Home छत्तीसगढ़ संयोगवश! भारत और भ्रष्टाचार की राशि एक ही है!

संयोगवश! भारत और भ्रष्टाचार की राशि एक ही है!

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भ्रष्टाचार और भारत एक ही राशि के हैं याने कि इन दोनों के बीच अटूट बंधन है। इन दोनों का एक-दूसरे के साथ इतना अच्छा बनता है कि इनकी धनु राशि धन्य-धन्य हो जाती है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत की कल्पना ही बेमानी लगती है। वैसे भी कोई भी राजनैतिक दल या कोई भी नेता जब ‘जीरो टालरेंस’ की बात करता है, तब लोगों के मुख पर हंसी फूट पड़ती है। भारत ने भ्रष्टाचार को आश्रय दिया, अन्यथा यह बेचारा भ्रष्टाचार कहाँ जाता? भ्रष्टाचार की बाबत में दुनिया का कोई भी देश उतना उदार नहीं है, जितना भारत है। भ्रष्टाचार को भारत की जलवायु और आतिथ्य ऐसा माफिक आ गया है कि कोई भी अन्य देश हमारे अतिथि भ्रष्टाचार को आमंत्रित भी करेगा तो वह जाने के लिए तैयार नहीं होगा। क्योंकि हमारे यहां उसका जितना लालन-पालन होता है और बड़े प्रेम से रखा जाता है, उतना अन्य देश नहीं रखेगा, इसका ख्याल तो उसे आ ही गया है। इसलिए वह हमारे देश से कहीं जाने का नाम नहीं लेता।
भ्रष्टाचार के भी भिन्न-भिन्न प्रकार होते हैं। जैसे कि धर्मिक भ्रष्टाचार, सामाजिक भ्रष्टाचार, शैक्षणिक भ्रष्टाचार, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, व्यवस्थापकीय भ्रष्टाचार! और इन सभी भ्रष्टाचार के आदर्श पिता हैं ‘राजकीय भ्रष्टाचार’ तथा सम्पूर्ण भ्रष्टाचार के आदी पिता अगर कोई है तो वह एक मात्र है ‘‘आर्थिक भ्रष्टाचार।’’
धार्मिक भ्रष्टाचारियों की हमारे देश में पूजा होती है। क्योंकि, हम सभी धार्मिक देश के श्रद्धालु नागरिक हैं। सामाजिक भ्रष्टाचार को व्यवहारिक याने प्रेक्टिकल मानकर हम उसका सम्मान करते हैं। शैक्षणिक भ्रष्टाचार का हम बड़े उत्साह से स्वागत करते हैं, क्योंकि हम ‘एजुकेटेड’ हंै, इस भ्रम में हंै। व्यवस्थापकीय भ्रष्टाचारियों के साथ हम फोटो खिंचवा कर स्वयं को प्रभावशाली समझते हैं। राजकीय भ्रष्टाचार को हम सिर-माथे पर चढ़ाते हैं। हम कितने कमजोर हो गए हंै, इसका ख्याल भी हमें राजनीतिज्ञों ने नहीं आने दिया। भ्रष्टाचारियों को हम ‘महानुभाव’ कहकर सम्बोधित करते हैं। क्योंकि हमने खुद के ही स्वाभिमान और अपमान के बीच की भेद रेखा को मिटा दिया है। भारत में तीन का महत्व सदियों से बढ़ रहा है-पहला भगवान, दूसरा भ्रष्टाचार और तीसरा भिखारी। चूंकि उक्त तीनों और भारत, ये चारों एक ही राशि धनु के हैं, इसलिए ये चारों हमारे जैसे श्रद्धालुओं और भाविकों के बगैर अधूरे हैं।

राजनीति के शतरंज के मायने समझ से बाहर
शहरवासी भारत-चीन का शोर चैनलों में थमा। अब मृतक गैंगस्टर विकास दुबे टीवी पर छाए हुए हैं, किन्तु इसके पहले राजीव गांधी फाउंडेशन सहित तीन और ट्रस्टों की जांच करने के गृह मंत्रालय ने आदेश दिए हैं। हमारे ही देश में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच ऐसे राजनैतिक शतरंज का खेल चलते रहता है, बाबूलाल ने कहा।
बाफोर्स कांड का क्या हश्र हुआ, भूल गए क्या? 64 करोड़ के बोफोर्स कांड की जांच के पीछे 1000 करोड़ से भी ज्यादा खर्च हुए किन्तु उक्त कांड में भ्रष्टाचार हुआ है? रिश्वतखोर-चोर कौन है? अगर कोई है भी तो उसे दण्ड क्यों नहीं मिला? ये सवाल अभी भी खड़े हैं। बोफोर्स कांड से राजीव गांधी की सरकार चली गई थी और वीपी सिंह सरकार केन्द्र में रची थी। राजनैतिक कुचक्रों का तो देश भर में जाल बिछा हुआ है।
छत्तीसगढ़ में ही काबिज भूपेश सरकार में पूर्व सी.एम. डॉ. रमन सिंह की बढ़ी सम्पतियों की जांच अब ईओडब्ल्यू करेगी। यूं भी 15 वर्षाे तक प्रदेश में राज करने वाले डॉ. रमन सिंह को घेरने कांग्रेस की सरकार कोई मौका हाथ से नहीं जाने देती। इस तरह के मामलों के जांच परिणाम अंधेरों में ही गुम रहते हैं। देश में भ्रष्टाचार कहां नहीं है? ढूंढने से एक भी भ्रष्टाचार मुक्त क्षेत्र नहीं मिलेगा। राजनीति भी क्रिकेट जैसी है। यहां बॉलिंग और बेटिंग चलती रहती है। बस बालर और बेट्समैन बदलते रहते हैं।
राजीव गांधी फाउंडेशन व रिलेटेड ट्रस्टों की जांच के साथ में यह कि यहां संदेहास्पद अनेक ट्रस्ट हैं, जिनके ट्रस्टीगण भरोसेमंद ही नहीं हैं। शहर में ही एक सामाजिक शैक्षणिक संस्था अपने फर्जी ट्रस्ट के सहारे लाखों की संपत्तियों की बिक्री कर चुकी है। यहां ट्रस्ट एक्ट के अस्तित्व के होने का प्रश्र इसलिए भी नहीं उठता, क्योंकि ट्रस्ट का पंजीयन ही नहीं है। चलता है सब, सामाजिक भ्रष्टाचार प्रेक्टिकल कहलाता है।
लेकिन बात यहां मित्र राजनैतिक शतरंज की हो रही है। बैटिंग और बालिंग की हो रही है। विपक्ष में तो अभी डॉ. रमन सिंह ही बैट्समैन हैं, जो अडिग बैटिंग कर रहे हैं। पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है, किंतु छत्तीसगढ़ की भाजपा में वे ही एक दमदार हैं। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव, ये दोनों ही महानुभाव डॉ. रमन सिंह के पसंदीदा हैं। भूपेश सरकार पर बयानों से प्रहार करके मीडिया में छाए रहने वाले रमन सिंह ने पार्टी के सीनियर नेताओं को बौना कर दिया है।

बृजमोहन से मित्रता और रमन टारगेट पर
वाकई में मित्र डॉ. रमन सिंह ही भूपेश सरकार के निशाने पर हैं। बृजमोहन अग्रवाल और भूपेश बघेल अपनी अटूट मित्रता निभा रहे हैं। कांग्रेस की सरकार में बृजमोहन भैया अभी भी अपने पूर्व मंत्री पद के समय आबंटित बंगले का निर्विघ्न उपभोग कर रहे हैं। केन्द्र में मोदी सरकार ने प्रियंका गांधी वाड्रा का एलाटेड बंगला खाली करवा दिया है। किंतु भाजपा विधायक नेता सरकारी बंगले में काबिज हैं जो कांग्रेस के अन्य नेताओं को भी खल रहा है।
देखो शहरवासी राजनीति में मित्रता-शत्रुता सब अस्थायी रहती है। मतलबपरस्ती यहां हावी रहती है। तुम्हें याद दिलाउं मित्र अगस्त 2017 में जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में थी, तब विधानसभा के मानसून सत्र में प्रश्रकाल नहीं चल पाया था। प्रतिपक्ष कांग्रेस ने तत्कालीन कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के द्वारा आदिवासियों ने जो जमीनें राज्य सरकार को दान में दी थी, उस पर बृजमोहन अग्रवाल के द्वारा कब्जा किए जाने को लेकर हंगामा बरपाया था। कांग्रेस प्रश्रकाल चलाए जाने की भी मांग कर रही थी। वह कृषि मंत्री रहे अग्रवाल से इस्तीफे की भी मांग कर रही थी, नारेबाजी कर रही थी, किंतु आसंदी से कोई प्रतिसाद न मिलने पर कांग्रेस विधायकों ने गर्भगृह में जाना पसंद किया था। अब यही कांग्रेस सत्ता पर है और इस बाबत मौन है।
सही याद दिलाया बाबूलाल तुमने, ऐसा ही हुआ था, शहरवासी ने कहा। किंतु डियर कांग्रेस सत्ता में तो है और बृजमोहन भैया उनके लिए बड़े आदरणीय हैं।

वे जब याद आए, बहुत याद आए…
जिले के मदनवाड़ा में 10 वर्ष पूर्व तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे और उनके साथ 29 पुलिस कर्मियों की शहादत अविस्मरणीय है। हर साल 12 जुलाई आती है और शहादत की यादें आंखे नम कर देती हैं। दु:खद यह कि हमारे यहां इतनी दुर्दांत घटना घटी और इसकी न्यायिक जांच का परिणाम नदारद है। विलंब से आए परिणाम से क्या हासिल होगा? जिले के पुलिस अमले के शीर्ष अधिकारी किन परिस्थितियों में मौका ए वारदात पर पहुंचे? क्या माओवादियों के किसी मुखबीर द्वारा दी गई सूचना की कोई भूमिका थी? जिससे एसपी स्तर के अधिकारी शहीद हुए। ऐसे अन्य कई प्रश्र हैं, जिसके जवाबों से बहुत से रहस्य उजागर हो सकते हैं।
वर्तमान कांग्रेस की भूपेश सरकार ने सितंबर 2019 में कीर्ति चक्र से सम्मानित शहीद एसपी विनोद चौबे व अन्य पुलिस कर्मियों के प्रकरण की जांच हेतु आयोग का गठन किया है। अद्र्धसत्य अधिकांशत: बड़ा झूठ होता है, पूर्ण सत्य विलंब से ही सही सामने आयेगा, तभी कुछ समझ में आयेगा।

अफसरों को जनप्रतिनिधियों से कोई सरोकार नहीं?
शहरवासी ने नगर भ्रमण के दौरान देखा कि पुराने जिला अस्पताल के पास स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों की भीड़ लगी थी। पास जाने पर मालूम हुआ कि यहां कोरोना जांच के लिए एक ट्रूनॉट लैब का उद्घाटन कलेक्टर एवं एसपी द्वारा किया जा रहा है। मौके पर एक भी जनप्रतिनिधि को न देख शहरवासी को आश्चर्य हुआ। मन ही मन सोचने लगा कि क्या अब कांग्रेस शासन में जनप्रतिनिधियों की पूछपरख खत्म हो रही है? वह दिन भी याद है जब, रमन सरकार के 15 सालों के कार्यकाल में हर सार्वजनिक कार्यक्रम जैसे भूमिपूजन, लोकार्पण, शुभारंभ और उद्घाटन जनप्रतिनिधियों के हाथों ही कराने की परंपरा रही, किंतु अब सत्ता परिवर्तन के बाद क्या शहर के नेताओं के इतने बुरे दिन आ गए कि अधिकारियों के द्वारा ही उद्घाटन कराया जाने लगा है? कोई नहीं मिला तो शहर की प्रथम नागरिक कांग्रेस नेत्री श्रीमती हेमा देशमुख को ही बुलाया जा सकता था। हैरत तो इस बात को लेकर भी है कि न तो उस अधिकारी ने कांग्रेस नेताओं को पूछने की जरूरत महसूस की और न ही सत्तापक्ष याने कांग्रेस के नेताओं को इससे कोई तकलीफ हुई? खैर हमें क्या? शहरवासी तो इसी बात पर खुश है कि अब कोरोना की जांच कराने के लिए उसे शहर से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। इस लैब के खुलने से कम से कम लोगों को सुविधा तो मिलेगी ही।

भाजपा कार्यालय में महिला नेत्री ने उठाई चप्पल ?

नेताओं की बात चली है तो प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की चर्चा भी जरूरी है। गत दिवस जिला पार्टी कार्यालय में ऐसा कुछ वाक्या ऐसा हुआ कि जिलाध्यक्ष ने अपनी पार्टी की कर्मठ एक महिला नेत्री को पार्टी से न सिर्फ निलंबित कर दिया बल्कि उसे छह साल के लिए बर्खास्त भी कर दिया। उस महिला नेत्री की गलती यही थी कि वह आवेश में आकर अपनी बातों को रखने के दौरान मर्यादा भूल गई। बात इतनी बढ़ गई कि उसने आव देखा न ताव और चप्पल उठा दिया। यह सब कुछ इतना अचानक हुआ कि बैठक में मौजूद पार्टी के मठाधिशों को भी शर्मसार होना पड़ गया। किंतु इस अप्रत्याशित घटनाक्रम को लेकर शहर में चर्चा सरगर्म रही। अब उस महिला नेत्री को जिस तरीके से आनन-फानन में निलंबन के साथ ही बर्खास्तगी की सजा दी गई है, उसे लेकर जिला अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र पर सवाल भी उठने लगे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि पार्टी के किसी भी सदस्य को निलंबित करने अथवा बर्खास्त करने का अधिकार जिलाध्यक्ष को है ही नहीं। वह तो सिर्फ प्रदेश बाडी से सिर्फ इसकी अनुशंसा कर सकते हैं। ऐसे में उस महिला नेत्री द्वारा प्रदेश भाजपा से अपील की गुंजाईश तो दिखती है, किंतु ऊपर बैठे नेताओं के जिलाध्यक्ष से जो करीबी संबंध हैं, उससे नहीं लगता कि यह मामला सुलझेगा ?

कुछ नेताओं की हरकत से संस्कारधानी शर्मसार
भाजपा का एक नेता ऐसा भी है, जो अक्सर अपनी हरकतों को लेकर सुर्खियों में रहते आया है। वैसे उस नेता का मूल कार्यक्षेत्र नगर निगम ही है। बेचारा कुंवारा जो ठहरा, इसलिए उसकी हरकतें भी वैसी हैं। यह वही नेता है जो हाल ही में भाजपा के एक व्हाट्सएप ग्रुप में पोर्न वीडियो पोस्ट करने के कारण सुर्खियों में रहा। ग्रुप में उस वीडियो को देखकर कई सदस्यों ने तत्काल आपत्ति भी दर्ज कराई। कुछ सदस्यों ने उसे पोस्ट किए गए वीडियो को तत्काल डिलीट करने भी कहा, किंतु उसकी परेशानी यही थी कि उसे तो सिर्फ पोस्ट करने और ग्रुप में आए हुए मेसेज को सिर्फ पढऩे आता है। डिलीट कैसे किया जाता है, इसका तो उसे आप्शन ही नहीं मालूम। अब बेचारा क्या करंे, अपने मोबाइल से उस वीडियो को डिलीट कर दिया, किंतु ग्रुप में वह वीडियो सबके पास पहुंच गया। आखिरकार उस ग्रुप के सब सदस्यों को ग्रुप से रिमूव कर ग्रुप को ही खत्म करना पड़ा। महत्वपूर्ण बात यह थी कि उस व्हाट्सएप ग्रुप की एडमिन एक भाजपा नेत्री थी। ग्रुप बनाने के पीछे उसकी मंशा पार्टीगत सूचनाओं के आदान-प्रदान को लेकर जरूर रही होगी, जिस पर उस नेता ने पानी फेर दिया। शहरवासी इस बात को लेकर हैरान और शर्मसार है कि गंदी मानसिकता वाले नेताओं को इस बात का ध्यान क्यों नहीं रहता कि लोग उसे क्या कहेंगे? वैसे यह मामला आया राम-गया राम जरूर हो गया। पार्टी द्वारा उस नेता पर कोई एक्शन नहीं लिया जाना भी सवालों के घेरे में है?

अपनी बाडी घोषित नहीं कर पा रहे कांग्रेस अध्यक्ष
सत्ता में आने के बाद भी कांग्रेस नेताओं में वो जोश और जज्बा नजर नहीं आता, जो सरकार में रहते हुए होना चाहिए। सब कुछ धकेल गाड़ी की तरह ढर्रे पर चल रहा है। बात जिले की हो या प्रदेश की, दोनों की वही स्थिति है। जिला और शहर कांग्रेस अध्यक्षों की ताजपोशी हुए चार माह से अधिक समय बीतने को है, पर अभी तक कार्यकारिणी की घोषणा नहीं की गई है। कहा जा रहा है कि दोनों अध्यक्ष अपने-अपने कामकाज में ही मस्त हैं और वे भूल गए हैं कि स्वयंभू अध्यक्ष होने से पार्टी और सरकार का भला कभी नहीं हो सकता। लोकतंत्र की सफलता इसी में है कि कार्यों का विकेन्द्रीयकरण किया जाए। सबको जिम्मेदारी सौंपी जाए ताकि पदाधिकारी और कार्यकर्ता और पार्टी और अपनी सरकार के हित में जनता के साथ बेहतर तालमेल बिठाकर अच्छा काम कर सकें।
कांग्रेस में इन दिनों निगम, मंडलों में नियुक्तियों और जिले से संसदीय सचिव बनाए जाने को लेकर भी राजनीतिक सरगर्मी देखी जा रही है। चर्चा है कि निगम और मंडलों में लालबत्ती बंटने के बाद ही कांग्रेस की जिला और शहर कार्यकारिणी का विस्तार किया जाएगा। दूसरी ओर जिले से संसदीय सचिव बनने को लेकर रोजाना नए-नए दावेदारों के नाम सामने आ रहे हैं। जिले के तीन कांग्रेसी विधायक संसदीय सचिव बनने के लिए दौड़ में हैं। आखिर क्यों न हों दौड़ में, संसदीय सचिव बनने के बाद लालबत्ती के साथ मंत्रालय में बैठने की जगह जो मिल जाती है। वैसे आरक्षण के हिसाब से महिला कोटे से एक संसदीय सचिव की नियुक्ति की जानी है, जिसमें जिले की इकलौती महिला विधायक श्रीमती छन्नी साहू का नाम संसदीय सचिव के लिए पार्टी की प्रमुखता में हैं।
के. रविन्द्र की सामयिक रचना-
सनद रहे, मरना है मरो!
सारे विकल्प खुले हैं!
सडक़ पर कुचल कर मरो,
मलेरिया, कोरोना, कैंसर से मरो।
बाढ़, तूफान या भूकंप से मरो।
गंदे पानी से, कच्ची शराब से
जहरीली हवा से मरो।
या मरो आतंकवाद, नक्स्लवाद
की आंधी गोली से।
घास फूस खाकर, जंगली कंद खाकर
या कुपोषण से मरो।
या मरो महंगाई, बेरोजगारी से।
सनद रहे।

लोकतंत्र में भूख से मरना मना है।
यहां मृत्यु के सारे विकल्प खुले हैं!
बंद हैं, जीवन के रास्ते।
– शहरवासी

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