यूपीआई ने पेमेंट सिस्टम में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है. अभी कुछ साल पहले तक जहां कहीं भी पैसा भेजना एक सिरदर्द होता था वहीं, अब चंद सेकंड में आप कहीं भी और कभी भी रकम भेज सकते हैं. यूपीआई की सफलता का आलम यह है कि गांवों में छोटी-छोटी दुकानों तक इसे आराम से स्वीकार किया जाने लगा है. मगर, 7 साल पहले अस्तित्व में आए यूपीआई (UPI) के सामने एक ऐसा खतरा खड़ा हुआ है, जिसके बारे में जानते हुए भी अभी तक कोई हल नहीं निकल आया है. यह खतरा फोनपे (PhonePe) और गूगल पे (Google Pay) के रूप में है. आइए इस बारे में विस्तार से जान लेते हैं.
फोनपे और गूगल पे के पास 85 फीसदी बाजार हिस्सेदारी
दरअसल, फोनपे और गूगल पे डिजिटल पेमेंट सेक्टर की दो दिग्गज कंपनियां हैं. इनके पास करीब 85 फीसदी बाजार हिस्सेदारी है. इन दोनों कंपनियों ने डिजिटल पेमेंट सेक्टर में अपनी डुओपॉली खड़ी कर ली है. इनकी टक्कर में कोई और कंपनी अपनी जगह नहीं बना पा रही है. पेटीएम (Paytm) इनके सामने मजबूती से खड़ी हुई थी. मगर, पेटीएम पेमेंट्स बैंक (Paytm Payments Bank) पर आरबीआई द्वारा प्रतिबंध लगा दिए जाने के बाद उसकी स्थिति काफी कमजोर हो गई है. इसके बाद से यह डर पैदा हो गया है कि अगर कभी फोनपे या गूगल पे के साथ ऐसी कोई समस्या आती है तो स्थिति बहुत गंभीर हो जाएगी.
यूपीआई नेटवर्क पर कब्जा किए बैठी दोनों कंपनियां विदेशी कंट्रोल में
यूपीआई की लॉन्चिंग सितंबर, 2017 में हुई थी. उस दौरान यूपीआई ट्रांजेक्शन की संख्या 0.4 अरब थी, जो कि सितंबर, 2024 में 15 अरब से ज्यादा हो चुकी है. साथ ही लेनदेन का आंकड़ा भी 140 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है. इसका इस्तेमाल 30 करोड़ से ज्यादा लोग और 5 करोड़ मर्चेंट कर रहे हैं. ऐसे विशाल यूपीआई नेटवर्क पर कब्जा किए बैठी दोनों कंपनियां विदेशी कंट्रोल में हैं. फोनपे की बाजार हिस्सेदारी करीब 48.36 फीसदी, गूगल पे की 37.3 फीसदी और पेटीएम की 7.2 फीसदी है. सरकारी यूपीआई एप भीम (BHIM) की हालत तो बहुत ही खराब है. इसका मार्केट शेयर 1 फीसदी से भी कम है.
मार्केट शेयर घटाने के लिए कोई भी कदम नहीं उठा रहीं कंपनियां
इतने बड़े दो खिलाड़ियों की मौजूदगी के चलते किसी और को मौका ही नहीं मिल पा रहा है. इस सेक्टर में अमेजन (Amazon) और व्हाट्सएप (WhatsApp) ने भी एंट्री ली लेकिन, उन्होंने काफी देर कर दी. इसके चलते वह दौड़ में ही कहीं शामिल नहीं हैं. इन सब कारणों के चलते यूपीआई का मैनेजमेंट करने वाली संस्था नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने 4 साल पहले से सिस्टम में बदलाव करने शुरू कर दिए थे. एनपीसीआई ने अधिकतम मार्केट शेयर 30 फीसदी का कैप भी तय किया था. इसके लिए दो साल की डेडलाइन तय की गई. इसके बाद फिर से इसे 2 साल के लिए बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2024 तक टाल दिया गया. अब ऐसा कहा जा रहा है इस डेडलाइन को भी आगे सरकाया जाएगा. इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि इन 4 सालों में किसी भी कंपनी ने अपना मार्केट शेयर घटाने के लिए कुछ भी नहीं किया है.