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केंद्र सरकार को क्यों वापस लेना पड़ा ब्रॉडकास्टिंग बिल? ड्राफ्ट पर क्यों था बवाल, जानिये

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केंद्र सरकार ने ब्रॉडकास्टिंग बिल 2024 का मसौदा वापस ले लिया है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कहा है कि अब नए सिरे से ब्रॉडकास्टिंग बिल का ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा. केंद्र सरकार ने तमाम स्टेक-होल्डर्स से ड्राफ्ट बिल की कॉपी भी लौटाने को कहा है. आपको बता दें कि इस ब्रॉडकास्टिंग बिल के ड्राफ्ट को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर था. साथ ही तमाम डिजिटल न्यूज़ पब्लिशर्स और कंटेंट क्रिएटर भी इस ड्राफ्ट का विरोध कर रहे.

सरकार ने 10 नवंबर 2023 को इस ड्राफ्ट को पब्लिक डोमेन में रखा था और लोगों से उनकी राय, सिफारिश और टिप्पणी मांगी थी. अब ड्राफ्ट को वापस लेने के बाद केंद्र ने कहा है कि 15 अक्टूबर 2024 तक सभी स्टेक-होल्डर्स से नए सिरे से विचार विमर्श के बाद नया ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा.

ब्रॉडकास्टिंग बिल के डाफ्ट में क्या था?
केंद्र सरकार ने ब्रॉडकास्टिंग बिल का जो ड्राफ्ट तैयार किया था, उसमें डिजिटल वेबसाइट्स, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से लेकर यू-ट्यूब, Facebook, Twitter और Netflix जैसे प्लेटफॉर्म्स के कंटेंट को रेगुलेट करने की बात थी. बिल के ड्राफ्ट में कहा गया था कि ब्रॉडकास्टर्स के लिए एक नई रेगुलेटरी बॉडी बनेगी. जिसका नाम- ‘ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ होगा. यही बॉडी ब्रॉडकास्टिंग से जुड़े बिल के लागू करवाने और उसकी निगरानी के लिए जिम्मेदार होगी.

किस कमेटी की बात थी?
इस ड्राफ्ट में कहा गया था कि बिल के लागू होने के बाद डिजिटल प्लेटफॉर्म पर न्यूज़ पब्लिश करने वाले ब्रॉडकास्टर को डिजिटल ब्रॉडकास्टर के तौर पर जाना जाएगा. ड्राफ्ट में यह भी प्रावधान था कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जो कंटेंट प्रसारित होगा, उसको रेगुलेट करने के लिए एक कंटेंट इवैल्यूएशन कमेटी बनेगी. यही कमेटी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर पब्लिश होने वाले कंटेंट को कंप्लायंस सर्टिफिकेट जारी करेगी. इस ड्राफ्ट में सेल्फ रेगुलेशन के लिए भी एक सिस्टम क्रिएट करने का प्रावधान था.

केंद्र सरकार का क्या पक्ष था?
नया ब्रॉडकास्टिंग बिल लाने के पीछे केंद्र सरकार का तर्क है कि इससे वह ब्रॉडकास्टर्स के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बनाना चाहती है. ताकि फेक न्यूज से लेकर हेट स्पीच, भ्रामक कंटेंट पर लगाई लगाई जा सके और प्लेटफॉर्म्स को अकाउंटेबल यानी जवाबदेह बनाया जा सके.

क्यों हो रहा था विरोध? 
बिल का ड्राफ्ट सामने आया तो डिजिटल न्यूज़ पब्लिशर्स ओर इंडिविजुअल कंटेंट क्रिएटर्स ने इसका विरोध शुरू कर दिया. उनका तर्क था कि केंद्र सरकार इस बिल के जरिए एक तरीके से उन पर सेंसरशिप लागू करना चाह रही है. बिल में जिस तरीके के प्रावधान हैं, उसके मुताबिक कोई भी डिजिटल न्यूज़ पब्लिशर या इंडिविजुअल कंटेंट क्रिएटर सरकार की किसी तरह से आलोचना नहीं कर पाएगा.

किस प्रावधान पर सबसे ज्यादा नाराजगी?
ड्राफ्ट में एक प्रावधान था डाटा के लोकलाइजेशन और डाटा एक्सेस का. डिजिटल न्यूज़ पब्लिशर्स और कंटेंट क्रिएटर्स का तर्क था कि इससे डाटा का एक्सेस सरकार को मिल जाएगा और निजता का उल्लंघन होगा. डाटा के दुरुपयोग की भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. एक और महत्वपूर्ण बात यह थी कि इस ड्राफ्ट के मुताबिक इंस्टाग्राम इनफ्लुएंसर्स और यूट्यूबर्स को उनके यूजर बेस या सब्सक्राइबर के आधार पर डिजिटल न्यूज ब्रॉडकास्टर्स की कैटेगरी में रखा गया था. इसका मतलब यह है कि उन्हें भी कंटेंट के लिए सरकार से रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता. जिसे वो फ्री स्पीच पर हमला बता रहे थे.

विपक्ष का क्या तर्क, क्या मांग कर रहे थे
ब्रॉडकास्टिंग बिल का ड्राफ्ट जब से पब्लिक डोमेन में आया, तभी से विपक्षी पार्टियां सरकार पर हमलावर थीं और अघोषित तौर पर सेंसरशिप लाने का आरोप मढ़ रही थीं. विपक्ष ने संसद सत्र में भी इस मामले को उठाया और बिल का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए पत्रकारों से लेकर सिविल सोसाइटी के मेंबर्स और दूसरे स्टेक-होल्डर्स को कमेटी में शामिल करने की मांग की थी.

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