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नक्सलियों को उन्हीं की शैली में जवाब देने की जरूरत, वो हम कर भी रहे हैं

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काउंटर टेरेरिज्म एवं जंगल वॉरफेयर कॉलेज, कांकेर (छत्तीसगढ़) के डायरेक्टर ब्रिगेडियर बीके पंवार (AVSM, VSM) नक्सलियों के बीच दहशत का पर्याय बन गए हैं। वे राज्य में अमन कायम करने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। वहीं, उनका मानना है कि जल्द ही बस्तर इलाका राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन के नक्शे पर उभरेगा।

ब्रिगेडियर पंवार कहते हैं एक वक्त वह भी था, जब भारत के 10 राज्य नक्सली समस्या से जूझ रहे थे, लेकिन अब 30 जिले ही ऐसे हैं जो नक्सल समस्या से प्रभावित हैं। इनमें से 8 जिले छत्तीसगढ़ के हैं। अब वे बीजापुर-सुकमा में अपने अंतिम ‘किले’ को बचाने में लगे हुए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि नक्सलियों ने बीजापुर में आदिवासियों को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। सुरक्षाबलों को भी नुकसान हुआ है, हमने भी उन्हें काफी नुकसान पहुंचाया है। खास बात यह है कि अब सुरक्षाबलों को लेकर उनके भीतर दहशत है।

बस्तर बनेगा पर्यटन स्थल : पंवार कहते हैं कि वर्तमान में इनका लीडर हिडमा है। ये लोग कम्युनिस्ट इंडिया बनाना चाहते थे। ये नया हिन्दुस्तान बनाना चाहते थे। ये लोग तीरकमान लेकर हिन्दुस्तान की सत्ता पर कब्जा करना चाहते थे, लेकिन यह संभव नहीं है। ऐसा हो भी कैसे सकता है। उन्होंने कहा कि मेरी ज्यादातर सर्विस नगालैंड, त्रिपुरा और पंजाब में रही, वहां शांति है। जल्द ही बस्तर इलाके में आप शांति देखेंगे। ये क्षेत्र राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बनने जा रहा है।ब्रिगेडियर से जब पूछा गया कि बस्तर इलाके में तो भांग की खेती होती है, ऐसे में कैसे यह इलाका पर्यटन स्थल बनेगा? पंवार ने कहा- यहां जंगली जानवर हैं, बाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी है, चित्रकोट में नियाग्रा प्रपात की तरह वॉटर फॉल भी है, दंतेश्वरी माता का मंदिर है। उन्होंने कहा यहां पर भगवान राम ने बहुत वक्त बिताया था। लंका पर हमले की योजना भी यहीं बनी थी। दंतेश्वरी माता के मंदिर में आकर हमें नई ताकत मिलती है।

नक्सलियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने की जरूरत : वॉरफेयर कॉलेज की ट्रेनिंग के संबंध में ब्रिगेडियर पंवार ने बताया कि कोई सिखलाई समस्या के समाधान के लिए होनी चाहिए। एक वक्त था जब पुलिस डंडे लेकर चलती थी। क्योंकि उनकी ट्रेनिंग ही एफआईआर दर्ज करने या फिर तहकीकात करने तक सीमित थी। जबकि, नक्सली गोरिल्ला युद्ध में माहिर थे। उन्हें बंदूक चलाने का प्रशिक्षण भी प्राप्त था। आईईडी ब्लास्ट भी आसानी से करते थे। 60-60 सुरक्षाकर्मियों की जान गई है इस इलाके में। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल केएम सेठ ने इस समस्या को समझा और तय किया कि पुलिस को भी गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग की जरूरत है।

इसी बीच, मैं कांगो जाना चाहता था क्योंकि मुझे जंगल पसंद हैं। उन्होंने मुझे छत्तीसगढ़ आने का प्रस्ताव दिया और कहा कि आप छत्तीसगढ़ आइए वहां कागो जैसा ही माहौल है। उसके बाद मुझे कांकेर आने का मौका मिला। दरअसल, नक्सलियों ‘बंदूक की नोक से ताकत पैदा होती है’ वाली विचारधारा में विश्वास रखते हैं। ऐसे में बंदूक की नोक को खत्म करने के लिए अपनी बंदूक की नोक को भी तेज करने की जरूरत है। हम इसमें काफी हद तक सफल भी रहे हैं। यही परिणाम रहा कि आज पुलिसवाले भी गुरिल्ला की तरह नजर आते हैं।

स्थानीय लोगों को भी मदद : उन्होंने कहा कि 800 एकड़ क्षेत्र में ट्रेनिंग सेंटर चलाने के साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग का काम भी हम कर रहे हैं। पहाड़ियों को काटकर हमने हेलीपैड बना दिया है। इस क्षेत्र में 11 झीलें बन गई हैं। यहां अब प्रवासी पक्षी भी आने लगे हैं। जंगली जानवर भी यहां घूमते हैं। हम भी उनका ध्यान रखते हैं। हम स्थानीय लोगों से भी जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। हम उनके बीच जाकर उनकी बिजली, पानी के साथ ही विधवा पेंशन आदि समस्याओं को सुलझाते हैं। हम संबंधित विभागों से संपर्क कर उनकी समस्याओं का समाधान करवाते हैं। यही कारण है कि धीरे-धीरे उनका विश्वास भी हमारे प्रति बढ़ रहा है।

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