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आरक्षण नहीं दिला पाया तो राजनीति से अलग हो जाऊंगा : कवासी लखमा बोले-आदिवासियों के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे, मुख्यमंत्री ने कहा-इस्तीफे की जरूरत नहीं

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रायपुर। छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मुद्दे पर बवाल जारी है। आदिवासी समाज आरक्षण खत्म होने को लेकर आंदोलित है। इस बीच प्रदेश के उद्योग और आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा, अगर वे आदिवासियों को आरक्षण नहीं दिला पाये तो खुद को राजनीति से अलग कर लूंगा। गुरुवार को रायपुर में मीडिया से बातचीत में कवासी लखमा ने कहा, मैं, मेरी सरकार, मेरे मुख्यमंत्री आदिवासी भाई लोग से लगातार बैठकर सुझाव ले रहे हैं। उन्हीं के सुझाव पर कर्नाटक, तमिलनाडु गए। उन्हीं के सुझाव और मांग पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है। उससे बढक़र क्या करना है। हम दो तारीख को इसे (आरक्षण विधेयक को) पास कराएंगे। लखमा ने कहा, हम राज्यपाल के पास, राष्ट्रपति के पास और सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे। अगर उस समय तक सफलता नहीं मिला तो मैं अपने आप को राजनीति से अलग कर लुंगा। सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री का यह बयान उस समय आया जब कैबिनेट ने आरक्षण देने के लिए दो संशोधन विधेयकों को मंजूरी दी है। इन विधेयकों को सरकार विधानसभा से पारित कराने की तैयारी में है। दावा किया जा रहा है, इससे सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण मिल जाएगा। इधर मुंबई रवाना होने से पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, आरक्षण के लिए ही हम विधानसभा का विशेष सत्र बुला रहे हैं। कवासी लखमा को इस्तीफा देने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

बुधवार को कांग्रेस प्रत्याशी ने यही कहा था
बुधवार को मंत्री कवासी लखमा भानुप्रतापुर विधानसभा उप चुनाव के लिए प्रचार करने वहां के एक गांव बोगर पहुंचे थे। वहां सर्व आदिवासी समाज के लोगों ने उन्हें घेर लिया। वे लोग आरक्षण मामले में सरकार के स्टैंड का विरोध करने लगे। इसपर कांग्रेस उम्मीदवार सावित्री मंडावी ने कहा, मंत्री कवासी लखमा ने अपनी हर सभा में लोगों से ये वादा किया है कि अगर वे आदिवासियों को फिर से 32 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिला पाएं तो अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। कवासी लखमा ने कहा, आदिवासी समाज दो दिसम्बर तक शांत रहे। आरक्षण के मुद्दे पर ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है। सरकार आदिवासी हितों को नुकसान नहीं पहुंचने देगी।

आरक्षण का अब यह अनुपात तय हुआ है
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण का नया अनुपात तय हुआ। इसमें आदिवासी वर्ग-एसटी को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 32 प्रतिशत आरक्षण देगी, अनुसूचित जाति-एससी को 13 प्रतिशत और सबसे बड़े जातीय समूह अन्य पिछड़ा वर्ग-ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। वहीं सामान्य वर्ग के गरीबों को 4 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।

विधेयकों से राहत की डगर आसान नहीं
संविधानिक मामलों के विशेषज्ञ बीके मनीष का कहना है, बिलासपुर उच्च न्यायालय ने 19 सितंबर के अपने फैसले के पैराग्राफ 81 में एसटी-एससी को 12-32 प्रतिशत आरक्षण को इस आधार पर अवैध कहा है कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। यह भी कहा है कि मात्र प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता से, बिना किसी अन्य विशिष्ट परिस्थिति के 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा नहीं लांघ सकते। सर्वोच्च न्यायालय कई फैसलों में इस बात को कह चुका है। ऐसे में केवल विधेयक लाकर आरक्षण को प्रभावी नहीं किया जा सकता। अगर ऐसा हुआ तो अदालत इस पर रोक लगा देगा। ऐसे में सरकार की डगर आसान नहीं रहने वाली।

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