Home छत्तीसगढ़ तीन साल में भी नहीं मिली आरटीआई में जानकारी!

तीन साल में भी नहीं मिली आरटीआई में जानकारी!

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एक करोड़ का हिसाब देने हीला-हवाला कर रहा खैरागढ़ वन मंडल

खैरागढ़(दावा)। जंगल विभाग में जंगल राज की कहानी कोई नई बात नहीं लेकिन जब जंगल राज की जंगल गाथा, जंगल से निकलकर शहर तक पहुंच जाये और कानून के दायरे में आने के बाद भी कोई सार्थक कार्यवाही न हो तो लगता है कि पूरा सिस्टम ही करप्ट है. बात 2015-16 में खैरागढ़ वन मंडल के खैरागढ़ वन परिक्षेत्र अंतर्गत आने वाले घाघरा वन प्रबंधन समिति/वन विकास अभिकरण समिति का है, जब विभागीय अधिकारियों ने समिति को शासन से प्राप्त एक करोड़ से अधिक की राशि का बंदरबांट किया और लाखों रूपये का निर्माण कार्य केवल कागजों में कर दिया गया लेकिन अब विभाग घोटाले के कागज देने से ही कतरा रहा है.

आश्चर्य की बात है कि साढ़े तीन साल की अवधि बीत जाने के बाद भी विभाग सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन का अब तक निराकरण नहीं कर पाया है, इस भागमभाग के खेल में अब राज् य सूचना आयोग भी शामिल हो गया है और प्रदेश में आरटीआई के तहत न्याय दिलाने व पारदर्शिता के लिये जिम्मेदारी तय करने वाला आयोग भी बीते दो साल से वन विभाग की चक्करघिन्नी के आगे नतमस्तक है.
मामले को लेकर बता दें कि घाघरा वन प्रबंध समिति के अंतर्गत हुए एक करोड़ से ऊपर के निर्माण कार्यों को लेकर 3 मार्च 2017 को खैरागढ़ के पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष व कांग्रेस नेता आशीष छाजेड़ ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी वन मंडल कार्यालय से चाही थी, लेकिन आवेदन लगने के बाद से ही घोटालों की परतों को छुपाने के लिये विभाग के छोटे से लेकर बड़ा जिम्मेदार अधिकारी मुंह छुपाये फिर रहा है और आवेदक को जानकारी नहीं देने के लिये तरह-तरह के तरीके अपनाकर आवेदक को परेशान किया जा रहा है. तीन मार्च 2017 को आवेदन तिथि के बाद 30 दिन में जब जानकारी नहीं मिली तो आवेदक ने 22 अप्रेल 2017 को मुख्य वन संरक्षक दुर्ग वृत्त दुर्ग को प्रथम अपील पेश की. यहां से 01 जून 2017 को वन संरक्षक ने वन मंडलाधिकारी खैरागढ़ को आदेश दिया कि 15 दिवस के भीतर आवेदक को जानकारी उपलब्ध कराई जाये लेकिन आज पर्यन्त तक जानकारी आवेदक को उपलब्ध नहीं कराई गई है. विभाग के गोलमाल से परेशान होकर आवेदक आशीष छाजेड़ ने 28 जून 2017 को राज् य सूचना आयोग की शरण ली जिसके बाद लगातार पेशियों का सिलसिला शुरू हुआ और 4 मई 2018, 8 सितम्बर 2018, 26 अक्टूबर 2018, 21 फरवरी 2019, 6 जून 2019, 14 फरवरी 2020, 21 अप्रेल 2020 व 24 सितम्बर 2020 को राज् य सूचना आयोग ने लगातार पेशियां दी लेकिन अब तक दस्तावेज प्राप्ति का निराकरण नहीं हो पाया है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भ्रष्टाचार को दबाने पूरा सिस्टम कैसे काम करता है?

सरकारी राशि का जमकर दुरूपयोग
वन प्रबंध समिति घाघरा में निर्माण कार्य की आड़ में वन विभाग ने शासकीय रूपयों का खूब दुरूपयोग किया है. मामले को लेकर आवेदक आशीष छाजेड़ ने बताया कि वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने वन समितियों को चारागाह बना लिया था और अब भी समितियों में भारी भ्रष्टाचार हो रहा है. सत्र 2015-16 में वन प्रबंध समिति घाघरा के अंतर्गत आदिवासियों के जीवन उत्थान के नाम पर भवन निर्माण,शौचालय निर्माण, बोर उत्खनन, सौर ऊर्जा उपकरण, स्टॉप डैम निर्माण सहित अन्य निर्माण कार्य कराये गये थे और इस दौरान मुख्य रूप से जिम्मेदारों में तत्कालीन डीएफओ दिलराज प्रभाकर, एसडीओ जयदीप झा, रेंजर डीके मेहर, वनपाल नीलकंठ यादव/रामसंजीवन राजपूत और वन रक्षक के रूप में वन प्रबंध समिति के सचिव सत्येन्द्र वर्मा यहां पदस्थ थे और निर्माण कार्यों को अंजाम देकर सभी यहां से स्थानांतरित हो गये हैं. मामले को लेकर हमने वन विभाग का पक्ष जानने डीएफओ रामअवतार दुबे से उनके दूरभाष 6264162601 पर संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया वहीं वर्तमान में वन प्रबंध समिति घाघरा के सचिव रोमन सिंह ठाकुर से मामले को लेकर चर्चा की गई तो उन्होंने संतोषप्रद जवाब नहीं दिया और कहा कि मुझे जानकारी नहीं, बड़े अधिकारी ही बता पायेंगे कहकर बात पूरी होने से पहले ही कॉल कट कर दिया.

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