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बाइडेन ने ही किया था नाक में दम, ट्रम्प का मिजाज तो उनसे भी गर्म, भारत के दुश्मन को आने लगा पसीना

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने गुरुवार को अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को जीत पर बधाई भेजी. जिनपिंग ने कहा, “मैं चीन और अमेरिका से परस्पर लाभकारी सहयोग बढ़ाने का आग्रह करता हूं… मैं चीन और अमेरिका को नए युग में साथ मिलकर चलने का सही तरीका अपनाने का आह्वान करता हूं. दोनों देशों को संवाद और संचार को मजबूत करना चाहिए.” यह तो आधिकारक तौर पर बधाई का मैसेज है, मगर यह भी जगजाहिर है कि दोनों देशों के बीच रिश्तों में कितनी कड़वाहट है. यह कड़वाहट तब भी थी, जब डॉनल्ड ट्रम्प पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे. फिर अमेरिका में सत्ता बदली और जो बाइडन राष्ट्रपति बने, मगर रिश्तों में कोई सुधार नजर नहीं आया. कुल मिलाकर, ट्रम्प का वापस सत्ता में लौटना चीन के लिए नया सिरदर्द लेकर आया है. उसे फिर से आपसी व्यापार (ट्रेड), टेक्नोलॉजी और ताइवान के मुद्दे पर नए सिरे से सिर खपाना होगा.

अगर ट्रम्प अपने प्रचार के दौरान किए गए वादों पर कायम रहते हैं, तो इसका चीन पर सबसे बड़ा प्रभाव हो सकता है. उन्होंने चीन से अमेरिका को होने वाले सभी निर्यातों पर 60% शुल्क लगाने की बात कही थी. ऐसा शुल्क चीन की पहले से ही अस्थिर अर्थव्यवस्था के लिए झटका होगा, जो बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और सरकारी लोन से जूझ रही है. यूबीएस द्वारा इस साल के शुरू में एक विश्लेषण के अनुसार, चीनी आयातों पर 60% शुल्क चीन की अनुमानित आर्थिक वृद्धि में से लगभग 2.5 प्रतिशत अंकों, या आधे को कम कर सकता है.

चीन ने भी तो तोड़ा था वादा
ट्रम्प के पिछले कार्यकाल के दौरान अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर 360 बिलियन डॉलर से अधिक का शुल्क लगाया था. इसके बाद चीन को सौदेबाजी हेतु बातचीत के लिए मजबूर होना पड़ाय 2020 में दोनों पक्षों ने एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते के अनुसार, चीन ने वादा किया कि वह इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स में सुधार करेगा और 200 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त अमेरिकी सामान खरीदेगा. कुछ साल बाद एक रिसर्च ग्रुप ने बताया कि चीन ने वादे के अनुसार कुछ भी नहीं खरीदा.

राष्ट्रपति जो बाइडन ने ट्रम्प द्वारा लगाए गए अधिकांश शुल्कों को बनाए रखा और इस साल स्टील, सोलर सेल्स और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे आयातों पर नए शुल्क लगा दिए. पिछले अनुभव की तरह ये नए शुल्क चीन को फिर से बातचीत के लिए मजूबर कर सकते हैं.

ताइवान के साथ भी निभाना होगा!
ताइवान वैसे तो स्वशासित लोकतंत्र है, लेकिन चीन उसे अपना मानता है. इस पर ट्रम्प ने हाल ही में कहा था कि यदि चीन ताइवान में घुसने की कोशिश करता है तो अमेरिका चीनी सामानों पर 150% से 200% तक अधिक शुल्क लगा सकता है. यह बात अलग है कि अमेरिका भी ताइवान को अलग देश नहीं मानता, लेकिन उसे समर्थन करता है और उसका सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता भी है.

दिसंबर 2016 में ट्रम्प ने ताइवान की तत्कालीन राष्ट्रपति साई इंग-वेन से एक बधाई कॉल रिसीव की, जिससे चीन में चिंता भी जताई गई थी. आखिरकार उन्होंने ताइपे और बीजिंग के बीच के संबंधों में यथास्थिति का समर्थन किया. अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रम्प ने सुरक्षा चिंताओं के कारण चीनी टेक्नोलॉजी फर्मों को टारगेट करना शुरू कर दिया था. चीन की दूरसंचार दिग्गज कंपनी हुआवेई (Huawei) को मुख्त तौर पर निशाना बनाया गया था और उनके बहुत सारे काम अधर में ही लटक गए थे. बाइडन ने चीन की सेमीकंडक्टर्स तक पहुंच पर रोक लगाई, जो कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी जैसी इंडस्ट्री को विकसित करने के लिए आवश्यक हैं.

ट्रम्प की सोच बहुत अलग
ट्रम्प ने बाइडेन के चिप और विज्ञान अधिनियम (CHIPS and Science Act) की आलोचना की, जो घरेलू सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए 53 बिलियन डॉलर आवंटित करता है. ताइवान वर्तमान में दुनिया के 90 प्रतिशत हाईब्रिड चिप का उत्पादन करता है. ताइवान की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर निर्माता TSMC ने एरिज़ोना में उत्पादन बढ़ाया है. ट्रम्प ने CHIPS अधिनियम को समाप्त करने का वादा किया था, लेकिन आलोचकों का कहना है कि इससे अमेरिका के रि-इंडस्ट्रियलाइजेशन के प्रयासों को नुकसान पहुंचेगा. TSMC की सफलता ट्रम्प के लिए तनाव का कारण बन सकती है, क्योंकि वह मानते हैं कि चिप इंजस्ट्री को दशकों पहले ताइवान ने अमेरिका से चुराया था.