दिल्ली चुनाव में मिली सफलता के बाद अब मीडिया में चर्चा जोरों पर है कि आम
आदमी पार्टी (AAP) अपना अगला चुनावी ठिकाना बिहार (Bihar) को बना सकती
हैं. यह सवाल यूं ही नहीं उठा. दरअसल दिल्ली विधानसभा चुनावों के परिणामों
के बीच आम आदमी पार्टी ने एक टोल फ्री नंबर जारी कर अपनी पार्टी के विस्तार
को नई दिशा देने की घोषणा कर दी. इसी बीच प्रशांत किशोर (Prashant Kishor)
के साथ केजरीवाल की एक फोटो ने इस नई हवा को और बल दे दिया. बिहार
विधानसभा चुनाव में अब करीब 6 से 8 महीने का समय बचा है, ऐसे में क्या
केजरीवाल एंड टीम सिर्फ प्रशांत किशोर के कहने पर आनन-फानन में चुनाव में
कूद पड़ेगी.
क्यों प्रशांत किशोर को इतना बिहार प्रेम
दरअसल, बिहार की राजनीति को पिछले 3 महीनों में देखें तो प्रशांत किशोर और
पवन वर्मा दोनों जेडीयू से बड़ी बेइज्जती के साथ रुखसत कर दिए गए. ऐसे में
इन दोनों नेताओं को एक नए ठिकाने की तलाश हो और ठिकाना भी ऐसा जहां से
जेडीयू और नीतीश कुमार से बदला लिया जा सके. प्रशांत किशोर ने भले ही
अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों को अलग-अलग राज्यों में चुनावी सफलता दिलाई हो,
लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा बहरहाल तो अधूरी ही है. जेडीयू में
उपाध्यक्ष बनने के बाद भले ही नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से उनकी करीबी
रही हो, लेकिन पार्टी के नेताओं ने कभी उनको तवज्जो नहीं
दी. ललन सिंह समेत पार्टी के नेता अक्सर ही प्रशांत किशोर के खिलाफ बोलते रहे.
कुछ यही हाल पवन वर्मा का भी रहा. पवन वर्मा को राज्य सभा सीट भले ही मिल गई हो, लेकिन पार्टी में उनकी हैसियत वह नहीं बन पाई, जो आरसीपी सिंह की हुआ करती है. अपने को मजबूत दिखाने की कोशिश में ये नेता कई बार पार्टी लाइन से अलग बोलते दिखे, लेकिन इनकी यही आक्रामक रणनीति इनके लिए आत्मघाती हुई और दोनों जेडीयू से रुखसत कर दिए गए.
क्या है प्रशांत किशोर का ‘आप’ प्लानऐसे में प्रशांत किशोर के सामने सबसे पहला चुनाव बिहार का है. बिहार के राजनीतिक समीकरण को
देखें, तो वहां की राजनीति फिलहाल जेडीयू-बीजेपी गठबंधन और कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन के बीच
सिमटी हुई है. बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम
सिंह यादव ने एक महागठबंधन बनाने की कोशिश की थी. एसपी भले ही उस गठबंधन से बाहर हो गई थी, लेकिन जेडीयू और आरजेडी साथ आ गए और इसका ही परिणाम था कि बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई थी.
हालांकि, कुछ दिनों बाद आपसी मतभेद के कारण नीतीश कुमार बीजेपी के साथ चलेंगे, लेकिन नीतीश बीजेपी के साथ कितने सहज हैं यह ठीक-ठीक कहना फिलहाल मुश्किल है. 2015 के चुनावी समझौते को देखें तो समाजवादी पार्टी को सिर्फ 5 विधानसभा सीटे ही मिल रही थीं, अगर प्रशांत किशोर ‘आप’ को किसी गठबंधन में ले जाते हैं, तो यही हाल उसका भी होगा. सुत्रों की मानें तो प्रशांत किशोर की कोशिश भी फिलहाल यही दिख रही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या महत्वाकांक्षी अरविंद केजरीवाल सिर्फ 5-10 सीटों पर मान जाएंगे?
प्रशांत के ‘आप’ प्लान के लिए कितने तैयार हैं केजरीवाल
आम आदमी पार्टी के इतिहास को देखें तो पार्टी का सबसे ज्यादा नुकसान अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की महत्वाकांक्षा नहीं किया है. एक समय कांग्रेस और बीजेपी का विकल्प दिख रही इस पार्टी ने ताबड़तोड़ इतने चुनाव लड़े कि जहां इसका वजूद भी था वहां भी धीरे-धीरे पार्टी अपने अस्तित्व के लिए
लड़ती दिख रही है. आम आदमी पार्टी गोवा और पंजाब में मजबूत विकल्प के रूप में उभर रही थी, लेकिन पूरे देश में चुनाव लड़ने की कोशिश में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इन दो राज्यों पर अपना ध्यान फोकस नहीं कर पाया और इन दो राज्यों पर भी धीरे-धीरे पार्टी की पकड़ खत्म हो गई.
हालांकि बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री और पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को यह बात समझ में आ गई और उन्होंने दिल्ली पर फोकस कर लिया. इसका नतीजा इस विधानसभा चुनाव में साफ-साफ दिख रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सिर्फ प्रशांत किशोर के कहने से अरविंद केजरीवाल अपनी पुरानी गलती दोहराते हुए बिहार जाएंगे, क्योंकि बिहार में अभी भी पार्टी का कोई जनाधार नहीं है. बिहार की राजनीति अभी भी जातिगत समीकरणों में इतनी बुरी तरह उल्झी हुई है कि वहां इतने कम समय में पैठ बनाकर मजबूती से चुनाव लड़ना फिलहाल मुश्किल नजर आ रहा है.