Home छत्तीसगढ़ अवैध शराब: आबकारी की भूमिका पर उठ रहे सवाल?

अवैध शराब: आबकारी की भूमिका पर उठ रहे सवाल?

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जिले में अधिकांश मामलों में पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही

राजनांदगांव(दावा)। कोरोना संकट के चलते लाकडाऊन के बीच शहर सहित पूरे जिले भर में अवैध शराब बिक्री और तस्करी के मामले में बढ़ गए हैं। पुलिस ऐसे लोगों की धरपकड़ कर लगातार अभियान चला रही है, लेकिन अवैध शराब पर नकेल कसने की जिम्मेदारी जिस आबकारी विभाग के पास है, उसमें वह नकारा साबित हो रहा है। ज्यादातर अवैध शराब जप्ती के मामले में पुलिस विभाग द्वारा ही कार्यवाही की गई है, जबकि आबकारी विभाग का इसमें रोल कम नजर आ रहा है।
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लागू किए गए लाकडाऊन के दौरान जिले सहित प्रदेश की सभी देशी-विदेशी मदिरा दुकानें बंद हैं। सामान्य दिनों की तरह शराब उपलब्ध नहीं होने के कारण पीने वालों के लिए बड़ी समस्या आन खड़ी है। लोग अपना शौक पूराकरने के लिए भटक रहे हैं कि कहीं शराब मिल जाए। इसके कारण पियक्कड़ों के सामने क्या करें और क्या नहीं? जैसी स्थिति बनी हुई है। वहीं शराब के शौकीनों का शौक पूरा करने का जिम्मा अघोषित रूप से अवैध कारोबारियों ने उठा रखा है। हाल ही में डोंगरगढ़ क्षेत्र में पुलिस द्वारा शराब का बड़ा जखीरा पकड़ा गया। मामले की प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई कि 600 पेटी अंग्रेजी शराब को कोचियों द्वारा एक ट्रक में भरकर दुर्ग से डोंगरगढ़ क्षेत्र में लाया गया था। फिर उस अवैध शराब को बकायदा किराए के गोदाम मेें रखकर किश्तों में खपाया गया। कई छोटे कोचियों तक माल पहुंचाया गया। आखिरकार 227 पेटी शराब को पुलिस ने बरामद करने में सफलता हासिल की और इस मामले में पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। किंतु हैरत की यह बात रही कि इन तमाम बातों की आबकारी विभाग को भनक तक नहीं लगी।
मुख्यालय छोड़ दुर्ग से आना-जाना करती हैं एडीईओ नोन्हारे
ज्ञात हो कि विगत डेढ़-दो माह की अवधि में सर्वाधिक अवैध शराब के मामले भी डोंगरगढ़ सर्किल से सामने आए हैं। हाल ही में पुलिस द्वारा जिस गांव में अवैध शराब का जखीरा पकड़ा गया, वह गांव भी डोंगरगढ़ सर्किल में आता है। इसके अलावा डोंगरगढ़ सहित पूरे क्षेत्र के गांवों में अवैध शराब विक्रेताओं की इन दिनों बाढ़ आई हुई है। इस क्षेत्र में पुलिस प्राय: आए दिन अवैध शराब तस्करों, कोचियों और परिवहन करने वालों को पकड़ रही है, ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर आबकारी विभाग क्या कर रहा है? जबकि अवैध शराब बिक्री व तस्करी पर रोक लगाने और शासन को इससे होने वाले राजस्व के नुकसान से बचाने का पूरा जिम्मा आबकारी विभाग पर है। दरअसल अवैध शराब की बिक्री पर नकेले कसने और राजस्व के नुकसान से बचाने के उद्देश्य से ही शासन द्वारा आबकारी विभाग बनाया गया है, लेकिन इस विभाग का अमला अपने मूल काम में ही फ्लाप साबित हो रहा है, जिससे इसके औचित्य पर ही सवाल उठने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि जिले में आबकारी विभाग को चार सर्किल में बांटा गया है। प्रत्येक सर्किल हेतु एक एडीईओ के साथ कर्मचारी स्टाफ की तैनाती की गई है। डोंगरगढ़ आबकारी सर्किल की एडीईओ निरूपमा नोन्हारे हैं। उनके साथ विभाग के अन्य कर्मचारियों की टीम भी है। एडीईओ बनने के पहले से भी वह इसी क्षेत्र में लंबे समय से सेवारत हैं, ऐसे में जाहिर है कि उन्हें क्षेत्र के तमाम अवैध शराब कोरोबारियों के बारे में जानकारी होगी, फिर भी कार्यवाही क्यों नहीं की जाती? क्या वजह है कि आबकारी विभाग के होते हुए पुलिस वालों को अवैध शराब के मामलों में कार्यवाही करनी पड़ रही है? बताया जाता है कि एडीईओ अपने मुख्यालय डोंगरगढ़ में रहने की बजाय रोजाना दुर्ग से आना-जाना करती हैं, जिसके कारण उनकी टीम शराब तस्करों पर पूरी तरह से नकेल नहीं कस पा रही है।

फोन भी नहीं भी उठाते आबकारी के अफसर

विदित हो कि जिले में अवैध शराब के कारोबार पर रोक लगाने और तस्करों की धरपकड़ के लिए आबकारी विभाग के अधिकारियों के मोबाइल नंबरों को जनसंपर्क विभाग के माध्यम से सार्वजनिक किया गया था। उस दौरान आम जनता से अपील की गई थी कि शहर सहित जिले में कहीं पर भी यदि अवैध शराब तस्करी, बिक्री का मामला पता चलने पर उस सर्किल के अधिकारी को उनके मोबाइल नंबर पर सूचना दे सकते हैं, ताकि तत्काल कार्यवाही की जा सके। किंतु हैरत की बात है कि आबकारी विभाग और चारों सर्किल से जुड़े अधिकारियों में ऐसा कोई नहीं है, जो किसी का फोन उठाता हो। दरअसल शासन-प्रशासन की मंशा यही थी कि जहां विभागीय अमला नहीं पहुंच पाता, वहां की जानकारी लोगों के माध्यम से मिलने पर संबंधित पर कार्यवाही की जाएगी, जिससे शराब के अवैध कारोबार को काफी हद तक रोका जा सकता है, लेकिन जनता का जब कोई सुनने वाला ही नहीं है, तो लोग शिकायत किससे करें और सूचना किसे दें?

आबकारी की आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपैय्या?

आबाकरी विभाग का हाल इसी कहावत के जैसा है-आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपैय्या। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि राज्य शासन द्वारा आबाकरी विभाग के लिए भारी-भरकम सेटअप तैयार कर अमले को तैनात किया गया है। इतना ही नहीं पूरे अमले को गाड़ी, वाहन, डीजल-पेट्रोल सहित तमाम सुविधाएं भी दी जा रही है। विभागीय सूत्रों की माने तो आबकारी विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों के वेतन भुगतान की राशि हर माह करोड़ रूपए में जाती है। इसके अलावा अन्य तमाम सुविधाओं के नाम पर भी शासन द्वारा राशि का आबंटन किया जाता है। ऐसे मेें सवाल यह है कि लाखों रूपए का वेतन लेने वाले अधिकारी आखिर शासन को कौन सा लाभ पहुंचा रहे हैं? कभी-कभार कहीं कम मात्रा में शराब जप्ती कर अखबारों में विज्ञप्तियां छपवाकर सिर्फ खानापूर्ति का काम किया जा रहा है। लोगों का मानना है कि यदि दुर्ग, रायपुर की तर्ज पर राजनांदगांव जिले में भी आबकारी विभाग अपने मूल काम को करने लगे तो यहां अवैध शराब के मामले में पुलिस विभाग को कार्यवाही करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी?

शहर सहित जिले के बार में भी जांच जरूरी

लाकडाऊन के दौरान शराब की मांग और खपत बढऩे के बीच खबर मिली है कि शहर सहित जिले के उन स्थानों पर भी आसानी से शराब परोसी जा रही है, जहां बार का संचालन हो रहा है। हालांकि राज्य शासन के आदेश में कहा गया है कि लाकडाऊन के कारण देशी-विदेशी मदिरा दुकानों के साथ ही बार रूम के संचालन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। लेकिन बड़ा सवाल यह क्या वास्तव में शासन के आदेश का पालन हो रहा है? वैसे तो यह काम भी आबकारी विभाग का है। बताया जाता है कि लाकडाऊन के के पहले ऐसे बार रूम में जो शराब डंप थी, उसे अभी चोरी-चुपके खपाया जा रहा है। ऐसे में इस बात की जांच भी होनी चाहिए कि शहर सहित जिले में संचालित होने वाले बार रूम की जांच कर लाकडाऊन के पहले वहां रखी गई शराब और लाकडाऊन होने के बाद के स्टाक मिलान किया जाए, ताकि वास्तविक स्थिति का पता चल सके।

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