन का पुतला फूंका गया। ऐसे समय भाजपाइयों और पुलिस के बीच झुमाझटकी भी हुई। पुलिस के चाक चौबंद व्यवस्था के बावजूद पुतला फूंकने में भाजपाई सफल रहे, क्यों कि वे सुनियोजित योजना घड़ दो पुतले लाए थे और पुलिस को झांसा देनें में सफल रहे।

आम आदमी और खास जमात आम जनता को महंगाई मार गई:
दुनिया के किसी भी देशों या राज्यों का शासक हो, आम जनता की व्यथा और वाचा को समझने में धोखा खा जाता है तो जनता ऐसे शासक को सत्ता से बाहर कर देती है। शासक से अधिक आम आदमी अधिक सचेत, चतुर व जागृत होता है। क्यों कि, वह केवल आम आदमी ही नहीं, एक समझदार मतदाता भी होता है। मतदाता वह ”आम आदमीÓÓ है और शासक केवल एक ”खास जमातÓÓ है! ”खास जमातÓÓ जब भी ”आम जनताÓÓ को समझने में असफल रहता है, तब उन्हें कुर्सी त्यागने विवश होना पड़ता है। ताजा उदाहरण, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का है, जिन्हें अमेरिकी जनता की नाराजगी झेलनी पड़ी और सत्ता से प्रथम कार्यकाल में ही प्रेसीडेन्टशीप से हाथ धोना पड़ा।
देश में केवल किसान ही अनेक समस्याओं से ग्रस्त नहीं है, आम जनता भी बेहद समस्याग्रस्त है। अभी-अभी ही बजट आया है। बजट में आम आदमी की पूर्णत: उपेक्षा की गई। गैस-पेट्रोल-डीजल की कीमतें फिर बढ़ाई गई। घर-परिवार का बजट बिगड़ गया। खाद्यान्न वस्तुएं, खाद्य तेलों के दाम बढ़े हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा महंगी हुई है। गृह निर्माण महंगा हुआ है। कुल मिलाकर, आसमान की ओर कूच कर रही महंगाई ने आम आदमी का जीना दुभर कर दिया है।
इस विषम हालातों से शासक अनभिज्ञ होंगे, ऐसा सोचा तो नहीं जा सकता। किन्तु, शासक स्थितप्रज्ञ होता है। वह आम जनता के दु:ख में न दु:खी होता है और न उनके सुख में भागीदार होता है। जनता न तो अच्छे दिन का अनुभव कर रही है और न ही चैन से जीवन बसर कर रही है। इसकी फिक्र शासक नेता कब करेंगे?

सफेद हाथी साबित हो रहे थे कई दफ्तर?
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का दंश अपना राजनांदगांव वैसे तो शुरू से ही भोग रहा है। भूपेश सरकार नांदगांव में पहले से संचालित कई सरकारी कार्यालयों को यहां से हटाने का काम कर रही है। इसे लेकर लोगों में नाराजगी भी देखी जा रही है। सरकारी दफ्तरों के यहां से स्थानांतरण को लेकर जिला भाजपा ने करीब दो माह पहले एक बड़ा आंदोलन भी छेड़ा था और कहा था कि भूपेश सरकार नांदगांव से सरकारी कार्यालयों को यहां से अन्यत्र हटाना बंद करे नहीं तो मांगें पूरी नहीं होने तक प्रदेश स्तर पर उग्र आंदोलन किया जाएगा। लेकिन शहरवासी को पता है कोई भी राजनीतिक दल वाले जब कोई आंदोलन करते हैं तो ऐसी बातों को बड़ी सहजता से बोल दिया करते हैं, ताकि उन्हें लोकप्रियता हासिल हो सके। भाजपा ने जब आंदोलन किया था, तब सरकार ने सिर्फ तीन विभागों एडीबी, सेतु निगम और पीएमजीएसवाय के अधीक्षण अभियंता कार्यालय को ही यहां से हटाने का आदेश किया था, किंतु आदंोलन के बाद पाठ्य पुस्तक निगम के कार्यालय को भी हटवा दिया। और अब चिखली में संचालित शासकीय प्रेस को भी रायपुर में शिफ्ट करने की चर्चा जोरों पर है। लेकिन भाजपा है कि अब चुप बैठ चुकी है। सत्तापक्ष यानि कांग्रेस के नेता तो विरोध करने से रहे, क्योंकि आखिर सरकार तो उन्ही की है।

पहली नजर में भाजपा का विरोध और जनप्रतिक्रिया से तो यही लगता है कि भूपेश सरकार राजनांदगांव वासियों के साथ खुलकर भेदभाव कर रही है, लेकिन सच्चाई कुछ और है। कहते हैं ना कि जिस चीज का उपयोग और जरूरत न हो उसे रवाना कर देना चाहिए, बस भूपेश सरकार भी यही कर रही है। दरअसल जिन शासकीय कार्यालयों को सरकार यहां से अन्यत्र शिफ्ट कर रही है, वे सिर्फ सफेद हाथी ही साबित हो रहे थे। पाठ्य पुस्तक निगम के कार्यालय में कामकाज तो कुछ नहीं था और किराए में ही संचालित था। इस कार्यालय को किराए के एवज में प्रति माह लगभग एक लाख रूपए का भुगतान किया जा रहा था। ऐसे में बिना काम के कोई किसी को इतनी बड़ी रकम किराए के रूप में क्यों देना चाहेगा? यही हाल सरकारी प्रेस का भी है, जहां छपाई का काम पहले से कम हो गया है। ऐसे में सरकार के निर्णय को गलत नहीं कहा जा सकता। इतना जरूर है कि जिन दफ्तरों का समुचित और विधिवत उपयोग नहीं हो पा रहा है, उन्हें उपयोगी बनाने के लिए प्रयास अवश्य किया जाना चाहिए।

किसान आंदोलन में किसान कम, नेता ज्यादा!
केन्द्रीय कृषि बिलों के विरोध में दिल्ली में आंदोलन कर रहे किसानों को यंू तो सभी वर्गों का समर्थन मिल रहा है। कई राजनीतिक दल भी किसानों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर किसानों के समर्थन में पोस्ट करने की होड़ मची है। किसान आंदोलन के मुखिया राकेश टिकैत के पक्ष में सोशल मीडिया में तमाम तरह के पोस्ट कर केन्द्र सरकार को जमकर कोसा जा रहा है। सरकार का मजाक उड़ाया जा रहा है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भी शुरूआत से ही किसानों की मांगों और तीनों नए कृषि बिलों को वापस लेने की मांग का खुला समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। देश की राजधानी में करीब ढाई माह से लाखों की संख्या में किसान सपरिवार डटे हुए हैं। रोजाना लंगर भी चल रहा है। इन सबके बावजूद सरकार भी अपनी जिद पर अड़ी हुई है।

किसानों के द्वारा देशव्यापी चक्काजाम आंदोलन के ऐलान के समर्थन में गत छह तारीख को पूरे देश सहित प्रदेश और राजनांदगांव जिले में भी किसान संगठनों के साथ कांग्रेस द्वारा भी हाइवे पर चक्काजाम किया गया। किंतु चक्काजाम आंदोलन में किसान संगठन और कांग्रेस के ही गिनती के लोग शामिल हुए। ऐसा ही नजारा जिले के विकासखंडों में किए गए चक्काजाम आंदोलन में देखा गया। हालांकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के आंदोलन में लाखों की संख्या में किसान डटे रहे। किसानों को दिल्ली तक पहुंचने से रोकने के लिए सरकार द्वारा पहले सड़कों पर कीलें भी लगवाई गई, ताकि उनके वाहन वहां तक पहुंचने न पाए, किंतु इस कृत्य की निंदा होने पर पुन: ठोंकी गई कीलों को निकलवा दिया गया। वैसे कुछ इसी तरह का नजारा भाजपा द्वारा धान खरीदी को लेकर शहर में किए गए जिला स्तरीय आंदोलन में भी नजर आया था, जब भाजपा की ही महिलाएं ग्रामीण महिलाओं के लिबास में बैलगाड़ी में सवार होकर आंदोलन यानि धरना-प्रदर्शन में शामिल होने पहुंची थीं। शहरवासी तो चाहता है कि किसानों का आंदोलन जितनी जल्दी हो सके, खत्म हो वरना यह सरकार के लिए एक बड़ा खतरा साबित जरूर हो सकता है, क्योंकि आगामी दिनों में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं, जिस पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

अंतिम विदाई की बेला में कोरोना महामारी?

करीब सालभर पहले देश में जब कोरोना वायरस महामारी ने दस्तक दी और जिस तरह की असहज परिस्थितियों से लोगों को दो-चार होना पड़ा, तब ऐसा लगने लगा था कि ये कोरोना आखिर जाएगा कब? दरअसल कोरोना लोगों की सोच और कल्पना से बाहर की चीज हो गई थी। तब कोरोना को लेकर न तो सरकार कुछ स्पष्ट रूप से बोल पा रही थी और न ही बड़े-बड़े वैज्ञानिक। लेकिन अब कोरोना महामारी अपनी अंतिम विदाई की बेला में है। इससे ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना वायरस का जीवन चक्र 10-11 माह का ही होता होगा। अब तो टीके की खोज भी हो चुकी है। कोरोना काल के 12 महीनों में अनिश्चितता, त्रासदी और उथल-पुथल से आमजन का सामना होता रहा. लेकिन देश में विकसित हो रही वैक्सीनें लाखों लोगों की इस उम्मीद को जिंदा रखने में सफल रहीं कि इससे अनेक जिंदगियां बचायी जा सकेंगी। महामारी ने 1,54,000 जिंदगियां छीन लीं, लेकिन देश अब मुसीबतों से आगे बढ़ चुका है। भारत दुनिया में सबसे तेजी से 40 लाख लोगों का टीकाकरण वाला देश बन चुका है। हालांकि अगस्त के अंत तक 30 करोड़ लोगों का टीकाकरण होना है, उस लक्ष्य के मद्देनजर यह गति धीमी है। कलेक्टर-एस.पी. ने भी वैक्सीन का टीका लगवाकर जनता को टीका लगाने की प्ररेणा दी है।
कवि प्रदीप रचित भजन चिन्तन योग्य है-
अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम,
सबको सन्मति दे भगवान
इस धरती का रूप न उजड़े
प्यार की ठण्डी धूप न उजड़े
सब को मिले दाता, सब को मिले सुख
का वरदान। सब को सन्मति दे भगवान।
ओ सारे जग के रखवाले
निर्बल को बल देनें वाले
बलवानों को, ओ बलवानों को दे दे ज्ञान
सब को सन्मति दे भगवान।

  • शहरवासी

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