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कौन हैं धन के देवता कुबेर जो भर देते हैं तिजोरी, जानिए इनकी पूजा का विधान और महत्व

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पुलस्त्य पुलस्ति ऋषि को ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक माना जाता है. कर्दम प्रजापति की कन्या हविर्भुवा से इनका विवाह हुआ था. कहते हैं कि ये कनखनल के राजा दक्ष के दामाद और भगवान शंकर के साढू थे. इनकी दूसरी पत्नी इडविला थी. पुलस्त्य और इडविला के पुत्र विश्रवा थे और विश्रवा के पुत्र रावण और कुबेर थे. विश्रवा की पहली पत्नी भारद्वाज की पुत्री देवांगना थी जिसका पुत्र कुबेर था. विश्रवा की दूसरी पत्नी दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी थी जिसकी संतानें रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और सूर्पणखा थीं. खर, दूषण, कुम्भिनी, अहिरावण और कुबेर रावण के सगे भाई बहन नहीं थे. बौद्ध धर्म में उन्हें वैश्रवण के नाम से जाना जाता है, जबकि जैन धर्म में उन्हें सर्वानुभूति के नाम से जाना जाता है.कुबेर देवता, हिन्दू पौराणिक कथाओं में धन के देवता और यक्षों के राजा हैं. उन्हें धनवानता का देवता और लोकपाल भी माना जाता है. कुबेर, उत्तर दिशा के दिक्पाल हैं. आओ जानते हैं धन के देवता कुबेर के बारे में खास बातें.

1. हिन्दू धर्म में कुबेर को धन का देवता माना गया है. धनतेरस और दीपावली पर माता लक्ष्मी और श्रीगणेश के साथ इनकी भी पूजा होती है. कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को इनकी विशेष पूजा की जाती है.

2. कुबेरदेव को यक्षों का राजा माना जाता है और उनके राज्य की राजधानी अलकापुरी है. कैलाश के समीप इनकी अलकापुरी है. श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्टदन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेर अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी सभा में विराजते हैं.

3. दीपावली की रात्रि को यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ हास-विलास में बिताते व अपनी यक्षिणियों के साथ आमोद-प्रमोद करते थे. सभ्यता के विकास के साथ यह त्योहार मानवीय हो गया और धन के देवता कुबेर की बजाय धन की देवी लक्ष्मी की इस अवसर पर पूजा होने लगी, क्योंकि कुबेर जी की मान्यता सिर्फ यक्ष जातियों में थी पर लक्ष्मीजी की देव तथा मानव जातियों में.

4. कुबेरे देवता देवताओं के कोषाध्यक्ष थे. सैन्य और राज्य खर्च वे ही संचालित करते थे. यक्षों के राजा कुबेर उत्तर के दिक्पाल तथा शिव के भक्त हैं. भगवान शंकर ने इन्हें अपना नित्य सखा स्वीकार किया है. देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर को पूजने से भी पैसों से जुड़ी तमाम समस्याएं दूर रहती हैं.

5. कुबेर पहले श्रीलंका के राजा था परंतु रावण ने उनसे लंका को हथिया लिया. कुबेर देव के पास एक महत्वपूर्ण पुष्पक विमान और चंद्रकांता मणि भी थी जिसे भी रावण ने हथिया लिया था.

6. कुबेर के संबंध में लोकमानस में एक जनश्रुति प्रचलित है. कहा जाता है कि पूर्वजन्म में कुबेर चोर थे-चोर भी ऐसे कि देव मंदिरों में चोरी करने से भी बाज न आते थे. एक बार चोरी करने के लिए एक शिव मंदिर में घुसे. तब मंदिरों में बहुत माल-खजाना रहता था. उसे ढूंढने-पाने के लिए कुबेर ने दीपक जलाया लेकिन हवा के झोंके से दीपक बुझ गया. कुबेर ने फिर दीपक जलाया, फिर वह बुझ गया. जब यह क्रम कई बार चला, तो भोले-भाले और औघड़दानी शंकर ने इसे अपनी दीपाराधना समझ लिया और प्रसन्न होकर अगले जन्म में कुबेर को धनपति होने का आशीष दे डाला. बाद में भगवान ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया. यह भी कहा जाता है कि यह कुबड़े और एक आंख वाले थे परतुं भगवती की अराधना से धनपति और निधियों के स्वामी बन गए थे.

7. कुबरे की शादी मूर दानव की पुत्री से हुई थी जिनके दो पुत्र नलकूबेर और मणिग्रीव थे. कुबेर की पुत्री का नाम मीनाक्षी था. अप्सरा रंभा नलकुबेर की पत्नी थी जिस पर रावण ने बुरी नजर डाली थी. यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को शाप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श नहीं कर पाएगा और यदि करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा. नलकूबेर और मणिग्रीव भगवान श्री कृष्णचन्द्र द्वारा नारद जी के शाप से मुक्त होकर कुबेर के साथ रहते थे.

हिंदू धर्म में धनतेरस के दिन कुबेर देव की पूजा करने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन कुबेर देवता की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में कभी भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता है. पुराणों के अनुसार कुबेर का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था तो प्रश्न यह उठता है कि वह धन के देवता किसी प्रकार बनें?

ऐसे बनें धन के देवता: पौराणिक कथा के अनुसार, कुबेर महाराज पूर्व जन्म में गुणनिधि नामक ब्राह्मण थे. बचपन में कुछ दिनों तक इन्होंने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया लेकिन बाद में कुसंगति में पड़कर जुआ खेलने लगे. धीरे-धीरे चोरी और दूसरे गलत काम भी करने लगे. जब इस बात का पता उनके पिता को लगा, तो उन्होंने उसे घर से बाहर निकाल दिया. घर से बेघर होने पर वे भटकते हुए एक शिव मंदिर में पहुंचा और वहां प्रसाद चुराने की योजना बनाई. मंदिर में एक पुजारी सो रहा था. उनसे बचने के लिए गुणनिधि ने दीपक पर एक अंगोछा फैला दिया, लेकिन पुजारी ने उन्हें फिर भी चोरी करते हुए पकड़ लिया और इसी हाथापई में गुणनिधि की मृत्यु हो गई.

भगवान शिव ने दिया वरदान: मृत्यु के बाद जब यमदूत गुणनिधि को लेकर आ रहे थे तो दूसरी ओर से भगवान शिव के दूत भी आ रहे थे. भगवान शिव के दूतों ने गुणनिधि को भोलेनाथ के सामने प्रस्तुत किया. तब भगवान शिव को यह प्रतीत हुआ कि गुणनिधि ने अंगोछा बिछाके उनके लिए जल रहे दीपक को बुझने से बचाया है. इसी बात से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गुणनिधि को कुबेर की उपाधि प्रदान की. साथ ही देवताओं के धन का खजांची बनने का भी आशीर्वाद दिया.

भगवान कुबेर की पूजा विधि के बारे में जानकारीः

  1. कुबेर देव को धन का देवता माना जाता है. इनकी पूजा हर दिन की जा सकती है, लेकिन विशेष तिथियों पर पूजा करने से शीघ्र फल मिलता है.
  2. धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी के बाद कुबेर देव की पूजा की जाती है. इस दिन कुबेर यंत्र की स्थापना उत्तर दिशा में करनी चाहिए.
  3. कुबेर यंत्र की स्थापना से पहले, इसे पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए.
  4. कुबेर यंत्र को पूजा स्थान, धन स्थान, तिजोरी, कार्यस्थल या दुकान में रखा जा सकता है.
  5. कुबेर देव को चंदन, धूप, फूल, दीप, नैवेद्य, और भोग लगाना चाहिए.
  6. कुबेर देव को प्रसन्न करने के लिए चावल की खीर, घी से बनी लापसी, और धनिया की पंजीरी का भोग लगाना चाहिए.
  7. कुबेर देव की पूजा में आरती ज़रूर करनी चाहिए.
  8. कुबेर देव की मूर्ति का मुख उत्तर दिशा में रखना शुभ माना जाता है.
  9. कुबेर देव को प्रसन्न करने के लिए ‘ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नमः’ इस मंत्र का जाप किया जा सकता है.