सुकमा। 2,200 से अधिक जनसंख्या वाला सुकमा जिले का गोगुंडा गांव आज भी बुनियादी सेवाओं के लिए तरस रहा है. नक्सली दहशत और दुर्गम पहाड़ी इलाका में बसा यह गांव बीते 15 दिनों में 10 आदिवासियों की मौत के बाद चर्चा में है.
मलेरिया से ग्रामीणों की मौत महज एक उदाहरण है गोगुंडा गांव के प्रति प्रशासन की उदासीनता का. गोगुंडा की स्थिति प्रशासन की असफलता की कहानी बयां करती है. नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में केवल खानापूर्ति नहीं बल्कि ठोस और निरंतर प्रयासों की जरूरत है. क्या सरकार इस ओर ध्यान देगी या गोगुंडा जैसे गांव इसी हाल में रहने को मजबूर रहेंगे?
पहुंच में बाधा
गांव तक पहुंचने के लिए 8 किमी लंबी खड़ी पहाड़ी चढ़नी पड़ती है. राशन और दवाइयां पहुंचाने में ग्रामीणों की मदद ली जा रही हैस लेकिन पर्याप्त दवाइयों की कमी से इलाज प्रभावित हो रहा है.
पानी की समस्या
गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. गांव में हैंडपंप तक नहीं हैं. ग्रामीण खुद एक दर्जन से अधिक रिंग कुएं बनाकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं.
बिजली की समस्या
क्रेडा विभाग द्वारा लगाए गए सोलर लाइट्स खराब हो चुके हैं. ऐसे में गांव में शाम 6 बजे के बाद घना अंधेरा छा जाता है.
बदहाल स्वास्थ्य सेवा
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर नहीं हैं. मात्र 6 कर्मचारी बड़ी आबादी के इलाज की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.
नक्सली प्रभाव और
गोगुंडा नक्सली गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है. गांव में प्रशासन की अन्य योजनाएं पहुंच ही नहीं पातीं स्वास्थ्य केंद्र की दीवारों पर सरकार के विरोधी नारे लिखे गए हैं, जो स्पष्ट संकेत देते हैं कि यह इलाका प्रशासन की पकड़ से बाहर है.
क्या चाहते हैं ग्रामीण?
ग्रामीणों का कहना है कि उनके लिए स्थायी समाधान की जरूरत है. उन्हें नियमित स्वास्थ्य सेवाएं आधारभूत सुविधाएं और नक्सल भय से मुक्त जीवन चाहिए.