Home देश टैक्स स्लैब में होगा बदलाव या इस बार भी पूरे नहीं होंगे...

टैक्स स्लैब में होगा बदलाव या इस बार भी पूरे नहीं होंगे अरमान, क्या हैं आम आदमी की बजट से उम्मीदें

8
0

वित्त वर्ष 2025 के बजट को लेकर करदाताओं और विशेषज्ञों के बीच काफी उम्मीदें हैं. इस बार सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि वह आयकर स्लैब में संशोधन, निवेश सीमा में वृद्धि और स्टार्टअप्स के लिए प्रोत्साहन जैसे कई कदम उठाएगी. महंगाई और बढ़ते खर्च के बीच, मध्यम वर्ग और वरिष्ठ नागरिकों को राहत देने के लिए कर नियमों को और सरल और लचीला बनाने की मांग जोर पकड़ रही है.

कर प्रणाली को सरल और प्रगतिशील बनाने पर जोर दिया जा रहा है. आयकर स्लैब में बदलाव के साथ-साथ धारा 80C के तहत निवेश सीमा बढ़ाने और मानक कटौती (स्टैंडर्ड डिडक्शन) में वृद्धि के सुझाव सामने आए हैं. इसके अलावा, पूंजीगत लाभ कराधान को सरल बनाने और डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन देने की भी चर्चा है. यह बजट न केवल व्यक्तिगत करदाताओं के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि स्टार्टअप्स और एमएसएमई के विकास को भी नई दिशा दे सकता है.

आयकर स्लैब में बदलाव
वर्तमान में, ₹2.5 लाख तक की वार्षिक आय पर कोई कर नहीं लगता, जबकि ₹2.5 लाख से ₹5 लाख तक की आय पर 5% कर, ₹5 लाख से ₹10 लाख तक की आय पर 20% कर, और ₹10 लाख से अधिक की आय पर 30% कर लगाया जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि मुद्रास्फीति और जीवन यापन की बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए, इन स्लैबों में संशोधन की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, ₹2.5 लाख की सीमा को बढ़ाकर ₹5 लाख किया जा सकता है, जिससे मध्यम वर्ग को राहत मिलेगी.

धारा 80C के तहत निवेश सीमा में वृद्धि
वर्तमान में, धारा 80C के तहत विभिन्न निवेशों और बचत योजनाओं में ₹1.5 लाख तक की कटौती की अनुमति है. विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि इस सीमा को बढ़ाकर ₹2.5 लाख या ₹3 लाख किया जाना चाहिए, जिससे लोग अधिक बचत और निवेश के लिए प्रेरित होंगे.

स्टैंडर्ड डिडक्शन में वृद्धि
वर्तमान में, वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए ₹50,000 की मानक कटौती उपलब्ध है. महंगाई और बढ़ती जीवन यापन लागत को देखते हुए, विशेषज्ञ इस कटौती को बढ़ाकर ₹75,000 या ₹1 लाख करने की सलाह दे रहे हैं, जिससे करदाताओं को अतिरिक्त राहत मिल सके.

कैपिटल गेन कराधान में सरलता
वर्तमान में, विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों पर दीर्घकालिक और अल्पकालिक पूंजीगत लाभ कर की दरें और होल्डिंग अवधि भिन्न होती हैं, जिससे करदाताओं के लिए जटिलता बढ़ती है. विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि पूंजीगत लाभ कराधान को सरल और एकरूप बनाया जाए, जिससे निवेशकों के लिए समझना और अनुपालन करना आसान हो.