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क्या होगा जब दो अलग-अलग वैक्सीन के लग जाएं डोज?

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कोरोना महामारी को पूरी तरह हराने के लिए दुनिया भर में कोशिशें जारी हैं। इसी कोशिश में कई बार कुछ गलतियां भी हो जाती हैं। हमारे देश में कुछ ऐसे मामले आये हैं, जिसमें एक व्यक्ति को दो अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन डोज दे दी गई। अभी तक WHO से लेकर किसी भी स्वास्थ्य संगठन ने मिक्स डोज की सिफारिश नहीं की है। ऐसे में अगर किसी को मिक्स डोज लग जाए, तो क्या ये सुरक्षित है? ये सवाल अहम है, लेकिन आपको बता दें कि कोरोना के तेजी से बढ़ते केस और वैक्सीन की लगातार हो रही कमी को देखते हुए मिक्स डोज पर गंभीरता से रिसर्च चल रही है। यानी कि पहले जिस कंपनी की वैक्सीन ली है, दूसरी डोज जरूरी नहीं कि वही दी जाए। शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर दो वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले स्पाइक प्रोटीन की मात्रा एक हो तो मिक्स डोज सफल हो सकती है।

क्या हो सकता है असर?

मिक्स डोज पर कुछ रिसर्च हुए हैं और उसमें मरीजों में साइड इफेक्ट देखने को मिले हैं। इसमें थकान और सिरदर्द आम है। कई देश इस पर काम कर रहे हैं। चीन भी अपनी कुछ वैक्सीन को मिलाकर कॉकटेल वैक्सीन देने की तैयारी में है। विशेषज्ञों के मुताबिक मिक्स डोज को लेकर नए-नए रिजल्ट सामने आ रहे हैं। लेकिन अभी रिसर्च शुरुआती चरण में है और इसका इम्युनिटी पर कितना गहरा असर होगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। फिर भी इसके साइड इफेक्ट के बारे में कुछ प्रमाण मिले हैं।

  • रिसर्च के दौरान कुछ लोगों को एस्ट्राजेनेका की पहली खुराक दी गई, और 4 हफ्ते बाद फाइजर की वैक्सीन दी गई। ऐसे लोगों में हल्के साइड इफेक्ट दिखे, लेकिन ये घातक नहीं हैं।
  • एक साइड इफेक्ट यह दिखा कि मिक्स डोज लेनेवाले लोगों ने थकान और सिरदर्द की शिकायत की।
  • जिन लोगों को मिक्स डोज दी गई उनमें 10 फीसदी लोग भारी थकान के शिकार हुए, जबकि सिंगल डोज वैक्सीन से यह थकावट बस 3 फीसदी लोगों में पाई गई।
  • अभी तक के रिसर्च में सुरक्षा के खतरे नहीं दिखे हैं और साइड इफेक्ट भी कुछ दिनों में खत्म हो गया।
  • महाराष्ट्र में गलती से एक बुजुर्ग को पहली डोज कोवैक्सीन की देने के बाद दूसरी डोज कोविशील्ड की लगा दी गई। अब बुजुर्ग के शरीर में रैसेज दिख रहे हैं और बुखार भी है।
  • क्यों जरुरी है मिक्स डोज?
  • मिक्स डोज की अवधारणा इस बात पर आधारित है कि टीकाकरण किसी भी कीमत पर रुके नहीं, समय पर जो टीका उपलब्ध हो जाए, वही लोगों को लगा दिया जाए। वैसे ये कॉनसेप्ट अमीर या विकसित देशों के लिए नहीं है क्योंकि उन्हें टीका आसानी से उपलब्ध है। लेकिन तीसरी दुनिया के गरीब देशों और ज्यादा आबादी वाले देशों के लिए जरुरी ये है, कि सभी को टीका लग जाए, चाहे वो किसी भी कंपनी या देश का हो। भारत भी इसी श्रेणी में आता है। यहां जिस रफ्तार से वैक्सीनेशन का काम चल रहा है, उस हिसाब से पूरी आबादी को वैक्सीन की पहली ही डोज देने में साल भर लग जाएंगे। इसके बाद उसी कंपनी की दूसरी डोज के लिए इंतजार करना होगा। करीब डेढ़ सौ करोड़ लोगों के लिए 10 करोड़ प्रति महीने के उत्पादन दर से भी 15 महीने लग जाएंगे। दूसरे डोज के लिए फिर 15 महीने का इंतजार करना पड़ेगा। यानी पूरी आबादी के वैक्सीनेशन में तीन साल लग जाएंगे। ऐसे में मिक्स डोज का कारगर होना काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।

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