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अस्पताल में इलाज के लिये तीन घंटे तरसता रहा दिव्यांग

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खैरागढ़ (दावा)। सिविल अस्पताल में उपचार के लिये पहुंचा दिव्यांग उपचार के अभाव में तीन घंटे तक तड़पता रहा, लेकिन अस्पताल में चिकित्सकों की अनुपस्थिति में यहां पदस्थ किसी भी नर्स ने उनका इलाज करना उचित नहीं समझा और उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया. दिव्यांग के साथ पहुंचे परिजनों व सहयोगियों के विरोध के तीन घंटे बाद मुश्किल से उपचार के लिये पहुंचे दिव्यांग को अस्पताल में बेड मुहैय्या कराया गया और उसका उपचार किया गया.
जानकारी अनुसार ग्राम सांकरा निवासी मुकेश कुमार मेश्राम पिता लक्ष्मण मेश्राम उम्र 37 वर्ष जो दोनों पैरों से दिव्यांग है शनिवार की सुबह तकरीबन 8 बजे उसे अचानक सांस लेने में तकलीफ होने लगी जिसके बाद परिजनों ने किसी तरह चार पहिया वाहन की व्यवस्था कर मुकेश को तकरीबन 9:30 बजे सिविल अस्पताल खैरागढ़ लाया. अस्पताल पहुंचते ही परिजन चिकित्सक से संपर्क की कोशिश में जुटे रहे लेकिन चिकित्सकों की अनुपस्थिति में वार्ड में नर्स के पास पहुंचे और मरीज को सांस लेने की तकलीफ से जिम्मेदारों को अवगत कराया और पीडि़त का उपचार करने की बात कही जिसके बाद उपस्थित नर्सों के द्वारा कोरोना जांच की सलाह दी गई और परिजनों ने मरीज का कोरोना जांच कराया जिसमें वह नेगेटिव निकला.
कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद परिजनों ने मुकेश को सांस लेने में तकलीफ को देखते हुये नर्सों से ऑक्सीमीटर की सहायता से ऑक्सीजन चेक करने की बात कही लेकिन मौके पर उपस्थित नर्स वंदना बैस ने मरीज के परिजनों के साथ बहस करते हुये हमारे पास ऑक्सीमीटर उपलब्ध नहीं है कहकर उन्हें वापस भेज दिया. अंत में बेबस होकर मुकेश के पिता लक्ष्मण ने पांडादाह निवासी समाजसेवी दिलीप श्रीवास्तव को फोन के माध्यम से मामले की जानकारी दी जिसके बाद दिलीप श्रीवास्तव ऑक्सीमीटर लेकर अस्पताल पहुंचे और ऑक्सीमीटर में जांच के दौरान मरीज का ऑक्सीजन लेवल बहुत कम पाया गया जिसके बाद उपस्थित नर्सों के साथ काफी बहस के बाद मुश्किल से मरीज को भर्ती किया गया और उसे ऑक्सीजन लगाकर उसका इलाज किया गया.कोरोना काल में लोगों की मदद के लिये नि:स्वार्थ कार्य कर रहे श्री श्रीवास्तव ने बताया कि इस दौरान बीएमओ डॉ.विवेक बिसेन की ही अस्पताल में ड्यूटी थी लेकिन वे किसी अन्य प्रशासनिक कार्य में बाहर थे ऐसे में अस्पताल में जो भी जिम्मेदार उलब्ध हो किसी भी पीडि़त का उपचार किया जाना चाहिये लेकिन अस्पताल में कुछ चिकित्सकीय स्टॉफ अपने विपरीत व्यवहार और कार्य से पूरी चिकित्सा बिरादरी को बदनाम करने में जुटे हुये हैं. पीडि़त मुकेश के पिता लक्ष्मण ने बताया कि मुकेश लगभग तीन घंटे तक बोलेरो वाहन में ही तड़पता रहा लेकिन उपस्थित नर्सों के द्वारा उन्हें उपचार के लिये भर्ती नहीं किया गया बल्कि मरीज का कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी लक्षण के चलते मरीज को कोरोना की दवाई देकर वापस भेज रहे थे.
ज्ञात हो कि कोरोना संक्रमण की इस भयावहता के बीच सिविल अस्पताल में अपना इलाज कराने पहुुुंच रहे अन्य बीमारी से ग्रसित मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, समय पर मरीजों का उपचार नहीं हो रहा है बल्कि गंंभीर हालात में पहुंच रहे मरीजों को भी स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा बिना जांच किये वापस भेज दिया जा रहा है ऐसे में लॉकडाउन की इस विपरीत परिस्थिति में मध्यमवर्गीय लोगों को इलाज के अभाव में अस्पतालों का चक्कर काटना पड़ रहा है.

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