मुंबई से सटे विरार के विजय वल्लभ कोविड अस्पताल में आग से 14 मरीजों की मौत, मुंबई के ही भांडुप उपनगर के सनराइज कोविड अस्पताल में आग 11 मरीजों की जान गई, ठाणे के निजी अस्पताल में आग ने 4 लोगों को जीवन छीना, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कोविड अस्पताल में आग से 5 मरीज काल के गाल में समा गए, सूरत के आयुष अस्पताल में आग लगने से 4 मरीजों की मौत, वाराणसी के एपेक्स अस्पताल के आईसीयू वार्ड में आग से अफरा-तफरी। ये सभी घटनाएं हाल ही की हैं और चुनिंदा भी। देशभर में कई ऐसे स्थान हैं जहां आग लगने की और भी घटनाएं हुई हैं।
कोरोनावायरस काल में पहले से ही मानसिक रूप से टूटे लोगों को इन घटनाओं ने झकझोर कर रख दिया। इसलिए भी क्योंकि लोग अस्पतालों में जीवन की आस लेकर आए थे, उन्हें उम्मीद थी कि वे बीमारी को मात देकर एक बार फिर जिंदगी से गलबहियां करेंगे। लेकिन हुआ इसका उलटा ही, इन सभी को मौत ने अपने आगोश में ले लिया।
दरअसल, गर्मी के मौसम में एसी, पंखे, कूलर आदि इलेक्ट्रिक उपकरणों को ज्यादा से ज्यादा उपयोग होता है। वातावरण का तापमान भी काफी ज्यादा होता है। एक छोटी-सी चिंगारी को आगे पकड़ने में बिलकुल भी देर नहीं लगती। यही कारण है कि इस मौसम में आग की सर्वाधिक घटनाएं होती हैं।
इंदौर में करीब 35 वर्षों का फायर फाइटिंग का अनुभव रखने वाले सब-इंस्पेक्टर संतोष कुमार दुबे कहते हैं कि गर्मी के मौसम में आग 50 से 70 फीसदी घटनाएं शॉर्ट सर्किट के कारण होती है। टैंपरेचर पहले ही ज्यादा होता है। लगातार चलते-चलते इलेक्ट्रिक उपकरण भी काफी गर्म हो जाते हैं और उनमें शॉर्ट सर्किंट की आशंका बढ़ जाती है। कई बार बिजली की ओवर लोडिंग के कारण वायरिंग भी जल जाती है। इससे भी आग की घटनाएं घटित हो जाती हैं।
हालांकि कई मामलों में संस्थानों की लापरवाही भी आग का कारण बन जाती है। इस तरह के संस्थान अग्नि से सुरक्षा के लिए नियमों का पालन नहीं करते। छोटी-मोटी आग को संस्थान के कर्मचारी ही बुझा सकते हैं, लेकिन उपकरणों के अभाव में ऐसा नहीं कर पाते और आग बड़ा रूप ले लेती है।
दुबे कहते हैं कि आग बुझाने के दौरान हमारी पहली प्राथमिकता लोगों को बचाने की होती है। आग लगने से जो धुआं उठता है, उसके कारण दम घुटने से ज्यादा लोगों की मौत होती है। वे कहते हैं कि अस्पतालों में कई ऐसे रसायन या दवाइयां होती हैं, जिनके कारण धुआं और जहरीला हो सकता है। साथ ही कोरोना काल में सैनेटाइजर का भी बड़ी मात्रा में उपयोग हो रहा है, जो कि ज्वलनशील भी होता है। ऐसे में आग और भड़क जाती है।
सब इंस्पेक्टर संतोष दुबे कहते हैं कि कई बार घटनास्थल बहुत ही संकरे इलाके में होने से फायर ब्रिगेड के वाहन को पहुंचने में मुश्किल होती है। सबसे ज्यादा मुश्किल तलघर की आग पर काबू पाने में आती है क्योंकि वहां धुएं के निकास की व्यवस्था नहीं होती है और कुछ दिखाई नहीं देता है। ऐसे में घुटनों के बल चलकर या लेटकर कोशिश करनी पड़ती है। क्योंकि धुआं ऊपर उठता है और जब हम घुटनों के बल होते हैं तो सभी चीजों को देख पाते हैं। वे कहते हैं कि सबसे ज्यादा आग की घटनाएं भी गर्मियों के मौसम में ही होती हैं। फायर ब्रिगेड को भी सबसे ज्यादा कॉल इसी दौरान आते हैं।