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रात के अंधेरे में बाइक पर बैठकर फरार हुए अतुल सुभाष के सास और साले, बेंगलुरु पुलिस ने दर्ज की है FIR

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जौनपुर : 34 साल के AI इंजीनियर अतुल सुभाष की दुखद मौत ने जहां सोशल मीडिया पर तूफान ला दिया है, वहीं कानूनी प्रावधानों के हो रहे दुरुपयोग पर भी फ‍िर सवाल खड़े किए हैं. खासकर कानूनी धारा 498 (ए) को लेकर. इस धारा के जरिये अक्‍सर पुरुषों और उनके परिवारवालों को बेवजह फंसा दिए जाने के कई मामले ये बात साबित भी करते हैं. अतुल सुभाष की मौत के बाद इस गंभीर मुद्दे पर देशभर में चर्चा हो रही है. उधर, फैमिली कोर्ट में अतुल सुभाष का केस लड़ने वाले वकील दिनेश मिश्रा ने एक अहम दावा किया है. उन्‍होंने कहा है कि अतुल ने अपने न्याय व्यवस्था को लेकर अपने हिस्‍से का सच कहा था, इसमें कोर्ट या जज की कोई गलती नहीं है. उनके अनुसार, अतुल की आत्महत्या की वजह कोर्ट का आदेश नहीं था.

वकील का कहना है कि अतुल सुभाष बेंगलुरु में लगभग 84,000 रुपये महीने कमाते थे. उनके मामले में जुलाई में जौनपुर की फैमिली कोर्ट ने उनके बच्चे के लिए 40,000 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. वकील ने बताया कि यह आदेश केवल बच्चे के लिए था, न कि पत्नी के लिए. वकील ने कहा, “अतुल को शायद यह 40,000 रुपये ज्यादा लगे. अगर उन्हें यह रकम ज्यादा महसूस हो रही थी, तो उन्हें इसे चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट जाना चाहिए था.”

रिपोर्ट के अनुसार, अतुल के पास बेंगलुरु में किराए सहित अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए हर महीने 44,000 रुपये बचते थे. वकील ने कहा कि चूंकि उनकी पत्नी वैल सैटल्‍ड है और उसकी अच्छी कमाई है, इसलिए अदालत ने अलग रह रही पत्नी के लिए कोई भरण-पोषण का आदेश नहीं दिया.

वकील ने यह भी साफ किया कि आत्महत्या जैसा कदम उठाने से न्याय व्यवस्था को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. कोर्ट ने अपनी प्रक्रिया और कानून के मुता‍बिक ही फैसला लिया. इसमें किसी तरह की गलती नहीं हुई थी.

दिनेश मिश्रा ने कहा कि अगर अतुल के परिवारवाले उनके पास आकर सलाह लेना चाहते हैं, तो वह इस मामले में आगे की कानूनी सलाह देंगे. मिश्रा ने यह भी कहा कि अगर किसी को लगता है कि कोर्ट का आदेश गलत था, तो उसे अपील का अधिकार है. आत्महत्या जैसे कदम उठाना अत्यंत दुखद है और इससे कोई भी समस्या हल नहीं हो सकती.

उन्होंने इस मामले में कोर्ट के बाहर किसी भी तरह के समझौते या बाहरी दबाव की बात नकारते हुए कहा, “अगर कोर्ट के बाहर किसी ने प्रभावित करने की कोशिश की, तो इसके लिए कोर्ट जिम्मेदार नहीं हो सकता.”

वहीं, अतुल सुभाष के भाई ने न्याय की गुहार लगाते हुए कहा कि वह चाहते हैं कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कानून में बदलाव किया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति में परिवार को उचित कानूनी मार्गदर्शन मिलना चाहिए, ताकि वे आत्महत्या जैसे कदम न उठाएं.

दरअसल, यह मामला जुलाई 2024 में जौनपुर की फैमिली कोर्ट का था, जहां अतुल सुभाष और उनकी पत्नी के बीच गुजारा भत्ते को लेकर विवाद था. कोर्ट ने बच्चे के लिए 40,000 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया.