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राष्ट्रवाद की गेंद अब भारतीयों की ‘डी’ में

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मेरा नाम चीन चीन चूू,
चीन-चीन चू, बाबा चीन-चीन चूू,
रात चांदनी मैं और तुम,
हलो मिस्टर हाउ डू यू डू, मेरा नाम..।

चम्पक अपने चिरपरिचित अंदाज मेें यह मस्ती भरा गाना गाते हुए आया, वैसे ही बाबूलाल जोर से चिल्लाया- बंद कर चम्पक तेरा गाना। वह गुस्से से आग बबूला हो गया। तीखे तेवर कर बोला- चम्पक तुम नहीं जानते, पूरे देश में जनता चीन की दगाबाजी और हमारे वीर सैनिकों की हत्या से खौल रही है। और! तुम चीन-चीन चू वाला गाना गा रहे हो। अरे बाबूलाल, मित्र, तुम थोड़ा तो धैर्य रखते। मैं भी यह सब जानता हूं। तुमने वह वाला भी गाना तो सुना होगा- हम थे, वो थी और शमां रंगीन, समझ गए ना, जाते थे जापान, पहुंच गए ‘चीन’, समझ गए ना?
मित्र जो भी हो रहा है, अच्छा हो रहा है। भारत की आंखें तो खुली। आजादी के बाद से जो भी पी.एम. बना, सभी चीन के लिए लाल कारपेट रख उसकी मिजाजपोशी करते थे। भारतीय अपनी हर जरूरत के लिए चीनी सामानों पर ही निर्भर थे, अब ऐसा नहीं होगा। हम घूम फिर कर चीन ही पहुंच जाते थे। अरे कोरोना महामारी में वेन्टीलेटर और पीपीई कीट भी चीन से आयात हो रहा था। देखना है, चीन से जुड़ी पाबंदियों का सिलसिला कब तक चलता रहेगा? ‘राष्ट्रवाद’ की गेंद अब भारतीयों की ‘डी’ में है। बाबूलाल अभी भी आवेश में था। वह बोला- जो भी देशवासी अब चीनी सामानों का उपयोग करेगा, वह देशद्रोही माना जाएगा।
अब शहरवासी ने समझाते हुए कहा-बाबूलाल ऐसा कहना उचित नहीं है। अभी हमारे देश के कर्णधारों पर नजर रखो। देश भर में चाइनीज व्यापार का जाल फैला है। केन्द्र और राज्यों के स्तर पर चीन के साथ कितने हजारों करोड़ के सौदे अनुबंध रद्द होते हंै? यह देखना है। चीन ने गलवान में हमारे जवानों को मारा, उसी के बाद से चीन के ५९ एप पर प्रतिबंध लगाया गया था, यह कहकर कि इस एप्स के द्वारा चीन, भारत में डिजीटल जासूसी कर रहा था और हमारी सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा था।
शुक्र है, ईश्वर का मित्रों कि चीनी सैनिक गलवान में घुसपैठ कर हमारे सैनिकों की दगाबाजी से हत्या नहीं करते तो हमें पता ही नहीं चलता कि चीनी एप्स से हमारी सुरक्षा को खतरा है, शहरवासी ने कहा। डियर चम्पक तुम अब देशभक्ति के गाने गाओ। राष्ट्रवाद का जुनून पूरे देशभर में दिखना चाहिए। वैसे ही चम्पक ने अपनी बुलन्द आवाज में सुनाया-
आराम है हराम, आराम है हराम,
भारत के नौजवानों, आजादी के दिवानों,
तुम देश के कोने-कोने में पहुंचा दो ये पैगाम…
देखो पड़े हैं देश में, अब तक कितने काम अधूरे
मिलकार हाथ बढ़ाओ तभी यह हो सकते हैं पूरे,
आओ एक हो जाओ, इस देश को स्वर्ग बनाओ,
भारत का हो इस दुनिया में, सबसे ऊंचा नाम…
आराम है हराम, आराम है हराम।

वाह चम्पक तेरे पास तो गानों का अकूत खजाना है। लेकिन भाई मेरे, हाल के हालात गंभीर हैं, शहरवासी ने कहा। चीन के साथ हुए संघर्ष में हमारे 20 जवान शहीद हुए हैं। देश में जनाक्रोश फूट पड़ा है। अब आत्मनिर्भर बनने का यह अवसर है। चीन योजना अनुरुप विश्व के अनेक देशों में अपने उत्पादनों का निर्यात करता है, जिनमें से कई देश तो अमुक चीजों में चीन पर ही निर्भर हैं। चीन का माल सस्ता भी होता है।
आईपीएल की स्पान्सर चीनी कंपनी हटेगी?
तभी एक क्रिकेट का सट्टेबाज पास आया। मूड उसका बहुत उखड़ा हुआ था। कोरोना ने क्रिकेट में हो रहे धंधे को भी सूखा दिया है, शायद इस कारण वह उखड़ा हुआ है। शहरवासी ने कहा-भाई हालात अभी ऐसे ही रहेंगे। आईपीएल पर सवाल लगा है। विश्व की धनाड्य क्रिकेट बोर्ड का ताज रखने वाली बीसीसीआई की हाई प्रोफाइल क्रिकेट टूर्नामेंट याने आईपीएल के नाम के आगे पहले चीनी कंपनी का नाम आता है, जिसके चलते अधिकृत रूप से चीनी कंपनी का नाम भी दौड़ेगा। अब होना तो यह चाहिए कि बीसीसीआई को नुकसान बर्दाश्त कर कलंकित चीनी कंपनी का नाम और उसका हित अविलंब बाउंड्री के बाहर भेज देना चाहिए। हर सूरत में आईपीएल के चीनी स्पान्सर को दूर करना चाहिए।
कोरोना वायरस में खत्म होती जिंदगानियां
देश, प्रदेश व जिले में कोरोना पाजिटिव की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हो रही है। प्रशासन ने कफ्र्यू, धारा 144, सख्त लॉकडाउन लगाया, फिर भी पब्लिक किलर कोरोना वायरस को गंभीरता से नहीं ले रही है। बाजार खुलते ही सडक़ों व दुकानों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। कोरोना के पॉजिटिव केसों की वृद्धि को राज्य सरकारों की असफलता के रूप में भी देखा जा रहा है। कोरोना दिन दूनी, रात चौगुनी प्रगति कर रहा है। लॉकडाउन हो या अनलाक, सरकार जो भी निर्णय लेती है, वह सरकारी अधिकारियों के कंधों पर बंदूक रख लेती है। ‘‘स्थानीय प्रशासन तंत्र को अधिकार है’’ ऐसे विधान प्रसारित करके वह अपनी असफलता को छुपाने का प्रयास करती है। किंतु इससे अधिकारी राज और स्वेच्छाचारिता करने का खुला मैदान मिल जाता है। इसलिए शहर में नगर निगम प्रशासन या जिला व पुलिस प्रशासन हो, रोजाना नए नए नियम निकालते हैं। नियमों को अमल में लाने के लिए अधिकारी बल प्रयोग भी करते हैं और जन रोष का सामना भी करते हैं। कोरोना काल में लोक सेवकों की हिम्मत बढ़ गई है। ऐसे समय सरकार के आकाओं में साहसिक व व्यवहारिक निर्णय लेने की शक्ति न हो, तभी अधिकारी वर्ग की निकल पड़ती है। कई सरकारी नियमों के परिपत्र विरोधाभासी भी होते हैं, जिसके मायने भी अधिकारियों पर निर्भर करते हैं। फिलहाल तो जनता-व्यापारी दोनों ही हैरान हैं। उधर राजकीय नेतृत्व मौन दर्शक बना बैठा है, यह भी शोकांतिका है।
कैंसर कोरोना से भी भयावह होगा
दुनिया भर में कोरोना वायरस का भय फैला हुआ है। भारत भी कोरोना के मामले में शीर्ष स्थान में पहुंचने से थोड़ा ही पीछे है। कोरोना वायरस की भारत निर्मित वैक्सीन बाजार में अगस्त में उपलब्ध होगी, यह राहत देने वाली खबर है। किंतु जिस रोग के कारण देश में रोज तेरह सौ लोगों की मृत्यु होती है और हर साल 12 लाख लोग इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आते हैं और वर्ष दरम्यान 4,74,500 व्यक्तियों की मौत होती है, ऐसे भयंकर रोग की चर्चा नहीं होती। इस जानलेवा रोग से कैसे बचा जाए, इस बाबत कोई जागृति भी देश में नहीं है। इस रोग के कारण पौने पांच लाख लोगों की मौत होती है। इस रोग का नाम कैंसर है।
कोरोना वायरस के बीच भारत में कैंसर की भयानक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि भारत में प्रति 10 व्यक्तियों में एक व्यक्ति को कैंसर होगा। ऐसे परिणाम आगामी दिनों में देखने को मिलेंगे। प्रत्येक 15 कैंसर के मरीजों में एक व्यक्ति की मृत्यु होगी। यह डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट है। भारत में कैंसर के यह वर्तमान आंकड़े हैं। भविष्य में कैंसर इस हद तक लोगों को अपनी गिरफ्त में लेगा, जिसका चित्र बहुत ही भयावह होगा। देश में आगामी वर्षों में कैंसर की सुनामी आ सकती है।
जगह-जगह पिचकारियां और धुआं खतरनाक
गली-गली, मोहल्लों में पान मसाला, तंबाकू गुटखेउपलब्ध हैं। व्यसनियों को मूल कीमत से चार गुना अधिक कीमतों में मिलती है। सरकार के नियम-कानून इन हानि पहुंचाने वाले जहरीले पदार्थों के विक्रेताओं, निर्माताओं का अभी तक बाल भी बांका नहीं कर सके। व्यसनी तो कोरोना की ऐसी की तैसी कर रहे हैं और स्वयं कैंसर को इनवाइट कर रहे हैं। प्रचारित है- चाय-काफी से कोरोना भाग जाता है, किंतु मावा, गुटखा खाने वाले पब्लिक प्लेस में पिचकारी मारने में कोई संकोच नहीं करते। हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया की तर्ज पर 10 रूपए में मिलने वाली सिगरेट 20 से 40 रूपए तक मिलती है। इसे व्यसन कहें या शौक? क्योंकि शौक भी बड़ी चीज है। शौक का अर्थोपार्जन के साथ ही नहीं, किंतु आनंदोपार्जन के साथ भी संबंध हैं।
ऑनलाइन एजुकेशन सफल कैसे होगा?
वह विद्यार्थी, जिन्होंने 10वीं और 12वीं की एग्जाम दी है, फिर वह सीजी बोर्ड हो या सीबीएसई, उनका मार्ग अब आगे का शिक्षा ग्रहण करने का प्रशस्त हुआ है। उनका कठिनतम समय गुजर चुका है। विद्यार्थियों के माता-पिता की स्थिति अभी भी असमंजस है। ऑनलाइन कोचिंग, ऑनलाइन स्कूल की पढ़ाई को लेकर किसी ने उधार तो किसी ने किश्तों तो पैसे वालों ने अपने बच्चों के हाथों में मोबाइल पकड़ा दिए हैं। एक समय था, ये ही मोबाइल बच्चों के हाथों में देखकर पेरेंट्स चिल्ला उठते थे, किंतु अब समय पलटा है। वही पेरेंट्स बच्चों को मोबाइल खरीद कर दे रहे हैं। गरीबों के बच्चों का तो भगवान ही मालिक है। संभव हो तो भूपेश सरकार को चाहिए कि पूर्व की रमन सरकार के समय खरीदे गए मोबाइल सही सलामत हों तो कम से कम गरीबों को वे मोबाइल थोड़ा अपडेट करके उपलब्ध करा दें, ताकि वह भी ऑनलाइन पढ़ाई कर सकें। आज का बदला-बदला सा हाई प्रोफाइल एजुकेशन पैरेंट्स की समझ से बाहर है। 12वीं पास भी हो गए तो मूर्ख बनाकर पैसा ऐंठने वाले काउंसलर के चक्कर में आकर वे अपना कैरियर चुनते हैं। पैरेंट का तो केवल अपना बैंक बैलेंस ही कम करने का काम रह गया है। अपने बच्चों पर पैसा खर्च कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और इसके सिवाय वे कर भी क्या सकते हैंं?
आरटीओ चेक पोस्टों का पुन: शुभारंभ और चर्चित डायरी
हर आदमी के जीवन में सुख-दुख के आगमन का अवसर पहले से तय होता है। इसके परिपेक्ष्य में यह कि आरटीओ चेक पोस्ट फिर गुलजार होने जा रहा है। यह चंद लोगों के लिए सुखोत्सव जैसा है। सरकार के चंद विभागों में परिवहन विभाग भी भ्रष्टतम सूची में शामिल है। चेक पोस्टों में नियुक्तियां भी सेलेबल होती हैं। यह तो ऑल रेडी वेलनोन है। खैर यह करप्ट सिस्टम का एक पार्ट है। फिलहाल चेक पोस्टों की परमानेंट मानी जाने वाली ‘‘डायरी’’ चर्चा में है, जिसमें उन सभी लोगों के नाम और पोस्ट लिखे थे, जिन्हें पूर्व का चेकपोस्ट मैनेजमेंट यथा पदवार लिफाफे भिजवाता था। जनप्रतिनिधियों, अफसरानों, मीडिया वालों के नामों की लंबी सूची दर्ज वाली वह डायरी यथोचित स्थान यथा पदनामों सहित चेक पोस्टों के पुन: शुभारंभ के बाद पहुंच जाए, हितग्राहीजन ईश्वर से यही प्रेयर कर रहे हैं।
आखिर कर्मचारियों की मांग तो स्वीकृत होनी ही थी
कर्मचारी, फिर वह निजी संस्थान का हो या सरकारी संस्थान का, उसका मनोबल ऊंचा रहेगा, तभी वह अधिक परिश्रम कर अच्छे परिणाम ला सकता है। किसी भी संस्था में कर्मचारी रीढ़ की हड्डी के समान होते हैं। प्रशासन में कार्यकुशलता लाने में कर्मचारियों की अहम भूमिका रहती है। शायद यही कारण है कि भूपेश सरकार ने अधिकारियों-कर्मचारियों को वार्षिक वेतनवृद्धि और वेतनवृद्धि की एरियर्स देने का निर्णय लिया है। कोरोना के कठिन दौर में राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति के मद्देनजर कर्मचारियों की वेतनवृद्धि विलंबित की थी, किंतु राज्य के कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन की मांग को स्वीकार करते हुए निर्धारित तिथि तक भुगतान करने की बात की है। पूर्व में केंद्र सरकार ने भी कर्मचारियों को इसी तरह की आर्थिक राहत दी थी।
सरकार कोरोना को मात दे सकती है, सरकार चीन पर जीत हासिल कर सकती है, किंतु जहां कर्मचारी यूनियन के बैनर तले कोई मांग करते हैं तो वहां सरकार को ही हार स्वीकार करनी पड़ती है। वैसे यह अच्छा ही है, कर्मचारियों का मनोबल और स्वाभिमान खंडित हो, यह तो ठीक नहीं। अगर ऐसा होगा तो सरकार की नीतियों के सही क्रियान्वयन पर प्रश्र चिन्ह लगेगा ही।
अनाम चंद लाइनें खिदमत में-
– कोई चराग जलाता नहीं सलीके से,
मगर सभी को शिकायत हवा से है।
– एक अंधेरा लाख सितारे,
एक निराशा लाख सहारे।
-दीपक बुद्धदेव

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