रायपुर। छत्तीसगढ़ में लाकडाउन पूरी तरह से नहीं हटाया गया है, लेकिन देसी शराब की दुकानों को खोल दिया गया है। राज्य के आबकारी मंत्री ने इस आदेश के पक्ष में तर्क दिया है कि यह गरीबों केहित में है। मंत्री महोदय भले इसे गरीबों का हित बता रहे हों, लेकिन सच्चाई यह है कि शराब से सरकार बड़ा राजस्व मिलता है। इसे लंबे समय तक बंद रखने का साफ अर्थ है कि राज्य के खजाने में बढ़ोतरी नहीं होगी।
अगर सरकार का खजाना खाली रहेगा तो अन्य काम ठप हो जाएंगे। मगर इंसान की जान से बड़ा खजाना नहीं हो सकता है। राज्य में कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है। इन शराब के ठेके पर उमड़ने वाली अनियंत्रित भीड़ ने चिंता बढ़ा दी है। यह आशंका पैदा होने लगी है कि राज्य को डेढ़ महीने तक लाक करके कोरोना संक्रमण की कड़ी तोड़ने का जो प्रयास किया गया, उस पर पानी न फिर जाए।
शराब से राज्य के राजस्व में आबकारी का अंश 21 प्रतिशत है। राजस्व की दृष्टि से निर्णय सही लगता है। सरकार की आर्थिक सेहत के लिए भलेही निर्णय बुस्टर डोज हो, मगर कोरोना संक्रमण के इस दौर में आमजन की सेहत को आइसीयू तक पहुंचा सकता है। 1920 में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था। बीच में आंदोलन को वापस लेने के पीछे चौरी-चौरा कांड मुख्य वजह थी, क्योंकि यहां प्रदर्शनकारी शराब की बिक्री और खाद्यान के मूल्यों में हुई वृद्धि का विरोध कर रहे थे।
इस दौरान हिंसक झड़प हो गई तथा 22 पुलिसकर्मी मारे गए। यह घटना बताती है कि शराब की बिक्री राजस्व के लिए तो हो सकती है, लेकिन गरीबों के हित में नहीं। यदि इसमें गरीबों का हित होता तो गांधीजी इसकी बिक्री और सेवन का विरोध नहीं करते। असहयोग आंदोलन के माध्यम से दूसरी बात यह समझनी है कि हमें कोरोना संक्रमण के विस्तार में सहायक गतिविधियों के साथ असहयोग करना है, क्योंकि इससे लड़ने के लिए शासनादेश के साथ सहयोग की जरूरत है।
समय की मांग सहयोग आंदोलन है। इसी के दम पर कोरोना वायरस से मुक्ति की जंग जीत सकते हैं। इतिहास और वर्तमान में शराब सामाजिक बुराई के रूप में ही जानी जा रही है। वर्तमान परिस्थितियों में धन अर्जन से ज्यादा महत्वपूर्ण संयम और अनुशासन है, क्योंकि कोरोना से लड़ाई में ये कारगर रहे हैं। महामारी के इस दौर ने दिखा दिया कि दवा और इंजेक्शन के लिए मुंहमांगी राशि उपलब्ध कराने के बाद भी लोगों के प्राण नहीं बचाए जा सके हैं।
राज्य सरकार राजस्व बढ़ाने के संसाधनों पर कार्य करे, लेकिन ऐसे निर्णयों से बचे जो शुरुआत में तो लुभावन हो सकते हैं, लेकिन जिसके दूरगामी प्रभाव घातक हो सकते हैं। अगर यह निर्णय जरूरी ही है तो शराब के ठेकों पर शारीरिक दूरी और मास्क पहनने जैसे गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित करने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।