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देश में फैले भ्रष्टाचार से जनता हलाकान

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देश का शायद ही कोई सरकारी विभाग भ्रष्टाचार से अछुता हो। सरकार के द्वारा सतत् प्रयास रहता है कि सरकारी धन में भ्रष्टाचार करने की कम से कम गुंजाईश रहे। इसके बावजुद देश में भ्रष्टाचार की जडं़े और गहरी होती जा रही है। भ्रष्ट अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों की भ्रष्ट मानसिकता जस की तस है। रिश्वतखोर नौकर शाहों पर जब तक संगीन कार्यवाही नहीं होगी तब तक भ्रष्टाचार को नियंत्रण करना स्वप्नवत् रहेगा।

प्रत्येक राज्यों और जिलों में भ्रष्टाचार ने शिष्टाचार का रूप ले लिया है। दुर्भाग्यवश ही किन्ही भ्रष्ट नौकरशाहों के कृत्य प्रकाश में आते हैं। उदाहरण के लिए हाल ही देश में घटे मामलों पर नजर डालें तो राजस्थान के दौसा जिले में एस.डी.एम. तथा पुलिस के मुखिया को लाखों रूपयों की रिश्वत मांगने के प्रकरण में रंगे हाथों पकड़ा गया था। कुछ दिनों पहले गुवाहाटी में रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी को एक करोड़ की रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। ये अधिकारी एक निजी कम्पनी को ठेका देनें के एवज में मोटी राशि की मांग कर रहे थे। इसी महिने राजस्थान में एक जिले के कलेक्टर और उसके निजी पी.ए. को मोटी राशि रिश्वत लेते हुवे पकड़ा गया था। ये घटनाएं साबित करती हैं कि सरकारी कामकाजों में बगैर रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता। अनेक विभागों में विभिन्न प्रकरणों की फाइलें कई महिनों लम्बित रहती हैं, जिसका कारण भी यही रहता है कि उन फाइलों से संबंधित व्यक्ति या पार्टी रिश्वत देनें से परहेज करती हैं।

देश सेवा के नाम पर करोड़ों की रिश्वत लेकर अपनी तिजौरी भरने वाले भ्रष्ट अफसरों पर पकड़े जाने पर संगीन कार्यवाही होनी चाहिए। जिला स्तर से लेकर तहसील व पंचायत स्तर पर अब भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देखना स्वप्नवत हो गया है। भ्रष्टाचार का व्याप असीमित हो गया है। सरकारी विभागों में चाहे जो काम कराने जाइये, जब तक संबंधित अधिकारी-कर्मचारी की मुठ्ठी गर्म नहीं करेंगे, तब तक काम होता ही नहीं। सरकार के द्वारा भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के दावे खोखले साबित होते हैं। भारत में भ्रष्टाचार का प्रदुषण जन्मजात ही फैलते ही जा रहा है। पिछले 4-5 दशक से भ्रष्टाचार के कारण के कारण सरकारी विभागों-मशीनरीज की स्थिति ने जनाता को हलाकान करके रख दिया है। भ्रष्टाचार का दीमक सम्पूर्ण योजनाओं व सरकारी कामकाजों का भक्षण कर रहा है। चुनाव आते हैं तब तमाम राजनैतिक पार्टियां ”जीरो टालरेंसÓÓ याने भ्रष्टाचार को खत्म करने का वचन मतदाताओं को देते हैं। किन्तु, सत्ता पर आने के बाद ये वचन हवा हवाई हो जाते हैं। सूचना का अधिकार कानून का उपयोग करने वालों को भी बहुत परेशान होना पड़ता है।

ट्रांसपेरेसी इंडिया की रिपोर्ट भी भ्रष्टाचार से खदबद रहे विभागों की पोल उजागर करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार गत साल 51 फीसदी लोगों ने किन्ही न किन्ही कारणों से रिश्वत देकर अपना काम करवाया है। 26 फीसदी लोग सम्पत्तियों और जमीनों से जुड़े काम के लिए रिश्वत देते हैं। 20 फीसदी लोग पुलिस थाने-विभाग में पुलिस प्रताडऩा से बचने या अपनी शिकायत पर कार्यवाही करने रिश्वत देते हैं। इसी प्रकार नगरीय निकायों, विद्युत विभाग, परिवहन विभाग, आबकारी विभाग, खाद्य विभाग, वन विभाग, जल संसाधन, लोक निर्माण विभाग आदि में अपना काम करवाने लोग रिश्वत देनें विवश होते हंै। स्वास्थ्य व चिकित्सा विभाग भी भ्रष्टाचार से सना हुआ है, यह भी दुर्भाग्यजनक है।

देश में सीबीआई, एन्फोर्समेन्ट डायरेक्ट, आर्थिक अपराध विभाग सहित अनेक विभाग भ्रष्टाचार और रिश्वत को नेस्तनाबुद करने का काम करते हैं। परन्तु ये तमाम सरकारी संस्थाएं भ्रष्टाचार से मुक्त हैं? यह सवाल है। सुप्रीम कोर्ट अनेक मरतबे सीबीआई को लेकर तीक्ष्ण टिप्पणी कर चुका है। राज्यों में भी अनेक विभाग हैं, लोकायुक्त हैं, किन्तु ये सभी ”टूथलेस टाइगरÓÓ जैसे हैं। जिनका काम न फलदायी है, न ही प्रभावशाली हैं। कार्यवाही के नाम पर भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों को केवल निलम्बित कर कर्तव्य की इति श्री हो जाती है। क्यों कि, हमाम में सभी नंगे है। इस तरह की कार्यवाही को ड्रामा कहना चाहिए। कुछ समय बाद लोग भूल जाते हैं। निलम्बित नौकरशाह रिश्वत देकर फिर बहाल हो जाता है। भ्रष्टाचार का विष चक्र बेरोकटोक घुमते रहता है। जब तक सत्तासीन पार्टी व राजनीतिज्ञ मजबूत मनोबल, इच्छाशक्ति रख नेक नीयत रख काम नहीं करेंगे तब तक भ्रष्टाचार पर ब्रेक लगाना या कन्ट्रोल करना नामुमकिन है।

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