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17,995 फीट की ऊंचाई पर बैठा था दुश्‍मन, MMG के सीधे निशाने पर थे भारतीय जांबाज, 24 मई को हुआ बड़ा फैसला, फिर..

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1998 में सर्दियों की दस्‍तक के साथ हिमालय की ऊंची पहाडि़यों में तैनात भारतीय सेना के जवान नीचे उतर आए. पाकिस्‍तान सेना एक लंबे समय से इसी वक्‍त का इंतजार कर रही थी. जैसे ही भारतीय सेना ऊंची पहाडि़यों में स्थिति पोस्‍ट छोड़कर बैरक में वापस आई, पाकिस्‍तानी सेना ने घुसपैठियों के भेष में घुसपैठ करना शुरू कर दी. देखते ही देखते, अगले कुछ महीनों में दुश्‍मन ने कारगिल की तोलोलिंग की चोटी तक पहुंचने में कामयाब हो गया था.

दुश्‍मन ने यहां पर नकेवल अपने बंकर तैयार कर लिए थे, बल्कि उन्‍होंने हथियारों का ऐसा जखीरा जमा कर लिया था, जिससे वह पूरा युद्ध लड़ सकते थे. 3 मई 1999 को अपनी यार्क खोजते हुए ताशी नामग्याल नामक एक चहवाहा कारगिल की बटालिक सेक्‍टर के अंतर्गत आने वाली ऊंची पहाडियों पर पहुंच गया, जहां उसने अत्‍याधुनिक हथियारों से लैस कुछ आतंकवादियों को देखा. आतंकवादियों पर नजर पड़ते ही ताशी दबे पाव वापस लौट आए और रास्‍ते में मिले भारतीय सेना के एक जवान को उन्‍होंने इस बातत जानकारी दी.

कैप्‍टन सौरभ कालिया के अगुवाई में निकली टुकड़ी
वहीं, इस घटना के छह दिन बाद यानी 9 मई 1999 को पाकिस्‍तानी सेना ने भारतीय सेना के आयुध भंडार को निशाना बनाना शुरू कर दिया. 9 मई को हुई इस गोलाबारी में भारतीय सेना का कारगिल मुख्‍यालय स्थिति आयुध भंडार नष्‍ट हो गया. इस घटना के अगले दिन यानी 10 मई 1999 को काकसार, द्रास और मुश्‍कोह सेक्‍टर में पाकिस्‍तानी घुसपैठियों को देखा गया. जिसे बाद, भारतीय सेना ने 14 मई 1999 को कैप्‍टन सौरभ कालिया की अगुवाई में एक टुकड़ी को घुसपैठियों की टोह लेने के लिए रवाना कर दिया.

इस टुकड़ी में कैप्‍टन सौरभ कालिया के साथ अर्जुन राम, भंवरलाल बगारिया, भिका राम, मूल राम और नरेश सिंह भी शामिल थे. जल्‍द ही कैप्‍टन सौरभ कालिया अपने साथियों के साथ दुश्‍मन के ठिकाने के करीब तक पहुंचने में कामयाब हो गए. कैप्‍टन कालिया को मौके पर पहुंचने के बाद पता चला कि वहां पर घुसपैठ कर चार-पांच आतंकी नहीं, बल्कि सेना के तमाम हथियारों से लैस सैकड़ों दुश्‍मन मौजूद है. इसी बीच, पहले से घात लगाकर बैठे दुश्‍मन ने कैप्‍टन सौरभ कालिया और उनके साथियों को पकड़ लिया.

मस्‍कोह से बटालिक तक दुश्‍मन का मिला कब्‍जा
बाद में, कैप्‍टन सौरभ कालिया और उनके साथियों की निमृम हत्‍या कर दी गई. इधर, कैप्‍टन सौरभ कालिया की कोई खबर न मिलने पर कमांड ऑफिस की बेचैनी बढ़ने लगे. कैप्‍टन सौरभ और उनके साथियों की टोह लेने के लिए भारतीय वायु सेना के टोही विमानों को भेजा गया. साथ ही, दुश्‍मन की सही स्थिति का आंकलन करने के लिए कुछ अन्‍य पेट्रोलिंग पार्टी को भी रवाना किया गया. इस कवायद के बीच पता चला कि पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने भारतीय सीमा पार से करीब दस किमी भीतर घुसकर अपने पैर जमाना शुरू कर दिए है.

पाकिस्‍तान के आए घुसपैठिये मस्‍कोह से बटालिक सेक्‍टर के बीच स्थिति करीब 120 किमी के इलाके में फैल चुके थे. इस इलाके में दुश्‍मन ने जगह-जगह पर अपने बंकर बना लिए थे. वहीं, टोही विमानों के जरिए भारतीय सेना को जानकारी मिली की पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने कारगिल से उत्‍तर की दिशा में भी अपने ठिकाने तैयार कर लिए हैं. पहाडि़यों पर बैठे पाकिस्‍तानी घुसपैठियों की पोजीशन कुछ ऐसी थी कि वे कश्‍मीर से लेह को जोड़ने वाले राष्‍ट्रीय राजमार्ग एक की गतिविधियों पर सीधी नजर रख सकते थे.

24 मई को हुआ एयर स्‍ट्राइक का बड़ा फैसला
अब तक भारतीय सेना को पाकिस्‍तान के इरादों की भनक लग चुकी थी. भारतीय सेना को समझ में आ रहा है कि भारत से लेह-लद्दाख को अलग करने के लिए पाकिस्‍तानी सेना ने यह पूरी बिसात बिछाई है. भारतीय सेना को यह भी पता था कि मस्‍कोह से बटालिक सेक्‍टर के बीच बैठे दुश्‍मनों को भगाने के लिए उनके पास सिर्फ दो महीने का समय है. यदि दो महीनों में दुश्‍मन को अंजाम तक नहीं पहुंचाया गया तो पहले बारिश और फिर बर्फबारी का दौर शुरू हो जाएगा. ऐसी स्थिति में दुश्‍मन के खिलाफ कोई भी कार्रवाई असंभव सी हो जाएगी.

इन तमाम संभावनाओं को देखते हुए भारतीय सेना ने मस्‍कोह से बटालिक सेक्‍टर के बीच बैठे पाकिस्‍तानी घुसपैठियों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया. जैसे जैसे भारतीय सेना का अभियान आगे बढ़ रहा था, वैसे वैसे पहाडि़यों में बैठे पाकिस्‍तानी घुसपैठियों की तातक का अंदाजा भारतीय सेना को होता जा रहा था. 21 मई को भारत लौटने के बाद तत्‍कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने पूरी स्थिति का जायजा लिया और 23 मई को खुद जम्‍मू और कश्‍मीर पहुंच गए.  24 मई को तत्‍कालीन वायुसेना प्रमुख एवाई टपिनिस से मुलाकात कर उन्‍होंने एयर स्‍ट्राइक का फैसला लिया.

स्‍क्‍वाड्रन लीडर ए आहूजा ने दिया प्राणों की आहुति
25 मई को तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश को कारगिल में हुई घुसपैठ की जानकारी देश को दी और 26 मई को तत्‍कालीन वायुसेना प्रमुख एवाई टिपनिस ने एयर स्‍ट्राइक शुरू करने के आदेश जारी कर दिए. आदेश मिलते ही श्रीनगर और पठानकोट एयरबेस से मिग-21, मिग 27 और एमआई 17 हेलीकॉप्‍टरों को रवाना कर दिया गया. वहीं दुश्‍मन को सबक सिखाने के इरादे से 27 मई को फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता अपने मिग 27 विमान से द्रास की तरफ रवाना हो गए. इस ऑपरेशन के दौरान, उनका विमान पाकिस्‍तानी घुसपैठियों की स्ट्रिंग मिसाइल की चपेट में आ गया.

जिसके बाद, फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को मजबूरन अपने विमान से इजेक्‍ट होना पड़ा और उनका पैरासूट उन्‍हें लेकर नियंत्रण रेखा के पार चला गया, जहां दुश्‍मन सेना ने उन्‍हें बंधक बना लिया. इस घटना के बाद, फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता की तलाश के लिए स्‍क्‍वाड्रन लीडर ए आहूजा खोजी विमान मिग 21 के साथ रवाना किया गया. वहीं पहले से घात लगाकर बैठे दुश्‍मन ने स्‍क्‍वाड्रन लीडर ए आहूजा के विमान को निशाना बना लिया. आग से लिपटे अपने विमान से जैसे ही स्‍क्‍वाड्रन लीडर ए आहूजा इजेक्‍ट हुए, दुश्‍मन ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी.

और बौखलाया पाकिस्‍तान, शुरू की… 
इस ऑपरेशन में स्‍क्‍वाड्रन लीडर ए आहूजा ने देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्‍च बलिदान दे दिया. इसके बाद, 27 मई को भारतीय वायुसेना कि एमआई-17 विमान को पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने अपनी मिसाइल का निशाना बन गया. इस हमले में विमान में सवार चार जवान शहीद हो गए. इन तीन बड़ी घटनाओं के बावजूद भारतीय वायु सेना ने अपनी हिम्‍मत नहीं हारी और 27 मई को ही टाइगर हिल और प्‍वाइंट 4590 पर जबरदस्‍त हमला किया. साथ ही, भारतीय सेना के जांबाजों ने भारी गोलीबारी के बीच पहाडि़यों में चढ़ना शुरू कर दिया.

अब तक के ऑपरेशन के बाद भारतीय सेना को यह अहसास हो चुका था कि कारगिल की पहाडि़यों में बैठे घुसपैठिए आतंकी नहीं, बल्कि पाकिस्‍तानी सेना के प्रशिक्षित जवान हैं. जिसके बाद, भारतीय सेना ने अपनी रणनीति को नए सिरे से तैयार किया है और पूरी ताकत के साथ जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी. भारतीय सेना का हौसला देख पाकिस्‍तानी सेना बुरी तरह से बौखला गई और इसी बौखलाहट में पाकिस्‍तान ने एक जून को राष्‍ट्रीय राजमार्ग एक पर गोलाबारी शुरू कर दी.

भारतीय सेना ने कुचला पाक का गुरूर
भारतीय सेना के साहस और युद्ध कौशल के सामने दुश्‍मन के हौसले पस्‍त होने लगे. करीब तीन दिन चली लंबी कार्रवाई के बाद भारतीय सेना ने 9 जून को एक बार फिर बटालिक सेक्‍टर की दो अग्रिम चौकियों पर कब्‍जा कर भारतीय परचम लहरा दिया. 13 जून को भारतीय सेना ने तोलोलिंग की चोटी पर भी कब्‍जा जमा लिया. 29 जून को भारतीय सेना ने टाइगर हिल के प्‍वाइंट 5060 और 5100 पर मौजूद दुश्‍मन को जमींदोज कर एक बार फिर अपने कब्‍जे से ले लिया. इसके बाद, 2 जुलाई को भारतीय सेना ने कारगिल पर तीन तरफ से चढ़ाई शुरू की.
भारतीय सेना के जवानों ने अपनी बहादुरी और युद्ध कौशल की बदौलत 4 जुलाई को पूरे टाइगर हिल पर भारतीय तिरंगा फहरा दिया. 5 जुलाई को भारतीय सेना द्रास पर भी कब्‍जा करने में कामयाब रही. 7 जुलाई को भारतीय सेना ने बटालिक की जुबर हिल पर एक बार फिर भारतीय तिरंगा फहरा दिया. भारतीय सेना के अदम्‍य साहस और वीरता को देखकर दुश्‍मन सैनिकों ने पीठ दिखाकर भागने में अपनी भलाई समझी. 14 जुलाई को तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की विजय का ऐलान कर दिया. जिसके बाद से, भारतीय सेना के शौर्य के प्रतीक के रूप में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस घोषित कर दिया गया.

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