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एक फोन, आधार नंबर और लुट गए 47 लाख रुपए… आखिर क्या है डिजिटल अरेस्‍ट? कैसे फंसते हैं लोग इस चंगुल में

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डिजिटल अरेस्‍ट के नाम पर गाजियाबाद की एक महिला से अब 47 लाख रुपए की ठगी का मामला सामने आया है. इससे पहले भी नोएडा के एक बिजनेसमैन से अरेस्‍ट के नाम पर 5 लाख रुपए ठगे गए थे. डिजिटल अरेस्‍ट का यह कोई पहला या दूसरा मामला नहीं है, बल्कि बीते कुछ महीनों में बड़ी संख्‍या में लोग डिजिटल अरेस्‍ट के नाम पर लाखों रुपए की ठगी का शिकार हुए हैं. 

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यह डिजिटल अरेस्‍ट क्‍या है, क्‍या कानून में इसका कोई वजूद है और डिजिटल अरेस्‍ट के नाम पर ठगी से कैसे बचा जाए. तो चलिए आपको बताते हैं कि डिजिटल अरेस्‍ट है क्‍या? दरअसल, ठग पहले फोन कॉल करके आपका आधार नंबर पूछते हैं और फिर आपके आधार नंबर की मदद से ड्रग्‍स या नगदी की अवैध ट्रॉजेक्‍शन की बात करते है. 

इसके बाद, स्‍काइप या दूसरे वीडियो कॉल ऐप के जरिए आपको वीडियो कॉल से जोड़ा जाता है. फिर आपको पुलिस या सीबीआई जैसी जांच एजेंसी से जोड़ने की बात कही जाती है. आपके लैपटॉप की स्‍क्रीन को अपने कंट्रोल में लेने के बाद तमाम चीजें खंगाली जाती हैं. आपको अरेस्‍ट की धमकी देखकर डराया जाता है. आखिर में, इस समस्‍या से निजात के नाम पर आपसे लाखों रुपए की ठगी की जाती है.

क्‍या डिजिटल अरेस्‍ट का है कोई कानूनी वजूद
शामली के मौजूदा पुलिस अधीक्षक और नोएडा साइबर क्राइम के डीसीपी रहे अभिषक कुमार अनुसार, भारतीय कानून व्‍यवस्‍था में फिलहाल डिजि‍टल अरेस्‍ट का कोई वजूद नहीं है. आर्थिक मामलों में जब भी किसी व्‍यक्ति के खिलाफ शिकायत आती है तो सबसे पहले उस व्‍यक्ति को नोटिस जारी कर फिजिकली इंवेस्टिगेशन ज्‍वाइन करने के लिए कहा जाता है. इसके बाद ही कार्रवाई आगे बढ़ती है. 

उन्‍होंने बताया कि यदि किसी स्‍टेज पर गिरफ्तारी की बात आती भी है तो सात साल से कम की सजा के मामले में आरोपी को मुचलके पर छोड़ दिया जाता है. मौजूदा व्‍यवस्‍था में कोई भी जांच एजेंसी कभी भी ऑनलाइन या स्‍काइप या वीडियो कॉल पर कभी किसी भी मामले की जांच नहीं करती है. यदि लैपटॉप या मोबाइल की जांच करनी है, तो बाकायदा उसे सीज कर फोरेंसिक के लिए भेजा जाता है. 

ठगी से बचने के लिए जाने अरेस्‍ट का प्रावधान
सीनियर आईपीएस अधिकारी अभिषेक बताते हैं कि डिजिटल अरेस्‍ट के नाम पर होने वाली ठगी से बचने के लिए जरूरी है कि हर व्‍यक्ति को अरेस्‍ट के प्रावधानों के बारे में पता हो. जबभी कोई भी जांच एजेंसी किसी भी आरोपी को अरेस्‍ट करती है तो उसके लिए दो बातों को पूरा करना अनिवार्य है. पहला अरेस्‍ट मेमो में अरेस्‍ट की जगह बतानी होगी. दूसरी बात अरेस्‍ट के बारे में किसी नजदीकी रिश्‍तेदार को जानकारी देनी होगी. 

इन दोनों प्रावधानों को पूरा‍ किए बगैर किसी भी व्‍यक्ति को अरेस्‍ट नहीं किया जा सकता है. यदि कोई भी व्‍यक्ति आपको अरेस्‍ट करने की बात करता है तो आप उससे कहिए कि इसके लिए वह उसके दरवाजे पर आए और इसकी जानकारी उसके नजदीकी रिश्‍तेदार को भी दे. इसके बाद, वह जो भी कार्रवाई चाहते हैं, कर सकते हैं. यकीन मानिए, इतना सुनते ही सामने वाला अपनी फोन कॉल काट देगा. 

डिजिटल अरेस्‍ट वाले ठगों की कैसे करें पहचान
नारकोटिक्‍स कंट्रो ब्‍यूरो के एडिशनल डायरेक्‍टर नीलोत्‍पल मृनाल के अनुसार, यदि आपने कोई जुर्म नहीं किया है तो किसी भी कानूनी कार्रवाई की बात से आपको घबराना नहीं चाहिए. चूंकि भारत में गिरफ्तारी डर का एक पर्याय है, लिहाजा ऐसी स्थित में खुद को पहले संयमित करें, फिर आगे कोई कदम आगे बढ़ाएं. चूंकि कॉल पर कौन सही है या कौन गलत है यह पहचानना बहुत मुश्किल है, लिहाजा पहले आप कानून और प्रावधान को समझें और फिर उसके के अनरूप उससे बात करें. यहां समझें कि आपको ठगों से कैसे बात करनी है… 

जब फोन पर कोई शख्‍स आपसे आपके नाम पर बुक कूरियर में ड्रग्‍स की बात करे तो आपको घबराना या परेशान नहीं होना है. 
इसके बाद फोन करने वाला शख्‍स आपसे आपका आधार नंबर पूछेगा. जवाब में आपको अपनी तरफ से अपना आधार नंबर नहीं बताया है. उल्‍टा आपको उससे पूछना है कि उसके पास कौन सा आधार नंबर है, उन्‍हें बताए. 
यदि कॉल करने वाला शख्‍स को खुद को कूरियर कंपनी से बताता है तो उसकी कूरियर कंपनी का नाम और ब्रांच का नाम भी पूछिए. यदि‍ फोन करने वाला शख्‍स खुद को पुलिस कर्मी बताता है तो उससे उसके थाने के बारे में पूछिए. 
यदि फोन करने वाला कोई शख्‍स आपको ऑनलाइन इंवेस्टिगेशन ज्‍वाइन करने के लिए बोलता है तो आप कहिए कि इंवेस्टिगेशन से जुड़ा नोटिस मिलने के बाद ही आगे कोई बात करेंगे. 
यदि कोई अरेस्‍ट करने की धमकी देता है तो आप खुलकर उससे बोलिए कि वह घर आकर उसे गिरफ्तार कर सकता है.

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