दिल्ली में सियासी हलचल तेज हो गई है. हरियाणा चुनाव से ठीक पहले अरविंद केजरीवाल इस्तीफा देने जा रहे हैं. 17 सितंबर को अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे. अरविंद केजरीवाल ने रविवार को इसका ऐलान किया. उन्होंने कहा कि जब तक जनता से उन्हें ईमानदारी का सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता, तब तक वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे. तिहाड़ से जमानत पर बाहर आते ही इस्तीफे का ऐलान और समय से पहले चुनाव कराने की मांगकर अरविंद केजरीवाल ने सियासी पारा हाई कर दिया. अब दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. अरविंद केजरीवाल दिल्ली शराब घोटाला केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जमानत पर बाहर आए हैं.
अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफे का ऐलान कर बड़ा सियासी दांव खेला है. सुनीता केजरीवाल, सौरभ भारद्वाज, आतिशी और राघव चड्डा… अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर अभी सस्पेंस बरकरार है. दिलचस्प है कि जब वह जेल में थे, तब उन्होंने यह फैसला नहीं लिया, मगर जमानत पर जेल से बाहर आते ही उनका यह फैसला काफी चौंकाने वाला है. इसके पीछे उनका अपना सियासी मकसद है. वह एक साथ कई मकसद साधना चाहते हैं. एक ओर हरियाणा विधानसभा चुनाव और दूसरी अगले साल की शुरुआत में दिल्ली चुनाव है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल अपने इस दांव से आम आदमी पार्टी को सियासी फायदा पहुंचाना चाहते हैं.
नीतीश-हेमंत की राह पर केजरीवाल
मगर अरविंद केजरीवाल के लिए यह राह इतनी आसान नहीं होने वाली है. दुनिया इस दांव का अंजाम भी देख चुकी है. जिस राह पर अरविंद केजरीवाल चलने जा रहे हैं, उस राह पर दो अन्य मुख्यमंत्री भी चल चुके हैं. पूरी दुनिया ने देखा था कि कैसे उन दोनों मुख्यमंत्रियों को वापसी के लिए पापड़ बेलने पड़े थे. जी हां, अरविंद केजरीवाल से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन ने भी कुछ ऐसा ही दांव चला था. नीतीश कुमार ने जहां जीतन राम मांझी को अपनी जगह पर सीएम बनाया था तो हेमंत ने चंपई सोरेन को. दोनों ने कैसे अपने इस दांव से अपना प्रतिद्वंदी खड़ा कर लिया था, इससे सभी वाकिफ हैं.
नीतीश-मांझी मामला
सबसे पहले जानते हैं कि नीतीश ने क्या किया था. लोकसभा चुनाव 2014 में करारी हार के बाद नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी लेकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था. नीतीश ने अपनी जगह पर उस वक्त जदयू के ही नेता रहे जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था. जीतन राम मांझी 20 मई 2014 से 20 फरवरी 2015 तक बिहार के मुख्यमंत्री थे. जब नीतीश ने कुर्सी वापस हथियाने की कोशिश की तो मांझी कुर्सी देने को तैयार नहीं थे. जीतन राम मांझी को हटाने में नीतीश कुमार को काफी पापड़ बेलने पड़े थे. उसका नतीजा सबने देखा कि कैसे जीतन राम मांझी नीतीश के बड़े आलोचक और प्रतिद्वंदी बनकर उभरे. उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली और आज एनडीए का हिस्सा हैं.
हेमंत-चंपई कांड
हेमंत सोरेन ने भी कमोबेश नीतीश कुमार वाली ही स्थिति झेली. हेमंत सोरेन करप्शन के केस में जब जेल गए तो उन्होंने अपनी कुर्सी पर चंपई सोरेन को बिठाया. लेकिन जब हेमंत सोरेन जमानत पर बाहर आए तो उन्होंने फिर से सीएम पद की कमान संभाली. काफी भारी मन से चंपई सोरेन ने सीएम की कुर्सी छोड़ी. हेमंत को इसका खामियाजा अपने एक पुराने साथी को खोकर चुकानी पड़ी. चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं. हेमंत सोरेन के सामने चंपई सोरेन एक बड़ा प्रतिद्वंदि बनकर खड़े हो चुके हैं. इस तरह से नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन ने इस्तीफा देकर दांव तो खेला, मगर जैसे ही दोबारा कुर्सी पाई, अपने सामने एक बड़ा सियासी दुश्मन खड़ा कर लिया.
कहीं केजरीवाल संग भी न हो जाए खेल?
अब अरविंद केजरीवाल के साथ भी ऐसा ही होगा, यह कहना थोड़ा मुश्किल है. मगर अब तक के जो सियासी पैटर्न रहे हैं, उसे देखते हुए इस पैटर्न से इनकार भी नहीं किया जा सकता है. सियासत में कब, किसकी महत्वाकांक्षा बढ़ जाए कोई नहीं जानता. जीतन राम मांझी और चंपई सोरेन इसके बेस्ट उदाहरण हैं. अगर अरविंद केजरीवाल अपनी पत्नी सुनीता को मुख्यमंत्री बनाते हैं तो ज्यादा कुछ असर नहीं होगा. मगर आम आदमी पार्टी के अन्य नेता को बनाने से शायद भविष्य में उनके सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. बहरहाल, अरविंद केजरीवाल के इस सियासी दांव का हरियाणा चुनाव में और अगले साल होने वाले दिल्ली चुनाव में असर होगा या नहीं, यह आने वाला वक्त ही बताएगा.