तमाशबीन बना स्थानीय प्रशासन
राजनांदगांव(दावा)। शहर को आवारा पशुओं से निजात दिलाने के लिए भले ही प्रदेश का पहलाप गोकुल नगर बसाया गया है, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते पूरा शहर ही गोकुल नगर में तब्दील होने लगा है। शहर के प्राय: सभी मार्गों पर आवारा पशुओं के विचरण और जमघट ने लोगो ंकी परेशानी बढ़ाकर रख दी है।
शहर से डोंगरगांव रोड पर बसंतपुर सो आगे बसाया गया प्रदेश का पहला गोकुल नगर अब नाम का रह गया है। शहर के इंदिरानगर चौक, नंदई चौक, हाट बाजार, गंज चौक, पुराना बस स्टैंड, दुर्गा टाकीज रोड, गांधी चौक, जयस्तंभ चौक, गुरूद्वारा तिराहा सहित शहर के भीतरी मार्गो पर आवारा पशुओं को विचरण करते देखा जा सकता है। इन्हीं मवेशियों के कारण यातायात भी प्रभावित हो रहा है। साथ ही लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। दीवाली का त्यौहार करीब होने के कारण बाजार में लोगों की भीड़ बढ़ रही है। लोग दूर-दूर से लेनदेन करने शहर पहुंच रहे हैं, लेकिन गांवों से शहर आने वाले लोग यहां सडक़ों पर आवाराा पशुओं का जमावड़ा देखकर अचंभित भी हो जाते हैं कि इससे अच्छा तो हमारा अपना गांव है। कहने का आशय यह कि राजनांदगांव कहने को शहर लगता है, लेकिन यहां की दशा किसी बड़े गांव से कम नहीं है। शहर की मुख्य सडक़ों पर आए दिन लोग दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे हैं। इस दिशा में न तो नगर निगम ध्यान दे रहा है और न यातायात विभाग। निगम का काऊ कैचर भी अब नजर नहीं आता।
त्यौहारी सीजन में शहर की सडक़ों पर मवेशियों का डेरा लगने से और भी परेशानी बढ़ गई है। होकर अपनी जान गवां रहे मवेशियों को बचाने स्थानीय प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।
प्रशासनिक लापरवाही के कारण एक ओर लोग दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे हैं, वहीं मवेशियों की मौत भी हो रही है। वैसे भी शहर के किसी भी मोहल्ले में आवारा पशुओं को विचरण करते देखा जा सकता है, लेकिन मुख्य मार्गों पर मवेशियों ने सबकी परेशानी बढ़ा कर रख दीहै। एक समय था जब यातायात विभाग द्वारा नगर निगम के माध्यम से शहर को मवेशियों से निजाता दिलाने अभियान भी चलाया जाता था, किंतु अब इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। नगर निगम को चाहिए कि सडक़ों पर घूमने वाले आवारा पशुओं के मालिकों की पहचान कर उन पर जुर्माना किया जाए, ताकि लोग अपने मवेशियों को सडक़ों पर विचरण करने के लिए न छोड़ें।