जब भी बजट आता है मिडिल क्लास को इससे सबसे ज्यादा उम्मीद रहती है. कामकाजी लोग इनकम टैक्स में थोड़ी राहत की उम्मीद हर बार रखते हैं ताकि उनकी जेब में कुछ हजार की बचत हो जाए. इस कुछ हजार की राहत पाने के लिए वो वित्त मंत्री के बजट भाषण पर टककटी निगाहें लगाकर बैठे होते हैं. लेकिन जब वित्त मंत्री इधर उधर की बातें कर इस मध्यमवर्ग को नजरअंदाज कर दें तो फिर ये बेचारा वर्ग निराश होने के अलावा कर ही क्या सकता है?
जाएं तो जाएं कहां समझेगा कौन यहां?
वित्तीय वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट से अगर सबसे ज्यादा कोई निराश हुआ है तो वो मिडिल क्लास ही है. टैक्स का सबसे ज्यादा बोझ झेलने वाले इस मध्यमवर्ग को शायद अब सरकारों ने गंभीरता से लेना छोड़ दिया है. अगर ऐसा ना होता तो भला वित्तमंत्री ओल्ड टैक्स रिजीम में चवन्नी का भी राहत ना देतीं? हां, उन्होंने न्यू टैक्स रिजीम को बढ़ावा देने के लिए कुछ राहत की घोषणा जरूर की है. न्यू टैक्स रिजीम में अब 3 से 7 लाख रुपए की आय पर 5% टैक्स लगेगा. इससे पहले ये 3 से 6 लाख तक 5 % टैक्स देना पड़ता था. इन बदलावों से न्यू टैक्स रिजीम में अब करदाताओं को अधिकतम ₹17,500 का फायदा होगा. लेकिन जो लोग टैक्स बचाने के लिए ओल्ड टैक्स रिजीम में बने हुए हैं उन्हें किसी तरह की कोई राहत नहीं दी गई है.
टैक्स की मार, बाजार से कैसे करें प्यार?
बात सिर्फ इनकम टैक्स की ही नहीं है, केंद्र सरकार ने उन मध्यमवर्गीय जनता पर भी टैक्स का हंटर चलाया है जो लोग अपनी कमाई से थोड़ा बचाकर म्युचुअल फंड और शेयर से कमाई करने लगे थे. प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री, खुद वित्त मंत्री भी लोगों को शेयर बाजार में पैसा लगाने के लिए उत्साह बढ़ाते रहे हैं. लेकिन बजट में उनकी सरकार ने शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स को 15 % से 20 % और लॉन्ग टर्म कपिटल टैक्स गेन को 10% से बढ़ाकर 12.50% कर दिया. हालांकि हर साल शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन से होने वाले मुनाफे की लिमिट ₹1 लाख से बढ़ाकर ₹1,25,000 जरूर किया गया यानी एक हाथ से थोड़ी राहत दी तो दूसरे हाथ से टैक्स का बोझ बढ़ा दिया. यानी शेयर मार्केट या म्युचुअल फंड से होने वाली आपकी कमाई पर ज्यादा टैक्स देने होंगे.
प्रॉपर्टी से कमाई पर टैक्स की मार
वित्त मंत्री ने कुछ ऐसा ही खेल प्रॉपर्टी के निवेशकों के साथ किया है. निर्मला सीतारमन ने प्रॉपर्टी की बिक्री से मिलने वाले इंडेक्सेशन बेनिफिट को हटाने की घोषणा करके लोगों को झटका दिया है. यहां भी पहले एक हाथ से देने की बात की- प्रॉपर्टी पर लगने वाला कैपिटल गेन टैक्स को 20 से घटाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया. लेकिन पहले जो फायदा इंडेक्सेशन से मिलता था वो ले लिया गया, जिससे अब कैपिटल टैक्स घटने की बजाय और बढ़ जाएगा.
टैक्स के बोझ तले दबा आम आदमी
एक करदाता सबसे पहले अपनी कमाई पर टैक्स देता है और टैक्स कटने के बाद के पैसों का भी जब वो इस्तेमाल करता है तो उस पर भी अलग-अलग टैक्स देने पड़ते हैं. टैक्स के मकड़जाल में फंसा आम आदमी सरकार से थोड़ी राहत की उम्मीद रखता है और जब ये राहत की जगह उसे निराशा हाथ लगे तो भला वो कहां जाए? तमाम मुश्किलों के सामना कर रहे मिडिल क्लास ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का साथ दिया था. जब बीजेपी की लोकसभा की सीटें 303 से घटकर 240 पर आ गई तो इस वर्ग को लगा कि सरकार की नजर उन पर शायद पड़े, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उनके हाथ अगर कुछ लगा तो वो है टैक्स की मार. सरकार तो दावा कर रही है कि बजट में मिडिल क्लास के लिए बहुत कुछ है मगर जमीनी सच्चाई तो कुछ और ही बयां कर रही है.