Home समाचार गरीबी, बेकारी, महंगाई, भय, भूख, भ्रष्टाचार ‘‘डांस’’ कर रहे हैं

गरीबी, बेकारी, महंगाई, भय, भूख, भ्रष्टाचार ‘‘डांस’’ कर रहे हैं

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शहर की सरगम…

डीयर बाबूलाल, डू यू नो? प्रत्येक नशे की अलग-अलग संस्कृति होती है। समस्याओं ने ही ‘‘नशे’’ को जन्म दिया है। समस्या को भूलाने के लिए नशा किया जाता है। जय जय शिवशंकर, कांटा लगे न कंकर ये प्याला तेरे नाम…. गाता हुआ डीयर जब मैं महाशिवरात्रि को एक श्रद्धालु के आमंत्रण पर आयोजन में शामिल हुआ तब मुझे प्रसाद में भांग से छनी हुई ठंडाई मिली। जिसको ग्रहण करते ही नशेमन में ऐसा नशा छाया जो अभी तक चढ़ा हुआ है। डीयर डू यू नो? मैं जब वहां चल रहे भजन की थाप पर डांस रहा था तब मुझे ऐसा लगा कि भय, भूख और भ्रष्टाचार भी डांस कर रहे हैं। उनके साथ-साथ गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी भी डांस कर रही है। औसतन चंद महिनों तक सत्ता का नशा टिकाने अथवा तो सत्ता प्राप्त करने के लिए चुनावी पर्व में नेताओं के समूह गान में लोगों को भी नाचते देखा। बेरोजगारी से ग्रस्त युवा हाथ में नौकरी पाने आवेदन लेकर नाच रहा है। उधर लाखों नौकरी देने और लाखों के आवास देनें के वचनों की बारिश करते भाषण देने वाले लुभावने डांस कर रहे हैं।

यह सुनते ही बाबूलाल ठहाके लगाते हुवे बोला – और …. आई नो…. डीयर चम्पक तुम अब यह कहना चाहते हो कि चुनाव के पहले के डांस और चुनाव परिणाम आने के बाद के डांस में जमीन – आसमान का अंतर होता है। पब्लिक मूकदर्शक बनी रहती है। परिणाम बाद के डांस में नेता मूकदर्शक बन जाते है। अपने सरकारी कामों के लिए जनता नेताओं के चक्कर लगाती है या फिर अधिकारियों के पास जरूरी कामों के लिए ‘‘स्ट्रीट डांस’’ करती है।

वाकई में मित्रों नशा बहुत बुरी बला है। फिर वह सत्ता का नशा हो या फिर धन-सम्पत्ति का नशा या फिर रूप-सौंदर्य का नशा ही क्यो ने हो। किन्तु, इन सब में झूठ व बनावट का नशा लम्बी आयु वाला होता है, शहरवासी ने कहा। मैं कोई झूठ-असत्य का प्रचार नहीं कर रहा हूं। लेकिन, नीली छत्तरी वाले ने कई विशिष्ट महानुभावों को पृथ्वी पर भेजा है। जिनके अनथक पुरूषार्थ से असत्य का नसीब चमकने लगा है।
मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेस से गरीबों का कल्याण होगा?

कोरोना काल में व्यापार-व्यवसाय ठप है। आर्थिक मंदी पूरे देश में छायी है बाबूलाल, लेकिन इस काल में मुकेश अम्बानी व्यापार में मंदी प्रुफ हैं। देश की अर्थव्यवस्था चकनाचूर हो रही है। अम्बानी की आवश्यक सेवाओं और इन्टरनेट जैसी सेवाओं को प्रदान करने वाली कम्पनियों के मालिक ने दोनों हाथों से प्रति घण्टे 90 करोड़ कमाए हैं, चम्पक ने कहा। देश के अरबपतियों की दौलत में 35 प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई है।
वाकई में चम्पक तुम ठीक कह रहे हो। व्यापार में लक्ष्मी का वास होता है। लेकिन नरेन्द्र भाई का कहना है कि व्यापार करना सरकार का काम नहीं है। इसलिए ही शायद सरकारी बिजनेस को क्रोनी पूंजीपतियों को सौंप रहे हैं। तुम्हे याद दिलाना चाहता हूं चम्पक नरेन्द्र भाई ने पी.एम. बनते ही कहा था ‘‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेस’’।
बैंक वाले बैंकों का निजीकरण करने से आक्रोश में हैं। वे बैंक कर्मीगण हड़ताल पर चले गए हैं। चम्पक ने चिन्ता व्यक्त की। यह सब कुछ अचानक नहीं हो रहा मित्र। नरेन्द्र भाई चाहते हैं कि लोगों के निजी जीवन में सरकार का न्यूनतम दखल हो। इसीलिए सरकारी कम्पनियां बेची जाएंगी। इनमें एलआईसी का भी नम्बर है। सरकार इसे भी बेचने जा रही है। बाबूलाल-इसे तो मैं उचित नहीं मानता दोस्त। एल.आई.सी. देश की सर्वोत्तम जनसेवा है और पूरे देशवासियों का इस पर भरोसा है और यह मुनाफे में भी चल रही है।
अब यह तो नरेन्द्र भाई ही जाने मित्र। वे हमेशा गरीबों के कल्याण की ही सोचते हैं। सैकड़ों कम्पनियों को बेचने से सरकार के पास अरबों रूपए आयेंगे, जिसे वे गरीबों के कल्याण में लगायेंगे। फिर नरेन्द्र भाई को देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक भी तो पहुंचाना है।
उद्योग विहीन शहर-जिला उपेक्षा का शिकार
आसमान से धरती पर पहुंचने वाली धूप से हरियाली और जमीन से निकलने वाले पानी से वृक्षों के दर्शन होते हैं। वैसे ही उद्यम याने श्रम से अस्तित्व में आने वाले उद्योग और सरकार से मिले प्रोत्साहन से स्थापित औद्योगिक इकाइंया कइयों को रोजगार मुहैया करवाती है। उद्योगपतियों को धन-वैभव के साथ प्रतिष्ठित भी करती है।

शहर-जिला लम्बे समय से एक बड़े उद्योग के लिए तरस रहा है। शहरवासी को अभी भूलाने से भी बी.एन.सी. मिल का ‘‘भोपूं’’ भूलाए नहीं भूलता। अलसुबह से रात्रि तक मिल का भोपू अपने नियत समय से बजता था तब उस समय की जनता अपने घड़ी का समय उससे मिलाती थी। शहर का ‘‘इंडिया फेम’’ कपड़े व मच्छरदानी बनाने वाला उक्त मिल स्वार्थपूर्ण राजनीति का शिकार हो गया। चुनावी सीजन में नेता बनाम जनप्रतिनिधियों के द्वारा बयानबाजी में ‘‘मिल’’ को याद किया जाता है। उसके दोबारा खोलने या फिर मिल एरिया में दूसरा बड़ा उद्योग लाने तो भिलाई स्टील प्लांट से भी बड़ा उद्योग लाने की बात की जाती है, किन्तु यह सब अभी तक चुनावी जुमले साबित हुए हैं। जिले के महरूमखुर्द, चवरढाल, चवेली गांवों की सरकारी जमीनों में लैंकों पावर लिमिटेड कम्पनी का सोलर प्लान्ट लगा था। किन्तु पिछले लम्बे समय से यह भी बंद पड़ा है। बंद पडऩे के कई कारण हैं, किन्तु फिलहाल इसका कोई औचित्य नहीं है।

जिले के ग्राम इंदावानी में ‘‘फूड प्रोसेसिंग पार्क’’ की स्थापना हेतु लगभग 140 हेक्टेयर सरकार और निजी जमीन मेसर्स रैमकी फूड्स (छ.ग.) लिमि., रायपुर को उपलब्ध कराना था। किन्तु, क्षुद्र राजनीति के कारण इस फूड पार्क की भ्रूण हत्या हो गई। राजनांदगांव को स्पेशल इकानामिक जोन (सेज) में शामिल किया गया था, किन्तु यह भी हवा-हवाई हो गया। ऐसा ही रामदेव बाबा के द्वारा स्थापित होने वाले महत्वाकांक्षी उद्योग का हश्र हो गया। मिनबुल राक, रेवागहन भी बंद हो गया।

यूं तो जिले में मेसर्स इंडिया साल्वेंट इंडस्ट्रीज, ग्राम इंदामरा, मेसर्स राजाराम मेज प्रोड., ग्राम भोथीपार खुर्द, मेसर्स एबीस एक्सपोर्ट (इ) प्रा.लि., ग्राम अमलीडीह, मेसर्स सिम्पलेक्स इंजीनियरिंग, ग्राम टेडेसरा, मेसर्स पंचशील साल्वेंट ग्राम इंदामरा, मेसर्स खेतान केमिकल्स ग्राम फरहद, मेसर्स केस्ट स्टील एण्ड पावर जोरातराई को उद्योगों की श्रृंखला में शामिल किया जा सकता है। किन्तु, दो-तीन को अलग कर दें तो बाकी उद्योग कागजों में हैं या फिर शो-पीसेज जैसे हैं। इन उद्योगोंं से जिले की बेरोजगारी की समस्या दूर होने वाली नहीं है। अस्तित्व में आए चंद मध्यम व वृहद उद्योगों की स्थिति दयनीय है। नोटबंदी से लेकर इस कोरोना काल तक अनेक समस्याओं से ग्रस्त उद्योग मृतप्राय हैं।

‘‘दारूबंदी’’ होगी?
जिले में सरकार का दारू व्यापार पूरे शबाब पर है। कांग्रेस की सरकार ने अपने संकल्प पत्र में जनता से वायदा किया था कि उनकी सरकार अस्तित्व में आयी तो वह पूरे प्रदेश में ‘‘दारू बंदी’’ कर देगी। किन्तु जनता अब इसे ‘‘कथनी और करनी’’ के अंतर के रूप में देख रही है। पैसा किसे प्यारा नहीं है? पैसा कमाने दारू का व्यापार अपरिहार्य बन गया है। वैसे, सरकार में भी दारूबंदी को लेकर मतभेद है। मतभेद रखने वालों को दारू जैसे मादक मुद्दे पर समझाना आसान नहीं हैं। वैसे, राजनीतिज्ञों के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। इसके बावजुद, सभी को समझाते-समझाते पांच साल तो लग ही जायेंगे। इस समय के दौरान अगर उनकी पार्टी दारू बंदी के निर्णय तक नहीं पहुंच सकी तो वे युद्धस्तर पर राज्य में तमाम भाषाओं में दारूबंदी शब्द का प्रचार-प्रसार शुरू कर देंगे। फिर भले ही वह आन पेपर हो या आन होर्डिंग्स या फिर आन एड। जनता को लगना चाहिए कि वह जहां देखो वहां नशा मुक्ति अभियान तहत ‘‘दारू बंदी’’ दिखाई दे रही है।

कोरोना रिटर्न
‘‘कोरोना रिटर्न’’ से फिर ‘‘दहशतजदा’’ माहौल है। लेकिन कोरोना रिटर्न क्यों हुआ? सिम्पल जवाब है- कोविड-19 के गाइड लाइन्स को कोई सिरियसली नहीं लेता। राजनेताओं को भीड़ देखनी होती है। उनके आयोजनों में भीड़ जुटाने और उनको खुश रखने नौकरशाह भी हर कुछ करने तैयार रहते हैं। चिन्ता सता रही है, क्या फिर लाकडाउन होगा? बमुश्किल पटरी पर चढ़ा व्यापार-उद्योग, रोजगार ठप पड़ जायेगा? कोरोना से वेक्सीनेशन कितना बचाव करता है? यह तो समय बतायेगा। फिलहाल तो दवा व्यापार, चिकित्सा व्यवसाय की पांचों ऊंगलिया घी में और सिर कढ़ाई में है। प्रशासन ने जनता को उनकी जागरूकता और भगवान के भरोसे छोड़ दिया है।

कवि प्रदीप का एक फिल्मी भजन-
दूसरों का दुखड़ा दूर करने वाले
तेरे दुख दूर करेंगे ‘‘राम’’
तेरी सब पीड़ा हरेंगे ‘‘राम’’।
क्या तूने पाया, क्या तूने खोया
क्या तेरा लाभ, है क्या हानि?
इसका हिसाब करेगा वो ईश्वर,
तू क्यों फिकर करे रे प्राणी,
पोंछ ले तू अपने आंसू तमाम,
तेरे दुख दूर करेंगे ‘‘राम’’।
-दीपक बुद्धदेव

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