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पैसा खुदा तो नहीं, मगर खुदा से कम भी नहीं

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अचानक चम्पक का मोबाईल बज उठा। देखो तो बाबूलाल था। वह बोला, हल्लो डीयर कैसे याद किया? बाबू लाल- हम लोग हलवाई रामप्रसाद के यहां रबड़ी उड़ा रहे हैं, बस तुम्हारी कमी है, आ जावो। और कोई भी है क्या? चम्पक ने पूछा। अरे हां युवा नेता रूलिंग पार्टी वाले, वे भी हैं, बाबूलाल ने कहा। चम्पक समझ गया, खुश हुआ, चलो शाम का नाश्ता बढिय़ा रहेगा और वह चल पड़ा। पहुंचते ही बोला, क्या बात है? आज रबड़ी का दौर चल रहा है? नेता बोला-आखिर बहुत मशक्कत के बाद एक सरकारी कर्मचारी का उसके वांछित स्थान में तबादला करवाने में सफल रहा। बाबूलाल सब जानता है। बस इसी बात पर मुंह मीठा कर रहे हैं।

शहरवासी-सरकार अपनी रहने में ऐसा फायदा तो मिलना ही है। जिस किसी की भी राजनैतिक दल की सरकार बनती है, उसका पहला काम ‘‘पैसा बनाना’’ होता है। याद है, पिछले दशक में छत्तीसगढ़ के तत्कालिन मंत्री दिलीप सिंह जुदेव ने एक स्ंिटग आपरेशन में कहा था कि ‘‘पैसा खुदा तो नहीं मगर खुदा से कम भी नहीं’’। सरकार के नुमांइदे पहला काम ‘‘मनी प्लान्ट’’ लगाने का करते हैं। ‘‘समय’’ की इसे मेहरबानी भी कहनी चाहिए कि उन पर चारों ओर से पैसों की बारिश होने लगती है।


चम्पक बोला-एक समृद्धशाली संत ने अपने प्रवचन में हाल ही कहा था कि मनुष्य जन्म लेता है, तब उसे जो वस्त्र पहिनाया जाता है उसमें जेब नहीं होता और मरता है तब भी उसके कफन में जेब नहीं होता। याने कि पैसों का मोह नहीं रखना चाहिए। तभी उन संत महाशय से किसी ने कहा कि नि:संदेह इन दो क्षणों में पैसों की जरूरत नहीं पड़ती। बाकी इसके बीच के समय में जीवन में पैसों के बगैर ‘‘पे एन्ड युज’’ में भी एन्ट्री नहीं मिलती। याने कि, पेन्ट-शर्ट, अंडर वियर-बनियान सभी में पैसों को रखने जेबें तो होनी ही चाहिए। कारण कि-

पास में पैसा हो तो सब कुछ ठीक लगता है,
नहीं तो मूंछ वाले बाप को भी बेटे से डर लगता है।

खुद ‘‘लक्ष्मी’’ कहती है कि ‘‘लक्ष-मी’’ याने कि मेरे में ही लक्ष रखो। लक्ष्मी की इतनी महिमा होने के बावजुद साधु-संत पैसों को हाथ नहीं लगाते। इस कारण, उनके भक्त उनके चरणकमल में पैसों को रखते हैं।
पैसों की पर्सनालिटी बहुत पावरफूल है। पैसों का सबसे सुन्दर और श्रेष्ठ उपयोग है ‘‘दान’’। इसलिए ‘‘दान लेते हैं’’। पालिटिकल पार्टीज भी दान पर चलती हैं। पंचवर्षीय कार्यकाल इसके लिए ‘‘गोल्डन पीरियेड’’ कहा जाता है। सत्तासीन कभी डायरेक्ट पैसा नहीं लेता। उनके कई ‘‘हमराज’’ होते है, ‘‘हमसफर’’ होते है, ‘‘कोषाधिकारी’’ होते हैं।

महापौर का पहला बजट कितना कारगर?

महापौर हेमा देशमुख ने अपने कार्यकाल का पहला बजट पेश किया, जिसमें साढ़े 55 लाख रूपए का घाटा बताया गया है। इसके पूर्व के भी महापौरों द्वारा पेश किए गए लोक लुभावन ख्याली पुलाव बनाने वाले बजट को शहरवासी देखते आ रहा है। हर बार बजट में शहर विकास की बातें कहीं जाती हैं। विकास कार्यों के लिए करोड़ों रूपयों का प्रावधान किया जाता है, लेकिन साल गुजर जाता है, फिर वही नया बजट। महापौर ने अपना पदभार ग्रहण करने के साथ ही मुख्यमंत्री के स्लोगन ‘‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’’ की तर्ज पर गढ़बो नवा ‘‘नांदगांव’’ का नारा दिया था। उसी तर्ज पर उन्होंने अपने पहले बजट में शहर विकास को लेकर नया प्लान पेश किया है। कोई नया कर नहीं और न ही किसी कर में कोई वृद्धि होने से शहरवासी गदगद हुआ। इस बजट में शहर की नालियों को कव्हर करने, शापिंग काप्लेक्स निर्माण, प्रदूषण से मुक्ति दिलाने जैसे तमाम तरह की बातें कही गई हैं।


शहरवासी को याद है, जब पूर्व महापौर रहे स्वर्गीय विजय पांडेय ने भी पदभार ग्रहण करने के बाद कहा था- शहर को धूलमुक्त करना और प्रदूषण से मुक्ति दिलाना मेरी पहली प्राथमिकता होगी। उसके बाद स्व. शोभा सोनी के कार्यकाल में शहर को साफ-सुथरा और कचरामुक्त बनाने के लिए लाखों की लागत से स्वीपिंग मशीन की खरीदी की गई, किंतु समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है। सर्वविदित है कि किसी भी बजट में किए गए प्रावधान का 80 फीसदी अमल में आता ही नहीं है। फिर साल बीतने के बाद नया बजट पेश कर दिया जाता है। सच तो यही है कि एक साल के बजट में किए गए प्रावधानों को पूरे पांच सालों में भी पूर्ण नहीं किया जा सकता। वैसे यह सवाल लोगों के जेहन में कौंध रहा है कि महापौर ने पदभार ग्रहण करने के नौ माह बाद बजट पेश किया तो इस बीच निगम में जो भी खर्च-खरीदी की गई, वह किस मद की राशि से की गई? क्या राज्य शासन से इसके अनुमति ली गई थी?

निगम में कांग्रेस को भाजपा ने दिया वॉक ओवर

नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष रहीं शोभा सोनी कोरोना के काल के गाल में समा गई। उनके अकस्मात हुवे निधन के बाद नेता प्रतिपक्ष को लेकर राजनीतिक हल्कों और आम जनता के बीच कई नाम तैर रहे थे, जिस पर 14 तारीख को विराम लग गया। जब भाजपा के नए-नवेले पहली बार पार्षद बने किशुन यदु की नेता प्रतिपक्ष के रूप में ताजपोशी कर दी गई। उसके बाद से भाजपा पार्षद दल मेें नेता प्रतिपक्ष को लेकर मतभेद सामने खुलकर सामने आने लगे। भाजपा पार्षदों में सबसे सीनियर शिव वर्मा हैं, जो लगातार पांचवीं बार चुनकर निगम पहुंचे हैं, ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के लिए सबसे बेहतर उन्हें ही माना जा रहा था, किंतु वे पार्टीगत मतभेद के शिकार हो गए। उनके बाद कई ऐसे पार्षद हैं, जो दो-दो, तीन-तीन बार चुनाव जीतकर निगम पहुंचे हैं। उनमें पारस वर्मा, मणिभास्कर गुप्ता, शरद सिन्हा आदि के नाम हैं, लेकिन सबसे जूनियर को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाना न तो भाजपाइयों को हजम हो रहा है, न राजनीतिक सरोकार रखने वालों को। कांग्रेसी तो भाजपा के इस फैसले को लेकर काफी हर्षित नजर आ रहे हैं। उनका मानना है कि विपक्ष ने उन्हें वॉक ओवर दे दिया है। वैसे इसका नजारा निगम की पहली बजट बैठक में भी देखने को मिला, जब सत्तासीन कांग्रेस ने अपने सारे प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित करा लिए। दरअसल बोलता वही हो, जो जानता हो, इसलिए सत्तापक्ष को आम जनता की बातों को मनवाने और जनहित में फैसले लेने दबाव डालने के लिए विपक्ष का मजबूत होना जरूरी होता है, जो इस बार नगर निगम में नजर नहीं आ रहा है। अभी तो नगर निगम की नई बाडी के कामकाज की शुरूआत हुई है, आगे-आगे देखो, होता है क्या?

शोभा सोनी को इतनी जल्दी भूल गए भाजपाई!

नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष चुनी गई लोकप्रिय महिला नेत्री शोभा सोनी के आकस्मिक निधन पर भाजपा-कांग्रेस सहित शहरवासी ने भी आंसू बहाए। उनका इस तरह अचानक चले जाना, शहर और निगम के लिए एक राजनीतिक खालीपन पैदा कर गया। उनके स्वर्गवास के ठीक 40वें दिन नगर निगम में नए नेता प्रतिपक्ष का चुनाव भाजपा पार्षदों द्वारा किया गया।

इसके लिए युवा भाजपा नेता किशुन यदु के नाम पर कथित रूप से सहमति बनी। किंतु हैरत की बात रही कि जिस महिला नेत्री के स्वर्ग सिधारने के बाद उसी पद पर किशुन यदु का चुनाव कर जिस तरीके से जश्र मनाया गया, उससे श्रीमती सोनी की आत्मा भी आहत हुई होगी? भाजपा पार्षद दल नेता के चुनाव के बाद नगर निगम के गेट के सामने बकायदा जमकर आतिशबाजी की गई। कार्यकर्ताओं ने अपने नए नेता का फूल-मालाओं और गुलाल से जिस तरीके से स्वागत किया, वह गैरजरूरी था।

जबकि होना यह था कि चुनाव कराने के बाद सीधे नगर निगम में जाकर शोभा सोनी की तस्वीर लगाकर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी जाती। नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष रही शोभा सोनी के आकस्मिक निधन के बाद ही यह पद खाली हुआ था और भाजपा ने इस पद को भरने के लिए ही नए नेता प्रतिपक्ष का चुनाव किया, तो क्या ऐसे में उत्साह मनाना जरूरी था?

पटाखे फोडऩा जरूरी था? बिना पटाखे फोड़े भी इस पद पर आसीन हुआ जा सकता था, लेकिन शायद पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्व. शोभा सोनी के प्रति इन नेताओं की संवेदना मर गई थी, तभी इस तरह का उत्सव मनाया गया। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने अपना जन्म दिन भी नहीं मनाया और इसके लिए उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को मना भी किया था। किंतु ऐसा लगता है कि पार्टी नेताओं को शोभा सोनी के जाने का दुख नहीं है या फिर उन्हें इतनी जल्दी भुला दिया गया है?

नवरात्रि पर बाजार में बढ़ी रौनक और चहल-पहल

कोरोना वायरस ने इस साल सब त्यौहारों और आयोजनों को फीका कर दिया है। सरकार की गाइड लाइन और कोरोना के डर ने लोगों के उत्साह पर पानी फेर दिया है। पिछले छह माह की अवधि में कई बड़े त्यौहार और पर्व कोरोना की भेंट चढ़ गए। आज से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हुआ। पहले ही दिन बाजार मेें काफी रौनक दिखी। चहल-पहल देखकर शहरवासी का मन भी प्रफुल्लित हो उठा। शहर के प्रमुख स्थानों पर मां दुर्गा की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। कोरोना ने देवी प्रतिमाओं की ऊंचाई को भी कम कर दिया है। बावजूद इसके दुर्गा मंचों को आकर्षक ढंग से सजाने का क्रम जारी है।

मौसम की बेरूखी को देखते हुए तमाम इंतजाम भी किए जा रहे हैं, ताकि देवी प्रतिमाओं को अचानक होने वाली बारिश से सुरक्षित बचाया जा सके। देवी मंदिरों को भी आकर्षक ढंग से सजाया जा रहा है। भक्तों द्वारा मंदिरों के साथ ही अपने-अपने घरों में पूजा-अर्चना की जा रही है। छह माह से अधिक समय से कोरोना की मार झेल रहे लोग अब भवानी माता से कोरोना से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रहे हैं। इन सबके बीच इस बार भी गणेश पक्ष की तरह प्रशासन ने कोरोना संक्रमण को रोकने के उद्देश्य से कुछ नियम शर्त तय किए हैं। जारी गाइड लाइन के अनुसार इस बार जिले की धर्मनगरी डोंगरगढ़ में नवरात्रि पर हर साल लगने वाला मेला नहीं लगेगा।

दर्शनार्थी भी मंदिर तक नहीं जा सकेंगे। दोनों नवरात्र में संस्कारधानी के धर्मप्रेमियों एवं समाजसेवी संगठनों द्वारा डोंगरगढ़ जाने वाले पदयात्रियों के लिए जगह-जगह लगाए जाने वाले सेवा पंडाल भी नजर नहीं आयेंगे। इन सबके बीच धार्मिक उल्लास का वातावरण बना हुआ है। शहरवासी को अब लगने लगा है कि कोरोना का अंत मां भवानी जरूर करेंगी।

यह संस्कारधानी है…..

जिन्दगी हर किसी को एक उत्तम पुरस्कार देती है, वह है करने जैसे काम के लिए मिला अवसर। जन सेवा के क्षेत्र में सामाजिक संस्था उदयाचल व शांति विजय सेवा समिति को ऐसा ही अवसर मिला और उन्होंने इसे खुशी-खुशी झड़प लिया। इन दोनों संस्थानों के संयुक्त तत्वाधान में संचालित कोविड आइसोलेशन सेन्टर में अनेक कोरोना कैरियर को मात देने वालों पर फूलों की बारिश कर बाजे-गाजे के साथ उन्हें घर रवाना किया। शहर यूं ही संस्कारधानी नहीं कहलाता। जब-जब भी सेवा का सुअवसर यहां की संस्थाओं और दानवीरों को मिलता है तब वे इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
नीदा फाजली ने कहा है-
जिसे भी देखिए
वो अपने आप में गुम हैं,
जुबां मिली है
मगर हमजुबां नहीं मिलता।
– शहरवासी

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