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धरती से दूर हो रहा चांद, हर साल खिसक रहा 3.8 सेमी, 5 दशक से किसी ने नहीं रखा सतह पर कदम

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान का भेजे चंद्रयान-3 की दो दिन बाद यानी 23 अगस्‍त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग होगी. मजेदार तथ्‍य है कि इंसान लगातार चांद के नजदीक जाने की कोशिश कर रहा है. वहीं, चंद्रमा धरती से हर साल धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है. चांद के धरती से दूर जाने की प्रक्रिया करोड़ों साल से चल रही है. हालांकि, खगोलविदों को इसकी जानकारी करीब-करीब 60 साल पहले ही मिली थी. अब वैज्ञानिकों ने चांद के दूर होने की रफ्तार और इसके असर का आकलन का लिया है.

खगोलविदों के मुताबिक, चंद्रमा हर साल करीब 3.8 सेमी धरती से और ज्‍यादा दूर होता जा रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका कारण अंतरिक्ष में हैवी प्लैटनरी बॉडीज हैं. खगोलविदों का कहना है कि गैलेक्सी में ग्रह होते हैं. हर ग्रह का अपना-अपना संतुलन होता है. सभी ग्रह एकदूसरे को आकर्षित कर रहे हैं. इस कारण चंद्रमा धरती से दूर हो रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अंतरिक्ष घटना होने के कारण ही धरती से डायनासोर की प्रजाति पूरी तरह से गायब हुई.
चांद की बढ़ती दूरी के कारण लंबे हो रहे दिन
वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती के सौरमंडल में अरबों साल से जारी चंद्रमा के दूर खिसकने की प्रक्रिया के कारण हमारे दिन की लंबाई बदल रही है. एक नए शोध ने इस खगोलीय घटना को लेकर दिलचस्पी कुछ ज्‍यादा ही बढ़ा दी है. फिलहाल चंद्रमा हमारे ग्रह पृथ्‍वी से करीब 3 लाख 84 हजार 400 किमी दूर है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, करीब 245 करोड़ साल पहले चंद्रमा धरती से करीब 3 लाख 21 हजार 869 किमी की दूरी पर था. दूसरे शब्‍दों में कहें तो इस दौरान धरती और चांद के बीच की दूरी 62 हजार 531 किमी बढ़ गई है. अब जैसे-जैसे चांद धरती से दूर होता जा रहा है, वैसे-वैसे हमारे दिन के घंटे बढ़ते जा रहे हैं.

करोड़ों साल पहले कितने घंटे का था दिन
खगोलविदों का अनुमान है कि 245 करोड़ साल पहले जब चांद धरती से अब के मुकाबले ज्यादा नजदीक था, तब एक दिन में सिर्फ 16.9 घंटे ही होते थे. समय बीतने पर चांद की दूरी बढ़ने के साथ दिन में 24 घंटे हो गए. हालांकि, इस घटना का धरती पर रहने वाले जीव-जंतु, इंसान, वनस्‍पति और दूसरी सभी चीजों के जीवन पर कोई फर्क पड़ने में अभी लाखों साल लगेंगे. नासा के खगोलविदों ने 1969 में अपोलो मिशन के दौरान चंद्रमा की सतह पर रिफ्लेक्टिव पैनल लगाए थे. इसके बाद उन्हें चांद को लेकर कुछ महसूस हुआ था. लेकिन, वैज्ञानिकों ने अब महसूस किया है कि हर साल एक तय रफ्तार के साथ चांद हमसे दूर हो रहा है.

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