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कूचे से बाहर निकले एक मंत्री की व्यथा

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जनता जनार्दन ही राजनीतिज्ञ को ‘सत्ता भोग’ परोसती है। वही राजनीतिज्ञ सफल है जो जनता को तवज्जो देता है। अपने क्षेत्र में सक्रिय रहता है। क्षेत्रवासियों से घुलमिल कर रहता है। उनकी भावनाओं के मद्देनजर अपने घर भीतर किए ‘सब्बल’ के एवज में ‘‘सूई’’ का दान करने में सदैव तत्पर रहता है। राजनीतिज्ञ की असफलता का कारण खुद को जनता से ‘एबव’ समझना होता है। भारी अकुलाहट उसे तब होती है जब वह ‘सरकार’ से बाहर हो जाता है। ‘जल बिन मछली’ सदृश्य वह दिखाई देने लगता है। विडम्बना तो तब हो जाती है जब ‘सरकार’ होने के बावजुद उसे मंत्रीमंडल से बाहर कर दिया जाता है।

केन्द्र सरकार में हाल ही मंत्रीमंडल की शतरंज में नए मोहरों की जमावट की गई और कई नामचीन नेताओं को बाहर कर दिया गया। आऊटर कई नेता तो सरकार की अनथक प्रशंसा करते थे, इसके बावजुद उन्हेें खराब दशा से गुजरना पड़ रहा है। सत्ता सुख भोग रहे थे, तब तो बाकायदा निमंत्रण होने के बावजुद प्रभु दर्शन करने नहीं गए।

शहरवासी ईश्वर भक्त हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही उसने एक नेता को हाथ जोडक़र प्रभु दर्शन व मनोमन प्रार्थना करते देखा। चेहरा गमगीन था। अनायास शहरवासी ने पूछा- नेता जी, आप दु:खी दिखाई दे रहे हैं? पूजारी भी इस बात को ताड़ गया था। नेता जी यह सुनते ही झुंझला गए। बोले- आप लोगों को मालुम नहीं, मुझे खाताविहीन कर दिया गया है। पूजारी तो कुछ समझ ही नहीं पाया। उसने शांतिपूर्वक नेता जी से कहा- आप ने अभी जो कुछ बोला है, उसे मैं समझा नहीं हूं। किन्तु, इतना ही कहता हूं कि भगवान के पास खड़े रहकर इतना हताश, उदास, क्रोध से तमतमा किन्तु रोनहा चेहरा व चिड़चिड़ा व्यवहार करना उचित नहीं है। शांत रह मुस्कान बिखेरे श्रद्धापूर्वक दर्शन प्रार्थना करें, आपकी मनोकामना जरूर पूरी होगी। इससे भगवान भी प्रसन्न होंगे।

यह सुनकर रूंधे गले से नेता ने कहा- मैं जरा भी क्रोध नहीं करता। मेरा चेहरा ही ऐसा है। इसलिए मैं कभी आइने के सामने खड़ा नहीं रहता। सुन पुजारी थोड़ा चकित हुआ और आशीर्वाद देता हुआ बोला-चेहरे पर थोड़ा मुस्कान रखने का प्रयत्न करो। समय एक जैसा नहीं रहता। काल देवता की पूजा करो। सब ठीक हो जाएगा।

बस महाराज, आपका आशीर्वाद फले। दूसरे दिन से ही नेता जी ने काल देवता के समक्ष प्रार्थना शुरू कर दी। हे कालदेव-आपने एक दम से ठाटबाट की जिन्दगी को बदल कर सूखे में पटक दिया। प्रभु फिर से मेरे ठाटबाट वापस दिला दो। आप के जैसा कोई बलवान नहीं है। समय ही बलवान है प्रभु।
तभी एक भरभराती आवाज सुनाई दी- नादान मनुष्य बस कर। ये आकाशवाणी नहीं कालवाणी है। जनता और अखबारनविसों की सुनते तो हो किन्तु आजकल तुम एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हो। उनसे चाइनीस कमिटमेंट करने लगे हो। अब चालाकी करना बंद करो। शब्दों के खेल बहुत हुवे।

अब राजनीति फेयर करो। जनता समझदार हो गई है। पक्ष में रहो या विपक्ष में रहो। सरकार में रहो या बाहर कर दिए जाओ। अगर जेन्टलमैन इमेज है तो जेन्टलमैन ही बनकर रहना होगा। तू अपने ही कर्मों के कारण हरियाली से सूखे में पहुंच गया है। तेरे कर्मों ने ही तुझे स्थान भ्रष्ट किया है। ‘‘समय’’ ने कहा- मेरा आभार मान। अभी तू स्थान भ्रष्ट ही हुआ है। आगे का समय सुधारना है तो जनता के बने रहो। उनसे घुलमिलो। जितना भलाई का काम करोगे, सुख बाटोंगे, उतना भविष्य में फिर सुखी हो जावोगे। देख मनुष्य, मैं समय हूं। अगर, किसी के लिए मैं बुरा बन के आता हूं तो किसी के लिए मैं अच्छा बनके आता हूं। तू इस बात को भूलना नहीं। अगर भूल जाएगा तो चुटकी बजा कर कुर्सी और जनता के दिमाग में से तूू निकल जाएगा। फिर वह गांडीवधारी अर्जुन हो या राजा हरिश्चन्द्र। उन जैसो को भी मैं बदल देता हूं। तू किस पार्टी की… आई मीन, किस खेत की मूली है?

कालवाणी का पैगाम चालू ही था। हे तुच्छ मनुष्य, मेरी बात तू ध्यान से सुन। मंै सालों तक तुम्हारे साथ था। किन्तु, तुम मेरे साथ रहने के बदले, अपने नाते-रिश्तो, उद्योगपतियों और जी-हुजूरी करने वालों के बीच रहे और उन्हें ही फायदा पहुंचाता रहा। देश-विदेश तक तूने अपना कारोबार फैलाया। जिस जनता ने तुझे विधायक बनाया, सांसद बनाया और फिर तू मंत्री बना। किन्तु, जनता से दूर होता गया। उस जनता ने तुझे नेता बनाया, उन्हीं के साथ तूने ईमानदारी नहीं निभायी। बरखुरदार, तुम्हें ओवरटेक करने में मजा आने लगा। तुमने मुझे याने समय को भी ओवरटेक किया। अब देख, कहां है तू? जो लोग तुझे सेलुट मारते थे, बुके लिए खड़े रहते थे, बड़े-बड़े हार पहिनाने कतार में खड़े थे, वे आज सभी नदारत हैं। अब अपनी भूल सुधारो। मतदाता के बीच रहो और ‘‘मनदार’’ मिलो। नेता जी कालवाणी सुन, गंभीर हुवे और आत्ममंथन के जलाशय में गोते लगाने लगे।

कोरोना की महाभारत में वैक्सीन की रामायण
लोकतंत्र में जनता का भाग्य राजनीतिज्ञों के हवाले रहता है और राजनीतिज्ञों का पुरूषार्थ जनता के हवाले होता है। इस कारण बेहतर निष्कर्ष यह कि न भाग्य को माने और न ही पुरूषार्थ को, लोकतंत्र में ही श्रद्धा रखना सही है। कोरोना सिमट रहा है, कहते हैं। फिर खतरनाक रूप से लेकर आयेगा, ऐसा भी कहा जा रहा है। जनता जनार्दन वैक्सीन में हो रहे खेल से त्रस्त है। पहला डोज जैसे-तैसे लगा और अब दूसरे डोज की रामायण है। वैक्सीन की सप्लाई अनियमित है। थोक की संख्या में दूसरे डोज की लोगबाग राह तक रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग ने यूं तो लगभग 75 सेन्टर यत्र-तत्र वैक्सीनेशन के खोले हैं। किन्तु माल ही नहीं है। लोगों के सेन्टरों के चक्कर बेकार साबित हो रहे हैं। आफिसों, यात्रा, स्कूलों आदि में निर्देशित है कि वैक्सीनेशन की दोनों डोज लेने के बाद ही प्रवेश करें। अन्यथा वापस चले जाएं। एक प्राइवेट बड़ी कम्पनी के भी ऐसे ही निर्देश थे। एक चतुर सुजान ने आनलाईन दोनों वैक्सीन का डोज लिया और उसे काम पर रख लिया गया। वह बहुत खुश था। लाईन में खड़े रहने की मगजमारी और मारामारी से जो वह बच गया था।

इट वाज जोकिंग। वास्तव में मांग से कम वैक्सीन होने से लोगों को सेंटरों से वापस होना पड़ रहा है। गर्भवती और प्रसूताओं का वैक्सीनेशन शुरू भी नहीं हो पाया है। गनिमत है कि पीटीएस में एक साथ 35 केस सामने आए और वहीं ब्रेक लगा। संक्रमण नहीं फैला। अन्यथा फिर लॉकडाउन के शरणागत होना पड़ता। कोवैक्सीन और कोविशील्ड वैक्सीन भी सिरदर्द बना है। कहीं एक है तो दूसरा नहीं है। जिन्होंने पहला डोज जिस कम्पनी का लिया, उसे अनिवार्यत: दूसरा डोज भी उसी कम्पनी का लेना है। एक ओर कोरोना की महाभारत चालू है, तब वैक्सीन की यह रामायण कब तक चलेगी? क्या कोई बता सकता है?

सडक़ों पर अवैध कब्जाधारी
निगम प्रशासन हरकत में आया। ट्रैफिक जाम की स्थायी समस्या के समाधान में सिनेमा लाईन, गुड़ाखू लाईन, जूनी हटरी, जयस्तंभ चौक से इमाम चौक आदि प्रमुख मार्गों पर कई दुकानदार अपने सामानों को सडक़ तक फैलाए रखते हैं। कई दुपहिया-चौपहिया वाहनें सडक़ों पर जैसे अपनी मालिक की हो, बेतरतीब खड़ी रहती हैं। आने-जाने में भी अन्यों को इससे बड़ी कठिनाई होती है। आप हार्न बजाते रहें, कोई सुनने वाला नहीं रहता। जिनके वाहनों ने सडक़ पर कब्जा जमाया है, वे तो वाहन खड़ी करके और कहीं बैठे रहते हैं। हलवाई लाईन, सदर बाजार, गंज लाईन की भी अशोभनीय स्थिति है। गंज लाईन, स्टेशन रोड पर तो ट्रकों का जमावड़ा रहता है। ड्यूटी पर तैनात ट्रैफिक पुलिस तो ऐसे अप्रिय दृश्यों से मुंह फेरे रहता है। उनकी लेव्ही भी यहां फिक्स रहती है।

बहरहाल निगम प्रशासन ने जनहित में अपने कर्तव्य का पालन किया है। ऐसी स्थिति, ऐसी यातायात अनुकूलता कब तक रहती है? इस पर लोगों की नजर है। मानव मंदिर से गुरूद्वारा रोड तक तो ठेले-खोमचे अपना स्थायी व्यापार कर रहे हैं। जिन घरों व दुकानों के सामने ऐसे खोमचे, फल वाले सडक़ों पर धंधा कर रहे हैं, वे संबंधितों को बाकायदा चार अंकों में किराया दे रहे हैं। याने जगह सरकारी और किराया वसूल रहे दूसरे लोग। निगम प्रशासन को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए और शहर सुन्दर लगे, सडक़ें खुली-खुली हों, आवागमन सुगम हो, इसी का ही महत्व है।

त्यौहारी सीजन: खुशी कम, गम ज्यादा
आषाढ़ का महिना शुरू होते ही त्यौहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। इसकी शुरूवात रथयात्रा से हो गई है। उसके बाद चातुर्मास का शुभारंभ हो गया है। हिन्दु पंचाग में देवशयनी एकादशी का बहुत महत्व है। राष्ट्रीय त्यौहार स्वाधीनता दिवस, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी और इसी माह में एक माह तक चलने वाला हिंडौड़ा उत्सव याने झुला उत्सव का भी श्री गणेश हो चुका है।

देशवासी उत्सव प्रिय हैं। धार्मिक विचारों में लिप्त रहकर जीवनयापन करना ध्येय होता है। महंगाई की मार से कष्ट सहन करने की आदी हो चुकी जनता त्यौहारों को तो मनायेगी। बेकारों के लिए तो क्या त्यौहार-क्या व्यवहार? व्यापारियों को पूरी उम्मीद है कि त्यौहारों के आने से कपड़ा व्यापार में चमक आयेगी। सीजनिंग धंधे में राखियां भी आय का साधन बनेगी। महिलाओं के लिए ये सभी त्यौहार खुशियों की भेंट लेकर आयेंगे। परम्परागत आने वाले त्यौहार खुशियों की भेंट लेकर आयेंगे परम्परागत आने वाले त्यौहार आयेंगे और वैसे ही विदा हो जायेंगे। लेकिन पर्वों के उत्साह का अभाव तो रहेगा। कोरोना ने पहले से लोगों को हताश कर दिया है। किसी की मां, किसी की पत्नी, पति, भाई-बहिन, औलादों की कोरोना से हुई अकाल मृत्यु तो भुलाए नहीं भूलेगी। ऐसे में त्यौहार भी औपचारिक मनेंगे।

सीने जगत के प्रसिद्ध गीतकार ‘‘शैलेन्द्र’’ की चंद लाईनें-
गर्दिश में हो तारे ना घबराना प्यारे
गर तू हिम्मत ना हारे तो होंगे वारे-न्यारे
मुझको मेरी आशा देती है दिलासा
आयेंगी बहारें चली जायेंगी खिंजा
ओ आसमां ये नीला करे हैं इशारे।
गर्दिश में हो तारे….
बाजुओ में दम है फिर काहे का गम है
चट्टानी इरादे हैं, उमंगे हैं जवां
आ मुश्किल कहां है उन्हें मेरा दिल पुकारे
गर्दिश में हो तारे…
– दीपक बुद्धदेव

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