ब्रिटेन जिस कंपनी के जरिए भारत में आया था आज उस कंपनी का मालिक एक भारतीय है. ईस्ट इंडिया कंपनी को संजीव मेहता ने खरीदा और 2010 में उसे रीलॉन्च किया. केवल ईस्ट इंडिया ही नहीं, ब्रिटेन की कई ऐसी बड़ी कंपनियां है जिन पर अब देसी उद्योगपतियों का राज है. लेकिन भारतीय उद्योगपति ऐसा कर क्यों कर रहे हैं. यह एक वाजिब सवाल है.आज हम यही जानेंगे कि इंग्लैंड की कौन सी बड़ी कंपनियां भारतीयों के पास हैं और भारतीय बिजनेसमैन यूके में इतना निवेश कर क्यों रह हैं?
टाटा-रिलायंस से लेकर रॉयल इन्फील्ड तक
ईटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस के पास बैट्री टेक्नोलॉजी कंपनी फैराडीन, स्टोक होटल और हेमलीज है. इसके बाद टाटा ग्रुप के पास टेटली, कोरस (स्टील प्रोड्यूसर), जेगुआर एंड लैंड रोवर, शीशेयर होल्डिंग्स हैं. टाटा यूके में ईवी बैटरी मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्री भी लगाएगा. यह भारत के बाहर टाटा की पहली गीगा फैक्ट्री होगी. यह यूरोप की सबसे बड़ी बैटरी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में से एक होगी. रॉयल एनफील्ड जो कि एक ब्रिटिश कंपनी है अब उस पर पूरी तरह भारतीय कंपनी आयशर का मालिकाना हक है. इसके अलावा महिंद्रा ने भी ब्रिटेन की बाइक मैन्युफैक्चरर बीएसए का अधिग्रहण किया है. विप्रो ने 2021 में यूके की कंसल्टेंसी फर्म केपको का अधिग्रहण किया. 2017 में इन्फोसिस ने लंदन की डिजाइन कंपनी ब्रिलियंट बेसिक्स का अधिग्रहण किया था. इनके अलावा ब्रिटेन में वेदांता के अनिल अग्रवाल, लक्ष्मी मित्तल, किरण मजूमदार शॉ, हिंदुजा फैमिली समेत कई बड़े उद्योगपतियों का निवेश है.
इन्वेस्ट इंडिया के अनुसार, भारत में विदेशी निवेश के मामले में यूके छठा सबसे बड़ा देश है जबकि भारत यूके में दूसरा सबसे बड़ा एफडीआई निवेशक है. भारत की 954 कंपनियां वहां 65 अरब डॉलर का रेवेन्यू जेनरेट कर रही हैं. इसके प्रमुख कारणों में से एक है विदेशी मुद्रा. भारतीय कंपनियां वहां जो कमाई करेंगी वह पाउंड्स में होगी. इसका इस्तेमाल ये कंपनियां भारत व दुनिया में अन्य जगहों पर खुद को और विस्तार देने के लिए कर सकती हैं. इसके अलावा ब्रिटेन एक विकसिती देश है जिसकी वजह से वहां टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट ज्यादा हैं. वहां से ग्लोबल मार्केट तक पहुंच काफी आसान है. साथ ही वहां बिजनेस करना एक विकासशील देश के मुकाबले थोड़ा आसान है.