चंपक और बाबूलाल आज बहुत खुश थे। दोनों मानव मंदिर चौक पर खड़े होकर चाय की चुस्कियों के साथ हंस-हंस कर बातें कर रहे थे। चंपक कह रहा था कि अपना भारत भी किसी देश से कम नहीं है। हम भारतीय भी कोई चीज हैं। यह बात हमने दुनिया को बता दी है। अब हमारे देश की चर्चा दुनिया में हो रही है। हमने भी ओलंपिक में देश का परचम लहराया है। बाबूलाल ने चंपक की हां में हां मिलाते हुए कहा- तुम ठीक कहते हो चंपक। भारत ने 41 साल बाद ओलंपिक में हॉकी का मेडल जीता है। इससे पहले 1980 में मॉस्को ओलंपिक में भारत ने वासुदेवन भास्करन की कप्तानी में गोल्ड मेडल जीता था। टीम ने इस ओलंपिक में अद्भुत प्रदर्शन किया था। दोनों की बातें चल रही थी, तभी शहरवासी भी वहां जा पहुंचा। दोनों की बातें सुनकर शहरवासी भी खुश हुआ कि आज देश की जीत को लेकर हर आदमी इतना खुश है। खुशी हो भी क्यों नहीं, आखिर सवाल देश के मान-सम्मान का है। शहरवासी ने चंपक और बाबूलाल से कहा- तुम दोनों खेल और ओलंपिक की बातें कर रहे हो तो सुनो, मैं भी तुम दोनों का ज्ञानवर्धन किए देता हूं। राजनांदगांव को खेल नगरी, हाकी की नर्सरी और संस्कारधानी आदि नामों से जाना जाता है। संस्कारधानी में भी कई ऐसे धुरंधर खिलाड़ी भरे पड़े हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी खेल प्रतिभा का लोहा मनवाया है। खेल नगरी का नाम रौशन किया है। शहरवासी की बातों को चंपक और बाबूलाल ने बड़े गौर से सुनते हुए कहा- आपको तो ओलंपिक की बड़ी अच्छी जानकारी है। ओलंपिक में भारत का नाम रोशन करने वाले खिलाडिय़ों के बारे में और कुछ बताइये।
तब शहरवासी ने कहा- तो सुनो, टोक्यो ओलंपिक 2021 में भारतीय खिलाडिय़ों ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए सात मेडल अपने नाम किए। भारत ने एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य पदकों के साथ ओलंपिक का समापन किया है। अब तक ओलंपिक खेलों में यह भारतीय खिलाडिय़ों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। नीरज चोपड़ा ने शनिवार को इतिहास रचते हुए देश को पहला गोल्ड मेडल दिलाया। इससे पहले पहलवान बजरंग पुनिया ने भी कुश्ती में ब्रॉन्ज जीतकर देश के पदकों की संख्या बढ़ाई थी। भारतीय महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक की शुरुआत में सिल्वर मेडल जीतकर भारत का खाता खोला। चानू ने 49 किलोग्राम वर्ग में यह कामयाबी हासिल की। उन्होंने क्लीन एंड जर्क में 115 किलो और स्नैच में 87 किलो से कुल 202 किलो वजन उठाकर पदक अपने नाम किया।
पहलवान रवि दहिया ने टोक्यो ओलंपिक में 57 किग्रा भार वर्ग कुश्ती में सिल्वर मेडल जीता। उन्होंने अपनी कामयाबी से भारत के लिए खाते में दूसरा सिल्वर मेडल जोड़ दिया था। उनसे देश को गोल्ड की उम्मीदें थीं, लेकिन वे फाइनल मुकाबले में जीत हासिल नहीं कर पाए। भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने भारत के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रचा। वे ओलंपिक में लगातार दो बार मेडल जीतने वाली पहली बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। सिंधु ने 2016 रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता था। उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल मुकाबले में चीनी खिलाड़ी को हराकर मेडल अपने नाम किया।
बॉक्सिंग में भारत की लवलीना बोरगोहेन ने टोक्यो ओलंपिक में भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया। उन्होंने शुरुआत में शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन सेमीफाइनल में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पहलवान बजरंग पुनिया ने शनिवार को टोक्यो ओलंपिक में शानदार सफलता हासिल करते हुए फ्री स्टाइल कुश्ती के 65 किग्रा. भार वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया। बजरंग ने भारत की झोली में चौथा कांस्य और कुल छठवां पदक डाला। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जर्मनी को हराकर ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। ओलंपिक में देश के खिलाडिय़ों द्वारा मेडल जीतने पर संस्कारधानी में खुशी की लहर दौड़ गई। उत्साही खिलाडिय़ों और युवाओं ने भी विभिन्न जगहों पर अपने-अपने अंदाज में खुशियां मनाई।
स्कूलों के पट खुले पर रौनक गायब
कोरोना वायरस का दहशत ऐसा रहा कि डेढ़ साल तक स्कूलों में ताले लटके रहे। सरकार न तो स्कूलों को शुरू करने की हिम्मत जुटा पाई और न ही विद्यार्थियों व उनके पालकों ने कहा कि स्कूलों को शुरू कराओ। कारण था- जान की परवाह। वायरस के संक्रमण का ऐसा भयावह दुष्प्रभाव रहा कि अच्छा-खासा आदमी भी इसकी चपेट में आकर दुनिया से उठ गया। अपने ईर्द-गिर्द लोगों की लगातार हो रही मौतों ने सबको झकझोर कर रख दिया था। लगातार डेढ़ माह तक चले लाकडाउन और लोगों की सावधानी का ही नतीजा रहा कि कोरोना के केस लगातार कम होते चले गए और अब स्थिति को लगभग सामान्य कहा जा सकता है। हालांकि एक-दो दिनों के भीतर ईक्का-दुक्का कोरोना के केस सामने आ रहे हैं, लेकिन सरकार ने स्थिति को सामान्य मानकर स्कूलों को शुरू करने की हिम्मत दिखाई और दो अगस्त से स्कूलों के पट भी खुल चुके हैं। लेकिन स्कूलों में वैसी रौनक नजर नहीं आ रही है, जैसा कि देश में कोरोना आने के पहले दिखती थी। सरकार ने पहली से पांचवीं, आठवीं, दसवीं और 12वीं कक्षाओं के संचालन की अनुमति दे दी है, वह भी 50 फीसदी हाजिरी के साथ। बच्चे भी कोरोना संक्रमण की आशंका के बीच डरे-सहमे स्कूल जा रहे हैं। पालक भी अपने बच्चों को स्कूल जरूर भेज रहे हैं, पर डर उन्हें भी सता रहा है। स्कूलों में भी कोरोना प्रोटोकाल का पालन अनिवार्य होने से सब कुछ असहज सा लग रहा है। इन तमाम कारणों से स्कूलों में पहले जैसी रौनक नजर नहीं आ रही है। बहरहाल है जान है तो जहान है, इसलिए सावधानी ही बचाव है, इस मंत्र का पालन हम सबको करना होगा।
चिटफंड में डूबे रूपए वापस मिल पायेंगे?
कहते हैं लालच बुरी बला, इस कहावत को सबने सुना है और इसका मायने भी सबको पता है, लेकिन यह मानव स्वभाव है कि व्यक्ति कम में अधिक पाने की लालसा में हरदम तैयार रहता है। इसी मनोवैज्ञानिक कारण का जबर्दस्त लाभ उठाते हुए चिटफंड कंपनियों और उनके एजेंटों ने भी उठाया। तत्कालिन भाजपा सरकार ने इस बाबत मौन साध रखा था। लेकिन इससे उन्हें हम मनोवैज्ञानिक या उसके जानकार नहीं कह सकते। क्योंकि जिनको अपना कारोबार करना है, वह तो लालच देने का प्रपंच करता ही है। चिटफंड कंपनियां अपनी जगह पर हैं। इन कंपनियों में लोगों को प्रलोभन देकर उनकी कमाई की गाढ़ी रकम को निवेश कराकर उन्हें चूना लगाने वाले एजेंट ही हैं, जिनके द्वारा स्वयं को कंपनी के कर्ताधर्ता के रूप में पेश कर, तमाम तरह के सब्जबाग दिखाकर, जमा रकम की वापसी की गारंटी देकर अपने ही करीब के लोगों को मुर्गा बनाया गया। निवेशकों ने भी सोचा कि यह एजेंट तो अपने ही परिचित का है, रिश्तेदार है अथवा फलां व्यक्ति का दोस्त है तो क्यों न एक बार भरोसा कर दांव खेल लिया जाए। बस यही सब कुछ हुआ है चिटफंड में पैसा जमा करने के खेल में। अब जबकि कंपनियां डूब गई तो जमा रकम भी डूब गई, उसके बाद गारंटी देने वाले एजेंट भी अपना मुंह दिखाने से कतराने लगे। बड़ी-बड़ी बाते करने वाले एजेंटों की तो बोलती ही बंद हो गई थी। वह तो भला हो भूपेश सरकार का, जिन्होंने चुनाव पूर्व अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि चिटफंड कंपनियों में डूबे निवेशकों की रकम को वापस दिलाएगी। अब इसके लिए निवेशकों से आवेदन लिए जा रहे हैं। जिले मेें ही हजारों लोग हैं, जिनके करोड़ों रूपये चिटफंड में डूबे हुए हैं। सरकार द्वारा आवेदन मंगाए जाने से लोगों को उम्मीद जरूर बंधी है कि कंपनी के प्लान में दी गई गारंटी राशि की न सही, मूलधन की राशि तो अवश्य मिल जाएगी, लेकिन यह सब आसान नहीं है। फिर भी उम्मीद की जानी होगी कि सरकार निवेशकों को जरूर लाभ दिलाएगी।
भाजपा में पद पाने और जुडऩे की होड़भाजपा में इन दिनों अपने विभिन्न मोर्चा, प्रकोष्ठों में नई-नई नियुक्तियों का दौर चल रहा है। अखबारों में रोजाना किसी न किसी मोर्चा/प्रकोष्ठ की कार्यकारिणी के विस्तार, गठन की खबरें पढऩे को मिल रही हैं। शहरवासी को जहां तक याद है कि अभी तक सिर्फ जिला भाजपा में ही मंडल अध्यक्षों की नियुक्तियां होती थीं, किंतु इसे विस्तार देते हुए अब जिला भाजयुमो में भी मंडल अध्यक्ष बनाए गए हैं। इसके अलावा महिला मोर्चा में भी कुछ नए प्रयोग किए गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिला भाजपा अध्यक्ष की अनुशंसा पर जिन्हें पदाधिकारी नियुक्त किया गया है, अब उन्हीं के द्वारा जिलाध्यक्ष की बगैर सहमति के मनमाने ढंग से अपनी कार्यकारिणी को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसे लेकर जिलाध्यक्ष का बयान भी आया कि अमुक मोर्चा/प्रकोष्ठ की कार्यकारिणी में उनकी कोई अनुशंसा नहीं है। दूसरी ओर भाजपा में कई उत्साही युवा हैं, जो पद की उम्मीद लेकर चल रहे थे, किंतु उन्हें मौका नहीं मिला, ऐसे लोगों में रोष भी देखा जा रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि आज भाजपा प्रदेश में सत्ता में नहीं है, बावजूद इसके विशेषकर युवाओं में भाजपा में शामिल होने और पद पाने की होड़ सी मची हुई है। अक्सर यही देखने में आया है कि जिस पार्टी की सरकार होती है, सब उसी की ओर दौड़ते हैं, लेकिन प्रदेश में सत्ता से बेदखल हो चुकी पार्टी के प्रति युवाओं का लगाव भाजपा के आगामी भविष्य के लिए शुभ संकेत से कम नहीं है। शहरवासी को लगता है कि भाजपा में जुडऩे के लिए युवाओं में जो होड़ है, उसके केन्द्र में डॉ. रमन सिंह ही हैं। डॉ. सिंह जिले में भाजपा के एक ऐसे सर्वमान्य नेता हैं, जिनके सहज, सरल, सौम्य व्यवहार के कारण युवाओं में आज भी उनके प्रति एक अलग आकर्षण हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए और आज सिर्फ एक विधायक होने के बावजूद शहर सहित जिले में उनकी आमजन तक पहुंच में कोई कमी नजर नहीं आती। माह में तीन-चार बार उनका यहां आगमन होता है और छोटे-छोटे से कार्यकर्ताओं के घरों में जाकर मिलना, बातचीत करना, युवाओं को काफी प्रभावित कर रहा है।
कब आएगा सामने बूढ़ासागर का भ्रष्टाचार?
प्रदेश में सत्तासीन होने के बाद भूपेश सरकार ने भाजपा सरकार के कार्यकाल में निर्माण सहित विभिन्न कार्यों में हुए तथाकथित भ्रष्टाचार की जांच कराने के लिए एसआईटी का गठन किया था, किंतु आज पर्यंत किसी भी मामले की जांच की कार्यवाही कहां तक आगे बढ़ी, क्या-कुछ बातें सामने आई या जांच अभी भी अधूरी है अथवा प्रक्रियाधीन है, इसका किसी को पता नहीं है। कुछ ऐसा ही हाल संस्कारधानी के बूढ़ासागर में हुए निर्माण कार्यों का है। दरअसल नगर निगम द्वारा पूर्व महापौर के कार्यकाल में करोड़ों रूपयों की लागत से बूढ़ासागर के सौंदर्यीकरण का कार्य कराया गया है। कार्य अभी भी पूरे नहीं बल्कि अधूरे पड़े हैं, इसके बावजूद कार्य में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। मामला नगर निगम की सामान्य सभा में उठा। फिर जांच समिति के गठन का प्रस्ताव पारित किया गया, लेकिन जांच रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हो पाई है। और अब इसे ही लेकर निगम में विपक्षी दल महापौर पर सवाल दाग रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष ने महापौर पर न सिर्फ गंभीर आरोप लगाए हैं, बल्कि चुनौती भी दी है कि पूर्व में कराई गई जांच की रिपोर्ट क्यों सार्वजनिक नहीं की गई और दोबारा जांच के लिए समिति क्यों नहीं बनाई गई? बूढ़ासागर के सौंदर्यीकरण को लेकर चर्चा तो यही है कि इसमें जमकर गड़बड़ी हुई है, लेकिन गड़बड़ी कैसे हुई है, किन लोगों के बीच में रूपयों का बंटवारा हुआ है? इसका खुलासा होना बाकी है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसमें दोनों दलों के नेता शामिल हैं, इसलिए मामले को खटाई में डालकर रखा गया है, ताकि बात दबी रहे। अब तो शहरवासी भी चाहता है कि सच्चाई जो भी हो, उसे सार्वजनिक कर जनता को जरूर बताना चाहिए।
सावन में सूखा रहा हरेली का पर्व
हरियाली का पर्व है हरेली। हरियाली को ही छत्तीसगढ़ में हरेली तिहार यानि त्यौहार के रूप में किसान भाई मनाते हैं। यह हमारे प्रदेश का परंपरागत ग्रामीण त्यौहार है, जिसमें नांगर यानि हल, बैल और कृषि उपकरणों की पूजा की जाती है। एक समय था, जब हरेली त्यौहार के पहले खेतों में धान फसल की बियासी सहित तमाम कृषि कार्य पूर्ण हो चुके होते थे। उसके बाद कृषि उपकरणों को धोकर पूजा-पाठ कर रख दिया जाता था, किंतु मौसम और जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव अब हरेली पर भी पडऩे लगा है। पर्याप्त बारिश की आस में आधा सावन बीत चुका है, किंतु खेतों में न तो पर्याप्त पानी है और न ही हरियाली है। कहा जाता है कि हरेली तिहार के बाद प्रदेश में त्यौहार मनाने का क्रम शुरू होता है। यानि यह छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार है। मान्यता है कि इस दिन किसान भाई पूजा-अर्चना कर अच्छी बारिश और अच्छी फसल की दुआएं मांगते हैं, लेकिन इस बार हरेली का पर्व सूखा बीत गया। न तो नदी-नालों में पर्याप्त पानी है और न ही खेतों में। ऐसे में किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच आई है। कहते हैं कि उम्मीद पर दुनिया टिकी है, इसलिए किसान अब भी आस लिए बैठे हैं कि आने वाले दिनों में अच्छी बारिश होगी। साथ ही पर्याप्त बारिश नहीं होने की आशंका के बीच उन्हें अकाल का डर सताने लगा है। शहरवासी किसानों के साथ है। वह भी इंद्रदेव से दुआ करता है कि पर्याप्त बारिश हो, ताकि खेतों में अच्छी पैदावार हो और सब कुछ हरा भरा रहे। क्योंकि किसान हैं तो हम हैं। फसल अच्छी होगी तो बाजार भी दमक उठेगा।
खाद पर कांग्रेस-भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप
इन दिनों राजनीतिक दलों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। अभी यह समझना मुश्किल है कि कौन सही और कौन गलत? खाद संकट को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हंै, लेकिन किसान दोनों से दूर हैं। प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि केन्द्र सरकार द्वारा मांग के अनुरूप खाद की पर्याप्त आपूर्ति नहीं किए जाने से किसानों को खाद की किल्लत से जूझना पड़ रहा है। केन्द्र सरकार के भेदभाव रवैये से किसानों की समस्या बढ़ी हुई है। दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा भी प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर सोसायटियों में पर्याप्त खाद का भंडारण नहीं कराने का आरोप लगा रही है। विगत दिनों दोनों दलों ने खाद को लेकर धरना-प्रदर्शन किया। दोनों दलों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। एक-दूसरे की सरकारों को जमकर कोसा गया। कई गंभीर आरोप लगाए गए और नतीजा वही ढाक के तीन पात। अहम बात यह रही कि दोनों दलों के धरना-प्रदर्शन से किसानों ने दूरी बनाए रखी। या यूं कहें कि किसानों को पूछा तक नहीं गया। खाद को लेकर तमाम तरह की बातें आ रही हैं। वस्तुस्थिति क्या है? यह तो वास्तविक किसान ही बता सकते हैं, लेकिन कांग्रेस-भाजपा ने खाद को लेकर धरना आंदोलन कर अखबारों में समाचार और अपनी तस्वीरें जरूर छपवा लीं। शहरवासी को अभी तक यह बात समझ नहीं आई कि आखिर खाद संकट के लिए जिम्मेदार है कौन?
चलते-चलते…
सफेदपोश जो बैठे हैं, काले धंधे करके
वो डरते हैं कहीं उनके राज न खुल जाएं,
रोकते हैं वो इस वजह से बारिश को
कहीं बरसात में उनके झूठ न धूल जाएं।।
– शहरवासी