डीयर बाबूलाल, पहली अप्रैेल क ो ही मूर्ख बनाया जाता है, ऐसा नहीं है मित्र। जनता को तो 365 दिन मूर्ख बनाया जाता है। जैसे सत्तासीन पार्टी के नेताओं का सदाबहार स्टेटमेन्टस रहता है- ‘‘भ्रष्टाचार में जीरो टालरेंस’’ रहेगा, ‘‘हमारा भ्रष्टाचार साबित होगा तो मै सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लंूगा’’, ‘‘हमारी सरकार बिल्कुल ही स्वच्छ शासन देगी’’ ‘‘हमारी पार्टी केवल विकास’’ के मार्ग पर चलती है ‘‘पार्टी नेता-कार्यकर्ता कहता है, मैं पार्टी की विचारधारा से आकर्षित हूं, इसलिए पार्टी ज्वाइन किया हूं’’ ‘‘जन सेवा का आप ने जो मौका दिया, उसके लिए आभारी हूं’’—। बस-बस, चम्पक मैं समझ गया, तुम क्या कहना चाहते हो? वाकई में ये नेता लोग पब्लिक को मूर्ख ही बनाते हंै। ‘‘फस्र्ट अप्रैल’’ तो फिजूल ही बदनाम है।
शहरवासी ने भी इस बात पर अपनी बात की, जिसमें कहा कि देश में मूर्खो की कमी नहीं है। वैसे, इन मूर्खो पर रिसर्च की जाए तो संभवत: परिणाम यही आएगा कि मूर्ख हमेशा सुखी ही होते हैं। इसलिए भी उनकी बहुमती है। सत्तासीन पार्टी कहती है कि हमने निवृतमान सरकार के समय जो दीर्घाकार भ्रष्टाचार था, उसक ो हमने नियंत्रित किया है। पब्लिक इसे मान लेती है।
पूर्ववर्ती सरकार में लगभग 50 आईएएस व शीर्ष क्लास-वन अफसरों के विरूद्ध गंभीर शिकायत भ्रष्टाचार व अनियमितताओं को लेकर थी, इसके बावजुद उनकी महत्वपूर्ण विभागों में पदस्थापना जारी रही थी जिनमें कई तो कलेक्टर, सी.ई.ओ. जिला पंचायत, आयुक्त नगर पालिक निगम, सचिव-संयुक्त सचिव पद पर थे। चंद अफसरों पर ई.ओ.डब्ल्यू और एंटी करप्शन ब्यूरों में केस भी दर्ज हुवे थे। लेकिन, किसी का कोई बाल भी बांका नहीं हुआ। उदाहरण जैसे अनिल टुटेजा आई.ए.एस तत्कालिन प्र्रबंधक, नागरिक आपूर्ति निगम आलोक शुक्ला तत्कालिन चेयरमैन नागरिक आपूर्ति निगम के विरूद्ध विभिन्न धाराओं में ई.ओ.डब्ल्यू ने केस दर्ज किए थे। किन्तु, 2015 की केन्द्र सरकार से अभियोजन स्वीकृति प्राप्त नहीं होने से न्यायालय में केस प्रस्तुत ही नहीं हुआ था। अब समय पक गया है, केन्द्र सरकार को आई.ए.एस. केडर रूल्स में परिवर्तन करना चाहिए।
पी.डी.एस.: तू चीज बड़ी है भ्रष्ट-भ्रष्ट, तू चीज बड़ी…
पूर्ववर्ती सरकार में भी करोड़ों गरीबों के लिए आए चावल में भ्रष्टाचार हुआ था और वर्तमान की सरकार में भी करोड़ों का राशन घोटाला गूंज रहा है। मूर्ख जनता को इससे कोई वास्ता नहीं है। गरीबों को सस्ता चावल जो मिल रहा है। घोटालों का जन्म नेता और अफसर की साठगांठ से होता है। रही थोड़ी बहुत कसर ‘‘बाबुराज’’ में हो जाती है। वैसे, लोहा ही लोहे को काटता है। परिवर्तन भी लाजिमी है। प्रतिद्वंदी दलों में परस्पर एक-दूसरे पर लगे आरोपों को जनता अब सीरियसली नहीं लेती। वह तो शुकुन से कैसा जिया जाए? इसी उधेड़बून में वह जीती रहती है। हैप्पीनेस तो छुमंतर हो गया है।
हम भी खाएं और तुम भी खाओ…..
महात्मा गांधी जी के शब्द थे-‘‘भोजन पेट भर मिलता रहे तो अन्य सारे कष्ट सहे जा सकते हंै’’। जीवन में सबको पेट भर भोजन उपलब्ध करा पाना सदियों से एक सुलगता हुआ प्रश्र है। पी.डी.एस. याने सार्वजनिक वितरण प्रणाली सरकार की सुलगते प्रश्न को ठण्डा करने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। वितरण प्रणाली में राशन कार्ड की अनिवार्यत: बड़ी भूमिका होती है। राशन दुकानों में फर्जी राशन कार्डों का आधार कार्ड के जमाने में रहना ही सबसे बड़ा आश्चर्य है। फर्जी राशनकार्ड भी संबंधित विभागों के अधिकारियों और राशन दुकानदारों की मिलीभगत से ही बनते हैं। पी.डी.एस. को लोगों तक पहुंचाने का काम खाद्य विभाग, नागरिक आपूर्ति तथा सहकारिता विभाग संयुक्त रूप से करता है। गरीबों को रोटी-चावल, शक्कर व मिट्टीतेल मिलता रहे और गरीब तबका अपना गुजर बसर करता रहे, पवित्र उद्देश्य तो इसका यही है। राजस्व विभाग, खाद्य विभाग, सहकारिता विभाग व जिला पंचायत के अधिकारियों की पीडीएस सुचारू रूप से सिस्टमेटिक चलता रहे, इसके लिए निरीक्षण की जवाबदारी दी गई है। जिसमें मासिक-वार्षिक निरीक्षण करने की जवाबदारी होती है।
वाह क्या बात है शहरवासी, अब इसे क्या कहना चााहिए कि इसके बावजुद राशन दुकानों में बड़े पैमाने में गोलमाल होता है, बाबूलाल ने कहा। दोस्त, ऐसा तभी होता है, जब पूरे कुंए में ही भांग मिली होती है। यह तो ऐसा ही हुआ, हम भी खाएं और तुम भी खाओ।
निगम का बजट पेश तो हुआ किन्तु आधे-अधूरे विकास कार्यों से शहर बदसूरत है
नियमों-अधिनियमों के चलते नगर निगम का बजट पेश हुआ। सो तो होना ही था। बजट मेें खर्च के प्रावधान तथा आय प्राप्ति प्रस्तावना का खाका सामने आया। बजट पेश होते ही नए वित्तीय वर्ष में खर्च करने का अधिकार भी निगम के शासन-प्रशासन को मिल जाते हैं। परम्परागत बजट पे चर्चा हंगामेदार रही। विपक्ष हाबी रहा। भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया रहा। बूढ़ासागर केन्द्र में था। राजनीति में ऊपर चढऩे का पहला पायदान नगरीय क्षेत्र में नगर पालिका व नगर निगम है। इसे लोकतंत्र की प्राथमिक शाला भी कह सकते हैं। राजनैतिक चेतना का प्रसार भी यहीं से होता है।
शहर की जो आन-बान-शान है उसके अनुरूप स्थानीय नगर निगम शासन जैसा श्रेष्ठ होना चाहिए, वैसा नहीं है। शहरवासी सम्पन्न हैं, कैसे सुख से रहें, उसका बंदोबस्त कर लेते हैं। निगम प्रशासन में शीघ्रता से कार्य का सम्पादन नहीं होता, इसे विडम्बना ही कहना चााहिए। ठेकेदार काम तो लेते हैं किन्तु विलम्ब पराकाष्ठा तक जा पहुंचा है, फिर भी कार्य आधा-अधूरा रहता है। स्वायत्त शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार की संभावना नहींवत होनी चााहिए, किन्तु ऐसा नहीं है। भ्रष्टाचार दीर्घाकार में है। इसका दोष राज्य की प्रशासकीय व्यवस्था को दें या फिर स्थानीय नगरीय शासन को दें। ठेकेदार अनियंत्रित हैं। विभागीय नोटिसों का भी खास असर नहीं होता। ब्लेकलिस्टेड कोई होता नहीं। ठेका देने वाले पहले ही इतने ओबलाइज्ड होते हैं कि कार्यवाही करें तो कैसे? आधे-अधूरे विकास से शहर स्वाभाविक रूप से बदसूरत दिखाई देता है। जन आवश्यकताओं के प्रति निगम शासन गंभीर नहीं हुआ तो इसी साल विधानसभा के चुनाव में विपक्ष के हाथों भ्रष्टाचार व अनियमितता का मुद्दा आयेगा और गर्माएगा। निगम में कार्य कुशलता के दर्शन नहीं हो रहे हैं।
आईपीएल और सट्टा बाजार रौनक हुआ
क्रिकेट का आई.पी.एल. 31 मार्च से शुरू हो गया है। सट्टे का बाजार धूम चल रहा है। खाईवाल याने खिलाने वाले आबाद हैं और सट्टा लगाने वाले बर्बाद होंगे, इसमे कोई शक नहीं है। क्रिकेट की इसे लोकप्रियता ही कहें कि गांव-गांव में मोबाईल से आनलाइन सट्टा चल रहा है। शहरी खाईवाल बेखौफ नावां पीट रहे हैं। सात हफ्तों तक सट्टे का जुनून सर पर सवार रहेगा। हारा जुवाड़ी दुगुना खेलता है। सटौरियों की सेटिंग जबर्दस्त लाक होती है और वे बेखौफ अपने काम को अंजाम देते हैं।
मोबाईल को हुवे 50 साल और पूरी दुनिया ही बदल गई
दिलचस्प यह कि मोबाईल फोन को 50 साल पूरे हो गए और इन सालों में उसने पूरी दुनिया को ही बदल दिया। मोबाईल की शोध करने वाले मार्टिन कू पर वर्तमान में 94 वर्ष के हो गए हैं और अमेरिका के शिकांगो शहर में रहते हैं। हाल ही मार्टिन कूपर का बयान आया कि भारतवासी पागलों के समान मोबाईल फोन में घुसे रहते हैं। क्या दूध पीते बच्चे, शाला-कालेजों के विद्यार्थी मोबाईल में समय खराब करते हैं। हमारे यहां वाहन चलाने से लेकर मतदान करने तक की एक उम्र तय है। किन्तु, बच्चों को किस उम्र से मोबाईल का उपयोग करना चााहिए? इसके कोई नियम नहीं हैं। कई बच्चों के हाथों में मोबाइल पकड़ावो तभी वे खाना खाते हैं। बच्चे शांत रहे इसलिए भी मां-बाप उनके हाथों में मोबाईल दे देते हैं। अब इसमें दोष तो मां-बाप का ही है। मोबाइल पास न रहे तो क्या छोटे, क्या बड़े, सभी बेचैन हो जाते हैं। दूर बैठे व्यक्तियों के सम्पर्क में रहने क ी चाह में लोग अपने नजदीक के लोगों क ो भूल जाते हैं। हम सभी अब एक आभासीय दुनिया में जीने लगे हैं। रील्स देखते रहते हैं। आर्टिफिशियल इन्टेलिजन्स के बूते हम आगे बढ़ रहे हैं। कृत्रिम बुद्धि आदमी की बुद्धि को चारा मान चर रही है।
मोबाईल फोन पूर्णत: खराब है, ऐसा नहीं अगर, केवल इसका सदुपयोग किया जावे तो यह आशीर्वाद से क म नहीं है। मोबाईल पूरी दुनिया को हमारे करीब ले आता है। किन्तु, लापरवाह हुवे तो यह हमको भी शिकंजे में ले सकता है।
तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार
शुक्र है, शहर में रामनवमी पूर्ण शान्ति से सम्पन्न हुई। संस्कारधानी शहर की यही पहिचान है। राम प्रेमियों ने भावपूर्वक रामनवमी मनायी। धर्म की स्थापना वहीं होती है, जहां जहां राम बसे हों। मान्यता है जो राम को मानता है, जिसके रोम-रोम में राम हैं, वह हरामखोरी नहीं कर सकता। मित्र हो या नारी, आपातकाल में आप की अपेक्षा और इच्छा के विरूद्ध निकले, आप को दगा दे जाए, चाहे जो विपरीत हालात हों। व्यक्ति कसौटी पर खड़ा हो, तब उसे आत्माराम की सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना ही होता है।
झूठ बोलो, अधर्म करो, रिश्वत लो, आर्थिक घोटाले करो, मानवता को लज्जित होना पड़े तब उसे याद दिलाएं कि भाई आप का धर्म क्या कहता है? इसका जवाब अपने भीतर से मिलेगा। इसके लिए किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। ‘‘राम’’ को जगाने की क्षण जिन्दगी में आती ही रहती है।
राम नाम सोहिजानिए,
जो रमता सकल जहान,
घट घट में जो रम रहा,
उसको राम पहचान
तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार
उदासी मन काहे को करे?
- शहरवासी