आपके डीमैट अकाउंट में लॉगिन करते ही सबसे पहले एक पॉपअप आता होगा. इस पॉपअप में एक वार्निंग होती है, जो कहती है कि फ्यूचर एंड ऑपशन्स में ट्रेड करने वालों में से 90 प्रतिशत लोगों को नुकसान होता है. यह पॉपअप इसलिए, ताकि लोन लेकर शेयर बाजार में पैसा लगाने वाले छोटे निवेशक डरें और इससे दूर रहें. रेगुलेटरी बॉडीज़ और सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर सकती है, लोगों को जागरुक कर सकती है, मगर निवेशकों को F&O में ट्रेडिंग करने से रोक नहीं सकती. इसी वजह से लोग भी ‘कथित तौर पर एक सट्टाबाजार’ की तरह इसमें लिप्त रहते हैं. लॉस लेते हैं, फिर कहीं से पैसा जुटाकर लाते हैं, ट्रेडिंग करते हैं, फिर लॉस लेते हैं… इसी तरह का चक्र चलता रहता है.
सेबी का एक डेटा कहता है कि अकेले वित्त वर्ष 24 में ही रिटेल निवेशकों ने डेरिवेटिव ट्रेडिंग (F&O Trading) में 52,000 करोड़ रुपये खो दिए. सरकार और सेबी नहीं चाहते कि छोटे निवेशक अपना पैसा और समय यहां बर्बाद करें. इसलिए कड़े फैसले लेने को मजबूर हैं. सरकार को लगता है कि लाख चेतावनियों के बाद भी जब एक साल में 52 हजार करोड़ रुपये फूंक डाले तो खुली छूट देने का मतलब नहीं बनता. बजट 2024 में शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) की दर बढ़ाने का फैसला इसी के मद्देनजर लिया गया है. दरअसल, सरकार अब कम पूंजी वाले निवेशकों को कान मरोड़कर घर वापस लाना चाहती है. घर मतलब बैंकिंग सिस्टम में. हालांकि LTCG बढ़ाने का कोई लिंक F&O ट्रेडिंग से नजर नहीं आता.
क्या है एसबीआई चीफ की राय
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के चेयरमैन दिनेश कुमार खारा को भी टैक्स बढ़ाने का फैसला अच्छा लगा. एसबीआई चीफ दिनेश खारा ने बजट 2024 पर एक नोट में कहा कि रेगुलेटरी बॉडी, खासकर सेबी, रिटेल निवेशकों को एफएंडओ ट्रेडिंग से हतोत्साहित करना चाहती है. खारा ने एक न्यूज एजेंसी को बताया कि जो इस तरह के साधनों का सहारा तलाश रहे हैं, वे बैंकिंग सिस्टम में वापस आ सकते हैं.
उन्होंने कहा कि डेरिवेटिव ट्रेड में रिटेल निवेशकों द्वारा किए गए महत्वपूर्ण नुकसान के कारण चिंताएं पैदा हुई हैं, जिसमें 90% प्रतिभागियों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. नीति निर्माताओं को चिंता है कि हाउसहोल्ड सेविंग्स को बेहतर तरीके से उपयोग करने के बजाय सट्टेबाजी में बर्बाद किया जा रहा है. सेबी ने बताया कि रिटेल निवेशकों ने अकेले वित्त वर्ष 24 में डेरिवेटिव ट्रेडिंग में 52,000 करोड़ रुपये खो दिए.
लोन लेकर बाजार में लगा रहे पैसा
सेबी ने इस तरह के ट्रेड्स पर अंकुश लगाने के लिए 7 सूत्रीय योजना बनाई है, जिसे सट्टा गतिविधियों को कम करने के उद्देश्य से बजट में उपायों द्वारा पूरक बनाया गया है. पिछले 3 वर्षों में, डिपॉजिट ग्रोथ क्रेडिट एक्सपेंशन से पीछे रही है. इसका मतलब है कि लोग जमा कम करवा रहे हैं और लोन ज्यादा ले रहे हैं. ऐसा करके सारा पैसा कैपिटल मार्केट अथवा शेयर बाजारों में जलाया जा रहा है.
खारा ने कहा कि बैंक खातों में सेविंग्स को रखना अब भी पहले स्थान पर बना हुआ है. यह आगे भी बना रह सकता है, क्योंकि आकर्षक ब्याज मिलता रहेगा. उन्होंने 2011 में आए एक ऐसे ही दौर को याद किया, जब इसी तरह की स्थितियां बनी थीं, लेकिन बाद में चीजें सुधर गई थीं.
बैंकों के लिए क्या है समस्या
जमा और ऋण के बीच का यह अंतर बैंकों के लिए चिंता का सबब है. बैंक परेशान हैं और लोन बांटना कम अथवा धीमा कर दिया है. यदि लोन कम बांटे जाते हैं या इसकी गति धीमी हो जाती है तो यह स्नेरियो ओवरऑल आर्थिक विकास में बाधा बन सकता है. खारा के अनुसार, भारत का सबसे बड़ा ऋणदाता एसबीआई है, जिसकी बाजार हिस्सेदारी नंबर पांचवां हिस्सा है, वित्त वर्ष 25 में 15% की ऋण वृद्धि और 8% की जमा वृद्धि का लक्ष्य लेकर चल रहा है. हालांकि 10% डिपॉजिट ग्रोथ हासिल करने का प्रयास किया जाएगा.