राजनीति को लेकर एक के बाद एक नई खबर आती ही रहती है। कुछ समय पहले जहां मध्यप्रदेश राज्य में पूर्व सीएम कमलनाथ के समय पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य समेत कई विधायक भाजपा में शामिल हुए थे जिससे कांग्रेस लड़खड़ाकर गिर गई थी और फिर से राज्य में भाजपा की जीत हुई। एक बार फिर यूपी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका देकर जितिन प्रसाद ने भाजपा का हाथ थाम लिया है।
जी हां उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक हलचल के चलते केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल की उपस्थिति में कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए हैं। जानकारी के लिए आपको बतादें कि राष्ट्रीय प्रवक्ता और भाजपा के सांसद अनिल बलूनी ने बुधवार सुबह एक ट्वीट कर जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने की ओर एक संकेत भी दिया था।
कांग्रेस के बड़े ब्राम्हण चेहरों में से एक जितिन प्रसाद भी पिछले कई दिनों से पार्टी हाईकमान से नाराज थे और इस सिलसिले में उन्होनें यूपी कांग्रेस के कुछ नेताओं से अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी लेकिन ऐसा करने से जितिन प्रसाद को कोई फायदा नहीं हुआ। जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हुए हैं तब से ही जितिन प्रसाद कांग्रेस के लिए एहम नेता थे लेकिन जितिन का भाजपा में शामिल होना कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है।
जितिन प्रसाद ने भाजपा का हाथ थामने के बाद कहा कि ‘‘मेरा कांग्रेस पार्टी से 3 पीढ़ियों का साथ रहा है। मैंने ये महत्वपूर्ण निर्णय बहुत सोच, विचार और मंथन के बाद लिया है। आज सवाल ये नहीं है कि मैं किस पार्टी को छोड़कर आ रहा हूॅं, बल्कि सवाल ये है कि मैं किस पार्टी में जा रहा हूॅं और क्यों जा रहा हूॅं? पिछले 8-10 वर्षों में मैंने महसूस किया है कि अगर कोई एक पार्टी है, जो वास्तव में राष्ट्रीय है, तो वह भाजपा है। अन्य दल क्षेत्रीय है लेकिन यह एक राष्ट्रीय दल है, आज देश जिस स्थिति से गुजर रहा है, अगर कोई राजनीतिक दल या नेता देश के हित के लिए खड़ा है तो वह भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं।
जितिन का भाजपा में शामिल होने का कारण कांग्रेस में उनकी अहमियत को लेकर है दरअसल प्रियंका गांधी की जब उत्तर प्रदेश सरकार में एंट्री हुई तब से ही जितिन प्रसाद की अहमियत पार्टी की नजरों मे कम होती नजर आने लगी जिसका एहसास जितिन को भी हुआ। यूपी में प्रियंका के आने के बाद प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार उर्फ लल्लू को बनाया गया। इतना ही नहीं ऐसे ही कई अहम समितियों में जितिन का नाम दूर-दूर तक नजर नहीं आया। इसके बाद जितिन को प. बंगाल का चुनाव प्रभार का दायित्व सौंपा गया। जिससे जितेन्द्र को यह समझ आने लगा था कि उन्हे यूपी की राजनीति से दूर किया जा रहा है।