खेतों के लिए पर्याप्त पानी नहीं फिर भी कृषि कार्यों में तेजी
राजनांदगांव (दावा)। मानसून के फिर से सक्रिय होने से विगत तीन-चार दिनों से रूक रूक कर सावन की झड़ी लगी हुई है। इसे खेती-किसानी के लिए पर्याप्त पानी नहीं कहा जा सकता लेकिन दरार पड़ रहे खेतों के लिए यह झड़ी फसल को बचाने जीवन दान का काम कर रही है। अंचल में पिछले तीन चार दिनों से हो रही बारिश से नदी नाले उफान पर हैं तो इधर शहर की जीवनदायिनी नदी शिवनाथ का जलस्तर बढ़ गया है। इसी तरह जिले के मोंगरा जलाशय, रूसे, ढारा, पिपरिया, मटियामोती, मडिय़ान, सूखा नाला, घुमरिया नाला, जलाशय में जल भराव हो गया है। शिवनाथ नदी में जलस्तर बढ़ते ही मोहारा के पुराने पुल के उपर से पानी बह रहा है। इस तीन चार दिनों की झड़ी से खेतों में जरूरत के मुताबिक पानी नहीं भरा लेकिन बियासी का कार्य शुरू हो गया है। खेतों में खाद का छिडक़ाव किया जा रहा है। खेतों में हरियाली देखने को मिल रही है। सावन की इस झड़ी से जिले के आठ बड़े जलाशयों में पानी का स्टोरेज बढ़ गया है। मोंगरा बैराज से दो हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया जिससे न केवल शिवनाथ नदी का जल स्तर बढ़ गया अपितु अंचल के खेत लबालब हो गये जिससे किसानों के चेहरे खिल गये है।
सावन में रिमझिम बारिश के साथ ही खेतों में खुशियां की हरियाली लौटने लगी है। पूरा आषाढ़ माह किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरे खिंची हुई थी। सावन मास में भगवान भोले शंकर की पूजा होते ही उन्होंने ऐसी कृपा दरसाई कि दूसरे दिन से बारिश का झड़ी लग गई। ऐसे में किसानों अच्छी फसल की उम्मीद बंध गई है। सावन में रिमझिम बारिश से खेतों में नमी लौटने के साथ ही जलभराव भी होने लगा है। इससे सबसे ज्यादा फायदा धान की फसल की हो सकता है। पानी के अभाव में ज्यादातर किसानों ने रोपाई काम रोक दी थी। अब यह काम शुरू हो गया है। अगस्त के पहले हफ्ते में बियासी की तैयारी है। ऐसे में आने वाले हफ्ते में किसानों को अच्छी बारिश का इंतजार है। आठ अगस्त को हरियाली (हरेली) का त्यौहार है। बियासी का काम जोर पकड़ लेगा। प्रकृति के चारों ओर हरियाली बिखरी नजर आएगी।
मानसून का सिस्टम सक्रिय
इन दिनों मानसूनी सिस्टम फिर से सक्रिय हो गया है। बंगाल की खाड़ी में कम दबाव और उतरी झारखंड से लेकर छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में निर्मित द्रोणिका के प्रभाव से जिले में विगत तीन-चार दिन से सावन की रिमझिम फूहारे पड़ रही है। सावन की लगातार इस झड़ी से नदी-नाले उफान पर है। बता दे कि आसाढ़ में अल्प वर्षा के कारण जलाशयों में जल भराव काफी कम था। किसानों द्वारा धान की फसल के लिए बैराजों से पानी की मांग की जा रही थी लेकिन कम जलभराव के कारण पानी नहीं छोड़ा जा रहा था। अब मोंगरा व पिपरिया जलाशय में ज्यादा जल भराव होने की वजह से पानी छोड़ा गया जिससे अचल के खेत लबालब हो गये है। खेतों में पानी भरते ही जिले के अधिकांश क्षेत्रों में बियासी कार्य शुरू हो चुका है। रोपाई लगभग खत्म हो चुकी है। सावन की यह रिमझिम बारिश खेतों में उग आई फसलां के लिए जीवनदान साबित हो रहा है।