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बिना जांच के कर दिया क्लीनिक को सील?

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नहीं बदला गया ताला, जांच पर उठ रहे सवाल
राजनांदगांव(दावा)।
खैरागढ़ में सप्ताह भर पहले एक युवक की जान झोलाछाप डाक्टर के पास इलाज करवाने से चली गई। पाइल्स के मरीज 32 वर्षीय युवक आदर्श सिंह की झोला छाप डाक्टर ने गंभीर स्थिति को नजर अंदाज कर घर पर ही उसका इलाज जारी रखा। इस घटना पर हो हल्ला होते ही प्रशासन को सामने आना पड़ा, लेकिन प्रशासन द्वारा उक्त झोला छाप डाक्टर पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति की गई। जांच करने गई टीम ने बिना जांच किये अवैध क्लिनिक को सील कर दिया। यहां तक कि उक्त क्लिनिक को सील करते हुए ताला तक नहीं बदला गया। उक्त अवैध क्लिनिक में झोलाछाप डाक्टर का ही ताला लगा हुआ है जिसकी चाबी उसी के पास है, इससे जांच कार्रवाई पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है।

बताया जाता है कि उक्त अवैध क्लिनिक की जांच करने पहुंची टीम में 7 लोग थे। टीम में शामिल वरिष्ठ चिकित्सक डा. पीएस परिहार और आयुर्वेदिक चिकित्सक नेहा साहू को क्लिनिक खोलने के नाम्र्स, इलाज के लिए डाक्टर की काबिलियत और इस्तेमाल किये जाने वाले औजार की जानकारी थी लेकिन उन्हें जांच का मौका ही नहीं दिया गया। टीम के सदस्य एएसआई ए.आर. साहू ने अरूण भारद्वाज के मकान में चल रहे अवैध क्लिनिक को लेकर कोई पूछताछ नहीं की। किराएदार की सूचना उसे पुलिस को दी थी या नहीं ये भी जांच के दायरे में आना चाहिए था। अवैध क्लिनिक के मामले में सख्ती और भी जरूरी थी कि फिर भी पूछताछ नहीं हुई। क्लिनिक पर झोलाछाप डाक्टर देवीलाल भवानी ने ताला लगाकर रखा था। यहां अफसरों ने किसी तरह की जांच तो नहीं की उल्टे, उसी ताले में सील लगा आए, जिसकी चाबी खुद आरोपियों के कब्जे में है। बड़ी बात ये कि टीम के सात लोगों में नायब तहसीलदार लीलाधर कवंर, वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. पीएस परिहार, आयुर्वेदिक चिकित्सक नेहा साहू, राजस्व निरीक्षक सुभाष खोब्रगढ़े, ए.एस.आई.ए. आर. साहू और एकांउटेंट संजय श्रीवास्तव शामिल थे, लेकिन सील पर केवल नायब तहसीलदार के दस्तखत हैं।

गौरतलब है कि इतनी बड़ी घटना की जांच महज 15 से 20 मिनट में पूरी कर ली गई जो साबित करता है कि प्रशासन ने इसमें गंभीरता से नहीं दिखाई। अगर दिखाई होती तो बिना प्रिस्क्रिप्शन शेडयूल एच-1 दवा मिलने पर ड्रग डिपार्टमेन्ट को अलर्ट किया जाता
क्षेत्र में झोला झोला छाप डाक्टरों के खिलाफ मुहिम छेड़ी जाती ताकि भविष्य में ऐसी घटनाए न हो लेकिन ऐसे मामलों में प्रशासन कमजोरी दिखा कर झोला छाप डाक्टरों को मरीजों को खुले आम लूटने और मौत देने के कार्य के लिए खुला छोड़ दिया है।

इन बिन्दुओं पर जांच जरूरी था

वस्तुत: प्रशासन द्वारा गठित 7 सदस्यीय जांच टीम को इन बिंदुओं पर जांच किया जाना जरूरी था, लेकिन इस ओर न जाने क्यों ध्यान नहीं दिया गया। इससे जांच पर संदेह उत्पन्न होता है। जांच टीम को देखना चाहिए था कि झोला छाप डाक्टर ने जिस क्लिनिक में पाइल्स का आपरेशन किया वह कितना सुरक्षित है?
क्या झोलाछाप डाक्टर का क्लिनिक मेडिकल के नाम्र्स को पूरा करता है? अगर नहीं तो इस मामले में भी कार्रवाई होनी चाहिए थी।
जिस मकान में झोलाछाप डाक्टर का क्लिनिक है वह खुद इसे पेशे से जुड़ा है। मृतक के भाई ने इलाज के दौरान उनकी संलिप्तता उजागर की है।
पुलिस के अनुसार पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ओपिनियन नहीं दिया गया है, जबकि परिजनों को शंका है कि युवक की मौत रात में ही हो गई थी। हालांकि इलाज करने वाले डाक्टर ने उसे बेहोश बताया था। बहरहाल उक्त मामले में जांच के लिए गये 7 सदस्यी टीम द्वारा उपरोक्त बिन्दूओं की जांच में दरकिनार कर एक 32 वर्षीय युवक की मौत का मजाक बनाया है।

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