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बढ़ते आयात का असर, व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर के करीब पहुंचा, आम लोगों को क्या होगा लाभ या हानि!

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भारत की आर्थिक ताकत लगातार बढ़ रही है और अर्थव्यवस्था की तेज तरक्की लगातार सुर्खियां बटोर रही है. आईएमएफ हो या वर्ल्ड बैंक या अन्य एजेंसियां, लगातार भारत की अर्थव्यवस्था की क्षमताओं व संभावनाओं के बारे में टिप्पणियां की जा रही हैं. इस बीच एक हालिया आंकड़े ने भारत की ग्रोथ स्टोरी के आलोचकों का ध्यान पकड़ा है. ये आकंड़े भारत के व्यापार से जुड़े हुए हैं और वे बताते हैं कि देश का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है. आलोचकों का तर्क है कि यह (व्यापार घाटा) भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है और इससे आम भारतीयों के जीवन पर असर हो सकता है.

सबसे पहले आंकड़ों की बात. एक दिन पहले बुधवार को व्यापार के आधिकारिक आंकड़े जारी किए गए. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अगस्त में भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 29.65 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. यह भारत के व्यापार घाटे का पिछले 10 महीने का उच्चतम स्तर है. व्यापार घाटे का आंकड़ा साल भर पहले यानी अगस्त 2023 में 24.2 बिलियन डॉलर पर रहा था, जबकि एक महीने पहले यानी जुलाई 2024 में यह 23.50 बिलियन डॉलर पर रहा था.

व्यापार घाटा होने का मतलब है कि निर्यात से ज्यादा आयात हो रहा है. मतलब भारत अन्य देशों को जितना निर्यात कर रहा है या बेच रहा है, उससे ज्यादा का आयात कर रहा है या खरीद रहा है. सरकारी आंकड़ों को देखने से यह चीज और स्पष्ट हो जाती है. अगस्त महीने में भारत का मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट यानी वस्तुओं का निर्यात कम होकर 34.71 बिलियन डॉलर पर आ गया, जो साल भर पहले अगस्त 2023 में 38.28 बिलियन डॉलर पर रहा था. दूसरी ओर आयात साल भर पहले के 62.30 बिलियन डॉलर की तुलना में बढ़कर पिछले महीने 64.36 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया.

हालांकि सर्विस यानी सेवा के मामले में भारत की स्थिति बेहतर रही. अगस्त 2024 में भारत का सर्विस एक्सपोर्ट बढ़कर 30.69 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. साल भर पहले यानी अगस्त 2023 में भारत ने 28.71 बिलियन डॉलर की सेवाओं का निर्यात किया था. दूसरी ओर सेवाओं का आयात साल भर पहले की तुलना में लगभग स्थिर रहा है. अगस्त 2023 में इसका आंकड़ा 15.09 बिलियन डॉलर रहा था, जो अगस्त 2024 में 15.70 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया.

पूरे साल में इतना बढ़ सकता है निर्यात

अगस्त महीने के दौरान भारत के निर्यात में 9.3 फीसदी की गिरावट आई. यह साल भर से ज्यादा समय में निर्यात के मोर्चे पर किसी महीने आई सबसे तेज गिरावट है. हालांकि पिछले महीने को छोड़ दें तो लंबी अवधि में भारत का निर्यात लगातार बढ़ रहा है. पिछले साल भारत का कुल निर्यात 778 बिलियन डॉलर का रहा था. केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने बुधवार को बताया कि इस साल भारत के निर्यात का कुल आंकड़ा 825 बिलियन डॉलर के पार निकल सकता है. मतलब भारत का निर्यात तो बढ़ रहा है, लेकिन व्यापार घाटे के मोर्चे पर खास असर नहीं हो रहा है और महीने दर महीने देश को व्यापार के मोर्चे पर घाटा होते जा रहा है.

अर्थव्यवस्था के लिहाज से व्यापार घाटे को देखें तो इसके फायदे भी हैं और नुकसान भी. आम तौर पर ऐसा मान लिया जाता है कि मजबूत आर्थिक तरक्की का मतलब ट्रेड सरप्लस होना ही है. ट्रेड सरप्लस यानी जब किसी देश का निर्यात उसके आयात से ज्यादा हो. इस स्थिति का सबसे बढ़िया उदाहरण चीन का है. हालांकि ट्रेड सरप्लस होने से मजबूत आर्थिक वृ्द्धि हो, यह जरूरी नहीं है. जापान इस बात के लिए केस स्टडी का काम करता है. जापान पिछले कई दशकों से ट्रेड सरप्लस वाला देश है, लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था की ग्रोथ 1990 के दशक के बाद से ही अटकी हुई है. इसे अर्थशास्त्र के पाठ्यक्रमों में लॉस्ट डिकेड्स के नाम से पढ़ा-पढ़ाया जाता है.

दूसरी ओर यह मान लिया जाता है कि ट्रेड डेफिसिट यानी व्यापार घाटे से संबंधित देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब होती है. यह भी सही धारणा नहीं है. इसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी अमेरिका का उदाहरण देखा जा सकता है. इन्वेस्टोपीडिया के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका 1976 से ही लगातार व्यापार घाटे में है, लेकिन उसके बाद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था की तरक्की बेमिसाल रही है. तब से अब तक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने 1.87 ट्रिलियन डॉलर से 28.78 ट्रिलियन डॉलर तक का सफर तय किया है.

रही बात ट्रेड डेफिसिट के असर की, तो उससे मुख्य तौर पर किसी देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ता है. आम लोगों के हिसाब से रोजगार पर असर पड़ने की बातें की जाती हैं, लेकिन इसकी पुष्टि करने वाले आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. इस बाबत कई अर्थशास्त्रियों का ये तर्क भी रहता है कि नेट बेसिस पर रोजगार का खास नुकसान नहीं होता है. आयात बढ़ने और निर्यात कम होने यानी ट्रेड डेफिसिट से रोजगार का नुकसान मैन्युफैक्चरिंग जैसे चुनिंदा सेक्टर तक सीमित रहता है, लेकिन सर्विस जैसे सेक्टर उसकी लगभग भरपाई कर देते हैं.

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