फेसबुक पर न्यूज साइट्स के कंटेंट को लेकर ऑस्ट्रेलिया की सरकार और फेसबुक के बीच विवाद गहरा गया है। यह विवाद तब और बढ़ गया जब फेसबुक ने हैरान करने वाला कदम उठाते हुए ऑस्ट्रेलिया सरकार के एक कानून के विरोध में वहां के न्यूज, हेल्थ और इमरजेंसी सेवाओं के पोस्ट पर रोक लगा दी। यही नहीं, फेसबुक ने वहां की कई इमरजेंसी सेवाओं की पोस्ट को भी हटा दिया है।
दरअसल, कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के दौरान जहां ज्यादातर मीडिया हाउस को नुकसान उठाना पड़ा, वहीं फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों ने मोटा मुनाफा कमाया है। इस दौरान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म न्यूज लिंक शेयर कर के जमकर पैसा कमाते रहे।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने एक कानून बनाया है, इस कानून के मुताबिक सोशल मीडिया साइट यदि न्यूज कंटेंट शेयर करेंगी, तो उन्हें संबंधित कंपनी से प्रॉफिट शेयर करना होगा। फेसबुक और गूगल इसे मानने तैयार नहीं हैं और वह ऑस्ट्रेलिया में सेवाएं बंद करने की धमकी दे रहे हैं।
फेसबुक और गूगल को ऑस्ट्रेलिया सरकार का यह कानून रास नहीं आ रहा है, क्योंकि इंटरनेट से जुड़ी कोई भी कंपनी किसी मीडिया ऑर्गनाइजेशन का न्यूज कंटेंट का इस्तेमाल करेगी तो उसे पेमेंट करना होगा।
वहां की सरकार के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया की ऑनलाइन एडवर्टाइजिंग में गूगल का हिस्सा 53 प्रतिशत जबकि फेसबुक का प्रतिशत है।
ऐसे में गूगल ने धमकी दे डाली थी कि कानून बना तो वह ऑस्ट्रेलिया में अपना सर्च इंजन बंद कर देगा। ठीक इसी तरह हाल ही में फेसबुक ने यूजर्स को ऑस्ट्रेलिया से जुड़ी खबरें एक्सेस करने और शेयर करने से ब्लॉक कर दिया। हालांकि गूगल ने ऑस्ट्रेलियन पब्लिशर्स को भुगतान करने के लिए सौदे किए हैं, लेकिन फेसबुक अब भी अड़ा हुआ है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और न्यूज ऑर्गनाइजेशंस के बीच रेवेन्यू शेयरिंग को लेकर क्या भारत में भी कानून होना चाहिए? ऐसे कानून की वकालत इस वजह से हो रही है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में इंटरनेट की दिग्गज कंपनियां मनमानी पर उतर आई हैं। गूगल ने धमकाया था कि वह अपने सर्च इंजन से ऑस्ट्रेलिया को गायब कर देगा तो फेसबुक ने कहा था कि अगर कानून लागू हुआ तो वह ऑस्ट्रेलिया के लिए न्यूज का एक्सेस ही खत्म कर देगा। फेसबुक ने पिछले दिनों ऐसा कर भी दिया। क्या भारत ऐसा कानून बनाएगा तो उसके साथ भी ये कंपनियां यही करेंगी? गूगल और फेसबुक या इंटरनेट के कारोबार से जुड़ी कोई भी कंपनी क्या भारत से पंगा लेना अफोर्ड कर सकती है? सवाल कई हैं और उनके जवाब क्या हो सकते हैं, ये जानने की कोशिश कर सकते हैं।
क्यों हो रही ऐसे कानून की मांग?
दरअसल, पूरी दुनिया की न्यूज पाठकों तक पहुंचाने के लिए मीडिया संस्थान खबरें जुटाते हैं, इंटरनेट की मदद से यह खबरें तेजी से पाठकों तक पहुंचती है। ऐसे में आजकल सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों का एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया पर ही न्यूज देख और पढ़ लेता है। ऐसे में होता यह है कि इंटरनेट कंपनियां खबरों के साथ विज्ञापन दिखाकर खुद तो जमकर कमाई कर लेती हैं, लेकिन मीडिया संस्थानों को कोई आर्थिक फायदा नहीं मिलता है। न्यूज इंडस्ट्री की कई मीडिया वैसे कंपनी रेवेन्यू कम होने की वजह से सिकुड़ती या बंद होती जा रही है। ऐसे में अब कई देशों की सरकारें यह मांग कर रही हैं कि ये कंपनियां न्यूज ऑर्गनाइजेशंस के साथ वो रेवेन्यू शेयर करें जो उन्हें न्यूज दिखाकर मिलता है। जबकि इंटरनेट सेक्टर की कई कंपनियां इस सौदे के लिए तैयार नहीं हैं।
ऑस्ट्रेलिया का जो प्रस्तावित कानून है, वह अपनी तरह का पहला है लेकिन दुनियाभर के कई देशों में ऐसे ही कदम उठाए जा रहे हैं। इसी तरह के दबाव के चलते यूरोप में गूगल को पिछले साल फ्रेंच पब्लिशर्स के साथ मोलभाव करना पड़ा। एक अदालत ने आदेश को बरकरार रखते हुए कहा था कि 2019 यूरोपियन यूनियन कॉपीराइट निर्देशों के हिसाब से ऐसे समझौते जरूरी हैं। वहीं, फ्रांस दुनिया का पहला देश बना जिसने ये नियम लागू किए। अदालत के फैसले के बाद 27 देशों वाले EU के अन्य सदस्य भी गूगल, फेसबुक व अन्य कंपनियों को ऐसा करने को कहेंगे। हालांकि भारत में अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं है जो गूगल, फेसबुक या अन्य इंटरनेट कंपनियों को बाध्य करता हो कि वे पब्लिशर्स को भुगतान करें। हालांकि इसकी मांग लंबे समय से होती रही है।