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बेघरबारों का खुले में डेरा, दिखावा साबित हो रहा ” रैन बसेरा “

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राजनांदगांव (दावा)। इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। शाम होते ही लोग गर्म कपड़ों के आगोश में लिफ्ट कर घरों में दुबके रहना पसंद कर रहे है ऐसे हाड़कपा देने वाली ठंड में शहर में दर्जनों परिवारों को खुले में रहकर कष्टप्रद जीवन यापन करना पड़ रहा है। सरकार ने ऐसे बेघरवार लोगों के लिए राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत रैनबसेरा का निर्माण किया है, लेकिन यह केवल दिखावा साबित हो रहा है।
शहर के कस्तूरबा महिला रोड स्थित रैन बसेरा में सुविधाओं का अभाव है। न तो यहां की टंकी में पानी भर पाता है और न इससे लोगों को नहाने-धोने की सुविधा मिल पाती है। शौचालय पिछले कई महिने से चोक है इसके बारे में नगर को सूचना दी गई है लेकिन निगम इस ओर से अनदेखी कर रहा है। इस कड़कडाती ठंड में अलाव जलाने की सुविधा भी नहीं है।

गिनती के लोग रहते हैं रैन बसेरा में
सूत्रों की माने तो रैन बसेरा में इस कड़कड़ाती ठंड के दिनों में अभी बमुश्किल 10 लोग रह रहे हैं। उनके लिए सिर्फ पलंग गद्दा व कंबल की सुविधा उपलब्ध है। न तो इन बेघरबार जरूरतमंद लोगों को भोजन मिल पाता है और न इस हाड़ कंपा देने वाली ठंड में आग जलाने की सुविधा उपलब्ध है। यहां तक कि रेल्वे स्टेशन रोड में गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध कराने वाले लोग इन गरीबों को झांकने तक नहीं आते। सुविधा विहिन रैनबसेरा में न आकर फ्लाई ओवर के नीचे खुले में रह रहे समय के मारे बेघरबार लोगों ने बताया कि रैन बसेरा में रूकने के लिए पैसे मांगा जाता है, इसलिए वे फ्लाई ओवर के नीचे रहना ज्यादा पसंद करते रहे हैं।

महीनों से बंद निगम का रैन बसेरा
सरकार बेघरबार लोगों को घर बना कर देने तथा आपद स्थिति में उन्हें रहने ठहराने के लिए लाखों खर्च कर रैन बसेरा का निर्माण करवाई है लेकिन यहा सुविधा का अभाव होने से लोग ठहरना पसंद नहीं करते। शहर के नया बस स्टैण्ड स्थित पथिक गृह ‘रैन बसेराÓ कोरोना के समय से बंद पड़ा है। इस हाइटेक बस स्टैण्ड में प्रसाधन गृह की व्यवस्था देखने वाली संगीता देवी ने बताया कि नगर-निगम द्वारा संचालित रैन बसेरा पिछले आठ महिने से बंद पड़ा है। बाहर से आने वाले यात्री रात में भटकते रहते है।

एल.एफ. द्वारा संचालित रैन बसेरा का हाल
कस्तूरबा महिला मंडल रोड स्थित रैन बसेरा में सुविधाओं के अभाव है। खास बात यह है कि उक्त रैन बसेरा को 19 समूहा का एक संगठन बना कर पहले क्षेत्रीय संगठन के नाम से संचालित किया जाता है, जिसे एल.एफ. कहा जाता है। इसके बाद भी यहां सुविधाओं की कमी बनी रहती है। इधर स्थानीय प्रशासन द्वारा बेघरबार जरूरत मंद लोगों को रहने ठहराने की उचित व्यवस्था करने की दंभ भरा जाता है। रैन-बसेरा में उन्हें हर सुविधा उपलब्ध कराने की बात कही जाती है। लेकिन ऐसा कुछ देखने में नहीं आता। अव्यवस्था युक्त रैन बसेरा के बजाय शहर के विभिन्न स्थानों में खुले में अपना डेरा जमाए गौरीनगर निवासी रामा युवाडे ने बताया क वे अपने परिवार सहित दो साल के फ्लाई ओवर के नीचे ठहरे हुए है लेकिन उन्हे कोई पूछने तक नहीं आता। उसका घर गिर जाने से बह बेघरवार है। आवास के लिए निगम में फार्म भर्रे है लेकिन वहा पैसा पटाने के लिए कहा जाता है। कबाड़ी चूनने का काम करने वाले रामा के पास बूढ़ी मां पत्नी व बच्चे भी है। जिसे लेकर वे इस ठंड के दिनों में फ्लाई ओवर के नीचे ठहरे हुए हैं।

लखोली मुरम खदान की रहने वाली संगीता बाई ने बताया कि उनका घर वाले ने उसे निकाल दिया है, इससे वह अपने दो जवान बच्चों को लेकर यहां ठहरी हुई है। इसी तरह कुंती बाई ने बताया कि उस 12-13 साल का लड़का अपाहिज है। रैन बसेरा में उसे ठहरने के लिए जगह नहीं दे रहे हैं, इसलिए उसे ऐसी कई कड़ाकाती ठंड में उन्हें फ्लाई ओवर के नीचे आकर रहना पड़ रहा है। इस तरह के दर्जनों लोग हैं, जो बेघरबार होकर फ्लाईओवर के नीचे डेरा जमाए हुए हैं। इनकी ओर स्थानीय प्रशासन की बिल्कुल नजर नहीं है।

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