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महिला आरक्षण विधेयक ;परिसीमन जरूरी, 1 सीट वाले राज्यों का क्या होगा… 2010 से कैसे अलग है नया महिला आरक्षण बिल

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सितंबर 1996 में पहली बार महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश किया गया था. पिछले 27 वर्षों में यह विधेयक कई बार सदन में पहुंचा, लेकिन जमीनी हकीकत नहीं बन सका. आखिरी बार, यह 2010 में सदन में पहुंचा था जब विधेयक को राज्यसभा से मंजूरी मिल गई थी, लेकिन लोकसभा से मंजूरी नहीं मिल पाई. सितंबर 2023 में, महिला आरक्षण विधेयक आखिरकार ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के रूप में लोकसभा में पहुंच गया. जबकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही बिल का श्रेय लेने की होड़ लगी है, ऐसे में आइए देखें कि यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) का बिल एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) से कैसे अलग था.

2010 का विधेयक अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख से 15 वर्षों की अवधि के लिए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की बात करता है. इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिलाओं के लिए भी आरक्षण है. नया बिल में भी कुछ इसी तरह के प्रावधान हैं. लेकिन प्रमुख अंतर है आरक्षण लागू करने से पहले परिसीमन को अनिवार्य बनाना और उन राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों का उल्लेख नहीं करना जहां केवल एक लोकसभा सीट है.

2010 के विधेयक में कहा गया कि एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों की कुल संख्या में से एक तिहाई महिलाओं को दी जाएंगी और लोकसभा, राज्य या केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में कुल सीटों में से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. कुल 33% आरक्षण में एससी और एसटी समुदायों की महिलाओं की भी गिनती होगी.

इसमें यह भी कहा गया है कि यदि किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीट एक है, तो लोकसभा के तीन आम चुनावों वाले प्रत्येक ब्लॉक में, पहले आम चुनावों में एससी या एसटी से संबंधित महिलाओं के लिए सीट आरक्षित की जाएगी. और अन्य दो आम चुनावों में कोई सीट आरक्षित नहीं की जाएगी. पुराने विधेयक में उन राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के बारे में भी बात की गई थी जहां एससी/एसटी के लिए दो सीटें आरक्षित हैं, जिससे महिलाओं को रोटेशन के आधार पर आरक्षण की अनुमति मिलती है. यह विधानसभाओं और लोकसभा दोनों के लिए था. ऐसी ही प्रथा स्थानीय निकायों में भी हो रही है जहां महिलाओं के लिए 33% आरक्षण है.

नया विधेयक संसद द्वारा निर्धारित प्रत्येक परिसीमन प्रक्रिया के बाद लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों के रोटेशन की अनुमति देता है. हालांकि, इसमें उन राज्यों का जिक्र नहीं किया गया जहां कम सीटें आरक्षित हैं. नए विधेयक में प्रस्तावित किया गया है कि 33% आरक्षण अधिनियम को पहली जनगणना के बाद होने वाले पहले परिसीमन के पश्चात ही लागू किया जा सकता है. यदि देरी नहीं हुई, तो अगला निर्धारित परिसीमन अभ्यास 2026 के बाद होना है.

यह 2026 के बाद हुई पहली जनगणना पर आधारित होगी. अगर सबकुछ तय कार्यक्रम के मुताबिक रहा तो अगली जनगणना 2031 में करानी होगी. जिसके बाद ही परिसीमन होगा. हालांकि, कोविड के प्रकोप के कारण 2021 की जनगणना अब तक नहीं हुई है. इसलिए अगर 2026 के बाद जनगणना होगी तो उसके हिसाब से परिसीमन हो सकता है.

इसके अलावा, विधेयक जो अनुमान लगाया जा रहा था उससे भी अलग है. नए विधेयक में राज्यसभा या राज्य विधान परिषद में महिलाओं के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. इसमें ओबीसी की महिलाएं भी शामिल नहीं हैं, जबकि कई पार्टियां इसकी मांग कर रही थीं. विधेयक को कानून बनने के लिए संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलनी जरूरी है.

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