शहरहवासी, न जाने क्यों मुझे राजनीतिज्ञों से धीरे-धीरे नफरत होती जा रही है। राजनीति और राजनीतिज्ञों में बहुत फर्क भी दिखाई दे रहा है। एक समय यह था, जब राजनीति शब्द के मायने थे। आज उसका अभाव है। शहरवासी ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा कि चम्पक आज राजनीति शब्द की अपनी शब्ददेह है, किन्तु उसका अर्थदेह बदल गया है। धर्म के एक भाग के रूप में रहा आध्यात्म यह कहता है कि देह याने शरीर तो परिवर्तनशील है, किन्तु आत्मा अपरिवर्तनीय है। किन्तु, वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में यह कि ‘‘राजनीति’’ शब्द पर इस आध्यान्मिक दर्शन का सत्य लागू नहीं होता। इसके विपरीत, किसी भी प्रकार के सत्य से विमुख और विमुक्त हो जाना, यह आज की कथित राजनीति का चरित्र है।
कुछ-कुछ समझा, कुछ नहीं भी समझा। थोड़ा इसे डिटेल में समझाओ डीयर, चम्पक जिज्ञासा से भरा था। तब शहरवासी ने समझाया कि आदमी की आंखें बोलती हैं। आंखों ही आंखों में हुआ सम्पर्क इतना कुछ समझा देता है कि उससे मिलन की कैमिस्ट्री का जन्म होता है। इस कैमेस्ट्री का परिणाम यह आता है कि कोई भी राज करने वाला शासक राजनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ आदमी बन जाता है।
लंबे अरसे से हो यह रहा है चम्पक कि शासक नेता राजनीति नहीं करता। उसके बदले, लंबे समय तक शासन कैसे किया जाए, राज कैसे किया जाए? इसके लिए नीति बड़ता है। जिसका राजनीति के साथ मामुली ही अंतर रहता है। एक पतली भेद रेखा के समान यह अंतर होता है। सभी पर एक समान दृष्टि और समभावना के सिद्धांतों को मानने वाले कई लोगों को राजनीति और शासन करने वालों की नीति में कोई अंतर दिखाई नहीं देता।
वाह! शहरवासी राजनीति और राज करने की नीति के फर्क को तुमने बखूबी समझाया, बाबूलाल ने कहा। पिछले लंबे समय से राज करने की नीति एक सही दिशा की ओर अग्रसर थी। किंतु, इसका भी दावा नहीं किया जा सकता कि वाकई में वह सही दिशा की ओर आगे बढ़ रही थी। सामान्यत: ऐसी नीति के विरूद्ध कोई विद्रोह या विरोध नहीं होता। किंतु, अचानक ऐसा क्या हो गया, कब हो गया, किस प्रकार हो गया कि राज करने वाली नीति विपरीत दिशा की बढ़ चली है।
और उधर राजनीति भी अवरोधकों का सामना कर रही है। राजनीति चंूकि सत्ता प्राप्ति का एक साधन बन कर रह गई है। इस कारण, राजनीति भी पहाड़ों, नदियों, जंगलों, खाईयों के मार्ग से गुजर रही है। खासकर, विपक्षीय राजनीतिज्ञों को ऐसा ही कड़वा अनुभव हो रहा है। राजनैतिक प्रकृति की निर्भयता भी डगमगा रही है।
दूसरी ओर, राज करने वाली नीति का मार्ग नेशनल हाईवे जैसा है। वह सुपरफास्ट स्पीड रखे हुए है। राजनीति के चालकों को यह कतई रास नहीं आ रहा है। क्योंकि उक्त नीति राजनीति को रिटायर करने से भी बाज नहीं आ रही है। उन्हें इतना तो समझ में आ रहा है कि राज करने वाली नीति एक अदृश्य वाइरस जैसा भविष्य में घातक परिणाम दिखला सकती है। विडम्बना यह कि राजनीति का अब उतना आकर्षण नहीं रहा जितना आकर्षण राज करने वाली नीति का है। राजनीति का कीड़ा साफ्टवेयर जैसा है और राज करने वाली नीति का काम हार्डवेयर जैसा है। दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत पड़ते रहती है। दोनों ही एक दूसरे के बगैर अधूरे हंै। वास्तव में वे एक दूसरे के पूरक ही हंै।
राजनीति की दिशा में प्रगति कर रहा देश पिछले अनेक वर्षों से राज करने की नीति की दिशा में जा रहा है। विडम्बना यह भी कि राजनीति की दिशा में चलने वाले लोग भी न जाने क्यों राज करने की दिशा में चलना अच्छा समझते हैं। राजनीति के पुराने वरिष्ठ राजनीतिज्ञ भी यह कारूणिक चित्र देखकर अरण्य रूदन कर रहे हैं। राज करने की नीति के क्षेत्र में कई सेवाभावी-जनसेवी स्टाकिस्ट, दलालों और बिचौलियों की सक्रियता ने भी राजनीति को हासिये में ला दिया है। आज राजभक्त राजनीति को धत्ता बताकर शासन राज की नीति के शरणागत होकर प्रसन्नचित्त है। शायद किसी ने इसीलिए कहा कि राजनीति आज विधवा विलाप कर रही है और राज करने की नीति अय्यासी में रचपच है।
निगम की बजट सभा विवादित, भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे
तुलसी या संसार में भांति भांति के लोग,
हिलिए मिलिए प्रेम सों, नदी नांव संयोग।
मित्र, संत कवि तुलसीदास की यह दो पंक्तियां हैं तो व्यवहारिक, किंतु शायद ही किसी क्षेत्र में हिल मिल कर रहने वाले लोग अब दिखाई देते हैं। ताज्जुब कि एक ही राजनैतिक दल के नेता जनहित, विकासहित और संस्थाहित में हिलमिल कर नहीं रहते। ताजा उदाहरण नगर निगम की बजट सभा का है। नगर निगम में कांग्रेस की नेता हेमा सुदेश देखमुख की सरकार है। उन्हीं की पार्टी की बजट विभाग की चेयरवुमन ने नगर निगम प्रशासन पर आरोप लगाया कि उन्हें दुकानों के आबंटन की जानकारी ही नहीं दी गई। जबकि, यह उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। इसी के साथ, विभिन्न अनेक मुद्दों पर कांग्रेस व भाजपा पार्षदों में जमकर तकरार हुई। कहीं-कहीं अप्रिय स्थिति भी बनी। बजट बैठक शुरूवाती दौर में ही विवादों में घिर गई थी। निगम प्रशासन भी उन्हीं के इशारों में चलता है, जिनकी सरकार होती है। पूरे देश में यह परम्परा चल रही है। नौकरशाह उन्हें ही अपना मालिक मानते हंै, जिन पार्टी की सरकार होती है। सरकार बदलते ही वे नई सरकार के प्रति वफादारी दिखाते हैं। निवृतमान सरकार व उनके नुमाइंदों की ओर से मुंह फेरने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता। सो निगम आयुक्त परम्परागत महापौर के पक्षधर रहे।
शहर स्थित बागबगीचों की दुर्दशा भी किसी से भी छिपी नहीं है। गार्डन पुष्प वाटिका के सौंदर्यीकरण में तीन किश्तों में एक करोड़ से ज्यादा की राशि आबंटित हुई, किंतु वाटिका के जस के तस दर्शन हो रहे हैं। 21वीं सदी में एक ही गार्डन के नाम पर अलग-अलग प्रोजेक्ट बनाए गए और इन प्रोजेक्टों पर जमीनी धरातल पर तो नहीं, केवल कागजों में ही खर्च होना बताया गया है। लोगों को सुबहा है कि ऐसा बेखौफ भ्रष्टाचार राजनैतिक संरक्षण में ही संभव है।
अनियमितताओं, भ्रष्टाचार व आरोपों-प्रत्यारोपों के कारण निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की स्थिति जनता में अप्रिय हो रही है। आय के स्रोत का असंतुलित बंटवारा कर वसूली में अवरोध, जनता का हतोत्साहित होना, नगर पालिक निगम उत्तरदायित्व से विमुख है। रचनात्मक कार्यों में कमी से भी जनता में निराशा है। गंदी बस्तियों में सफाई का अभाव है। वर्षा ऋतु में वृक्षारोपण का कार्य युद्धस्तर पर शुरू होने जा रहा है। जहां निरीक्षण व देखभाल आवश्यक है। सडक़ों के किनारे भी छायादार वृक्षों का रोपण होगा। ऐसे में प्रशासन-शासन की जिम्मेदारी यह होगी कि वृक्षारोपण फलदायी हो।
रक्तदान शिविर में कौमी एकता की मिशाल
शहर में पहली बार आयोजित भव्य और ऐतिहासिक रक्तदान शिविर ने अपनी अलग छाप छोड़ी। शिविर को लेकर जिस तरह से हर वर्ग में उत्साह देखा गया और हर जाति वर्ग के लोगों ने स्वस्फूर्त आकर शिविर में आकर रक्तदान किया, उससे कौमी एकता की मिशाल नजर आई। अभिलाषा स्कूल में ‘रक्तदान बनेगा जन अभियान’ समिति का आयोजन इस मायने में भी सार्थक और ऐतिहासिक रहा कि पहली बार दो सौ अधिक लोगों ने यहां पहुंचकर रक्तदान किया। दरअसल इस शिविर का आयोजन जिले में 12 साल पहले नक्सली वारदात में शहीद हुए तत्कालीन पुलिस कप्तान व्ही.के.चौबे और 28 पुलिस जवानों की शहादत की याद और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए किया गया था। रक्तदान वर्तमान की सबसे अहम जरूरत होने के साथ ही एक बड़ा पुण्य का काम भी है। इस आयोजन में शरीक होने आए पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी अपने उद्बोधन में स्पष्ट किया कि हम सभी के रक्त यानि खून का रंग लाल ही होता है। हमारे द्वारा किया गया रक्तदान न जाने कब, किसके काम आए, इसका पता स्वयं रक्तदाता को ही नहीं रहता। शहरवासी ने रक्तदान शिविर में पहली बार हर जाति, धर्म, समाज सहित कांग्रेस, भाजपा, अधिकारी-कर्मचारी सहित आम जनता को एक साथ देखा। वास्तव में यह गैर राजनैतिक आयोजन था। यहां सर्व धर्म समभाव के नजारे ने लोगों को एक संदेश दिया कि हम सब एक हैं, भले ही हम अलग-अलग जाति, धर्म के अनुयायी हों। शहरवासी तो चाहता है कि ऐसी एकता और भाईचारा हमेशा बनी रहे।
कवि शेर जंग गर्ग का शेर मुखातिब है –
देश को शौक से खाते रहिए,
चैन के ढोल बजाते रहिए,
क्रांति को भ्रांति बनाए रहिये,
शांति का शोर मचाते रहिये,
तर्क सब ‘‘गर्क’’ बढ़ाकर सम्पर्क
हो फक्त ‘‘हां’’ में मिलते रहिए।
– दीपक बुद्धदेव