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देश में दालों की कीमतों में नरमी आने की कोई गुंजाइश नहीं है.

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लोगों को खाने-पीने की चीजों के मामले में अभी कुछ और समय तक महंगाई का सामना करना पड़ सकता है. खासकर दालों के मामलों में कीमतों में जल्दी नरमी आने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं, क्योंकि दालों की आपूर्ति उनकी मांग के हिसाब से नहीं हो पा रही है.

अक्टूबर तक नहीं मिलेगी राहत

ईटी की एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से यह आशंका जाहिर की गई है. बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि देश में दालों की कीमतें तब तक ज्यादा बनी रह सकती हैं, जब तक कि बाजार में नई फसल की आपूर्ति न शुरू हो जाए. नई फसलों की आवक अक्टूबर महीने में जाकर शुरू होगी. इसका मतलब हुआ कि अक्टूबर महीने से पहले दालों की कीमतों में नरमी की कोई गुंजाइश नहीं है.

इस कारण दालों में ज्यादा महंगाई

बकौल बाजार विशेषज्ञ, देश में अभी दालों की जितनी डिमांड है, उतनी सप्लाई नहीं हो पा रही है. मांग और आपूर्ति के असंतुलन के चलते दालों की कीमतें टाइट चल रही हैं. दालों की महंगाई के उच्च स्तर पर बने रहने से ओवरऑल खाद्य महंगाई पर भी असर हो रहा है.

उत्पादन में भारत है नंबर वन

अभी सरकार की ओर से दालों की कीमतों को काबू में रखने के काफी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पा रही है. भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन खपत उत्पादन से भी ज्यादा है. ऐसे में भारत को दालों का आयात करना पड़ जाता है. 2022-23 के फसल वर्ष में देश में दालों का अनुमानित उत्पादन 26.05 मिलियन टन था, जबकि खपत का अनुमान 28 मिलियन टन था.

पिछले महीने दालों की महंगाई

अभी बाजार में तुर यानी अरहर, चना, उड़द आदि दालों में ज्यादा महंगाई दिख रही है. अप्रैल महीने में दालों की महंगाई 16.8 फीसदी रही थी. सबसे ज्यादा 31.4 फीसदी महंगाई अरहर दाल में थी. इसी तरह चना दाल में 14.6 फीसदी और उड़द दाल में 14.3 फीसदी की दर से महंगाई थी. फूड बास्केट में दालों का योगदान 6 फीसदी के आस-पास रहता है.

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