चंपक से मोबाइल पर कांटेक्ट नहीं होने पर बाबूलाल झल्ला गया। वह सीधा उसके घर पहुंचा। दरवाजा चंपा ने खोला। देखा तो बाबूलाल था और चेहरा तमतमाया हुआ भी था। उसने पूछा- चंपक है? वह बोली नहीं है। बताकर भी नहीं गए। उनका मोबाईल भी घर में ही है। स्वीच आफ करके रखा है। अब तो बाबूलाल और परेशान हुआ। वह वापस हुआ। वैसे ही सामने से चंपक आते हुए दिखा। राहत भरी नजरों से उसने चंपक से पूछा- यार, जेब में मोबाईल तो रखा करो। चम्पक-क्या दोस्त? अब भी मोबाईल रखने की बात कर रहे हो? मोबाइल के जरिए जासूसी हो रही है, क्या तुम नहीं जानते? बाबूलाल की हंसी फूट पड़ी। बोला- चंपक जासूसी होती भी है तो खास आदमियों, धुरंधर व्हीआईपियों की। तुम्हारे मेरे जैसे आम आदमी की नहीं। चंपक- देखो बाबूलाल, इसे मान लिया, किंतु डरना तो पड़ता है। तभी शहरवासी भी आ गया और चौंका- अरे, तुम लोग रास्ते में क्या बतिया रहे हो? मौसम गर्मागरम भजिया खाने का है। तभी बाबूलाल ने हंसते हुए चंपक का सारा किस्सा सुनाया।
सुनकर शहरवासी गंभीर हो गया। चंपक का डर यूं देखा जाए तो गलत नहीं है। इजराइल की पेगासस फोन टेपिंग की घटना ने तो हमारे घर के दरवाजे, खिडकियां ही नहीं, हमारा एक मुंह, दो कान और दो आंख भी बंद रखने का डरावना भय दिखा दिया है। भय भी मित्रों दो प्रकार का होता है। पहला- डरावना और दूसरा- सुंदर। डरावना भय उसे कहते हैं जब शासकगण जनता को कानून के अनुसार विचार, वाणी और व्यवहार करने विवश करंे और आम आदमी उसका पालन न करें तो दण्डित करने की धमकी दी जाती है। दूसरा ‘सुंदर’ भय वह कि शासकगण जनता को तो कानून अनुसार विचार, वाणी और व्यवहार करने बाधित करें किंतु शासकपक्ष के अमुक नेतागण, उपनेतागण, सहनेतागण, खलनेतागण, बलनेतागण या निर्बल नेतागण, ये सभी नेतागण कानून की ऐसी की तैसी करके मनचाही सोच से काम करते हैं। निरंकुश व्यवहार करते हैं। ऐसे समय, अहिसंक भय को कई सयाने और वफादार विश£ेषक ‘सुंदर’ भय कहते हैं।
शहरवासी ने कहा- चंपक का भय मायने नहीं रखता, किंतु यह सच है कि कई नेतागण पेगासस फोन टेपिंग की घटना के बाद सहम से गए हैं। एक पत्रकार ने जब एक नेताजी के व्हाट्सएप्प में दर्शन किए और पूछा कि आपका पेगासस विषय पर क्या कहना है? यह सुनते ही उन्होंने होठों पर ऊंगली रखी और गर्दन हिलाकर मना किया और हाथ से जाने का इशारा किया। साथ ही ‘नमस्कार’ भी किया। ऐसा करके नेताजी ने धन्यवाद किया या उसे तौबा किया? चूंकि यह नि:शब्द भाव थे, इसलिए कुछ समझ भी नहीं आया। यूं तो देश में नेता तीन-चार मोबाईल रख देश की सेवा करते रहते हैं। पब्लिक भी इससे इंप्रेस होती है। शायद इसीलिए ही इजराइल की एक प्रसिद्ध कंपनी एनएसओ ग्रुप का पापुलर जासूसी प्रोडक्ट है। बकौल, कंपनी यह केवल विशिष्ट व्यक्तियों के मोबाईल उपकरणों से डेटा एकत्र करता है। पेगासस जैसे स्पाईवियर ‘जीरो क्लिक’ अटैक करते हैं। यानि कि, इसमें किसी इंसान को कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसका स्पाईवियर एक क्लिक में ही अपने आप इंस्टाल हो जाता है। भले ही आप किसी लिंक को शेयर या टच न भी करें, तब भी पैगासस का मास्टर माइंड आपरेटर आपके फोन में आसानी से घुस सकता है। इस तरह के ज्यादातर हमलों में ऐसे साफ्टवेयर को निशाना बनाया जाता है, जो यह तय किए बिना डेटा रिसीव करते हैं कि वह भरोसेमंद जगह से आ रहा है या नहीं। जैसे कि ई-मेल क्लाइंट। एक कड़वा सच यह भी कि ‘पैगासस’ एक स्पाईवियर है, जो अगर किसी भी स्मार्ट फोन में पहुंच जाए तो कोई भी हैकर उस फोन के कैमरे से लेकर मेसेज, ई-मेल, लोकेशन तक की जानकारी और सारे डेटा हासिल कर सकता है। यह टैक्स्ट मेसेज देख सकता है और आडियो सुन सकता है। यानि कि संबंधित फोन की एक-एक एक्टिविटी की जासूसी कर सकता है।
पैगासस कांड : निजता पर वार
पैगासस जासूसी कांड ने संसद के मानसून सत्र को भी प्रभावित कर डाला। एकजुट विपक्षी दलों के नेताओं की इच्छा पहले पैगासस पर चर्चा करने की थी, जिसे लेकर संसद में खूब हंगामा हुआ और अंतत: संसद सत्र के समापन की घोषणा हो गई। विपक्षी दलों ने केन्द्र की मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि पक्ष-विपक्ष के कई नेताओं, कई पत्रकारों, जजों और अन्य विशिष्ट हस्तियों की फोन टेपिंग कर अपने फायदे के लिए बड़े पैमाने पर जासूसी करवाई, इसीलिए ही संसद से सडक़ तक हंगामा बरपा। संसद ही नहीं चलने दी।
जासूसी कांड में सिर्फ भारतीय लोकतंत्र को ही अपना निशाना नहीं बनाया है, बल्कि 60 से अधिक देशों के 50 हजार से अधिक विशिष्ट लोगों की जासूसी की है, जिनमें 190 पत्रकार, 600 से अधिक नेता-मंत्री, हजारों सरकारी नौकरशाह, व्यापारिक-औद्योगिक घरानों के अफसरानों, कई राष्ट्राध्यक्ष और 65 से अधिक मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। भारत में कम से कम 300 विशिष्ट लोगों की बात सामने आ रही है। फिलहाल पैगासस कांड सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है, जहां सुनवाई लंबित है। पूरे देशवासियों की नजर अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर टिकी है। मामला बहुत गंभीर है, क्योंकि निजता पर वार हुआ है।
सवा साल बाद आज से खुलेंगे स्कूलों के पट
कभी किसी ने सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा कि ऐसी भी कोई महामारी आएगी, जो सबकुछ बंद करा देगी। मार्च 2020 में कोरोना वायरस की दस्तक के बाद से स्कूलों में ताले लटके हुए हैं। और अब करीब सवा साल बाद दो अगस्त सोमवार से प्रदेश में स्कूलों के पट खुलने जा रहे हैं। कोरोना महामारी के कहर और खौफ के बीच सरकार ने स्कूलों को शुरू करने का साहसिक निर्णय लिया है, किंतु उसमें भी डर समाहित है। डर वैसे सिर्फ सरकार को ही नहीं, बच्चों और उनके पालकों को भी सता रहा है। आधा डर और आधा बल के दम पर सरकार स्कूलों को शुरू करा रही है, उसी दम पर बच्चे और उनके पालक भी साथ देने के लिए हिम्मत जुटा पा रहे हैं।
सरकार को कोरोना से अब भी डर लग रहा है, यह इस बात से ही जाहिर हो रहा है कि पहली से पांचवीं कक्षा तक फिर आठवीं, दसवीं और 12वीं कक्षाओं के संचालन को मंजूरी दी गई है, वह भी 50 फीसदी बच्चों की उपस्थिति के साथ। स्कूल खोलने की अनुमति ऐसे ही नहीं दी जा रही है, बल्कि उसके साथ कोविड-19 के गाइड लाईन के पालन कराने की शर्त भी रखी गई है। वैसे ज्यादातर पालक और बच्चे स्कूल खुलवाने के पक्ष में ही हैं। सवा साल तक कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच सबकी दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित हुई है। लगातार घरों में रहने से बच्चों का मन भी ऊब चुका है तो पालकों को अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी है। बच्चों का दो-दो सत्र घर पर बैठे बिठाए परीक्षा देकर जनरल प्रमोशन में निकल गया।
घर बैठे आनलाइन क्लासेस महज खानापूर्ति साबित हुई, जिससे मेधावी बच्चे खुद को ठगा सा महसूस करते रहे तो कुछ कमजोर बच्चों में इससे बड़ी राहत वाली फीलिंग्स भी देखी गई। बहरहाल शहरवासी को यह बात अभी तक समझ में नहीं आई कि जब ज्यादातर कक्षाओं को संचालित कराने की अनुमति दे दी गई तो सिर्फ छठवीं, सातवीं, नवमीं और 11वीं की कक्षाओं को भी शुरू कराने में अड़चन किस बात की है? खैर जो भी सवा साल तक अपने-अपने घरों की चारदीवारी में कैदी की तरह समय बिता रहे बच्चों को स्कूल खुलने से एक बड़ी आजादी की अनुभूति जरूर होगी, वैसे भी देश की आजादी का पर्व भी इसी महीने है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो इस बार स्वतंत्रता दिवस समारोह को नजारा कुछ अलग जरूर रहेगा।
कोरोना से राहत पर खतरा बरकरार
शहर सहित जिले में लॉकडाउन को खत्म हुए डेढ़ माह से अधिक समय हो चुका है। कोरोना के केस कम होने के बाद ही लॉकडाउन हटाया गया। साथ ही कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए प्रोटोकाल यानि जरूरी दिशा-निर्देशों का पालन करने की भी अपील प्रशासन द्वारा की गई है, किंतु आज 40 फीसदी लोग ही कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते नजर आते हैं और शेष लोगों को अब यह भ्रम हो चला है कि कोरोना हमेशा के लिए चला गया और दोबारा नहीं आने वाला है। लेकिन बात ऐसी नहीं है। कहते हैं कि सावधानी ही बचाव है। आज भी ज्यादातर लोगों को बगैर मास्क पहने भीड़भाड़ वाली जगहों पर एकत्र होकर गपशप मारते देखा जा सकता है। बाजार एरिया में तो स्थिति और विकट देखी जा रही है। नगर में निगम प्रशासन लोगों को कोरोना संक्रमण से बचने के उपाय बताते हुए बिना मास्क वालों पर जुर्माना करके थक चुका है, लेकिन हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर लोग लापरवाही से बाज नहीं आ रहे हैं।
कोरोना महामारी क्या है और उसकी चपेट में आने से क्या-कुछ भयावह परिणाम होते हैं, इसे सबने करीब से देखा और जाना है। लेकिन यह मानव स्वभाव है कि वह बुरे वक्त को भी वक्त बीतने के साथ-साथ भूलते चला जाता है। जिन लोगों ने कोरोना वायरस संक्रमण से उत्पन्न परिस्थितियों का सामना किया है, जिन्होंने अपने आसपास में लोगों को असमय ही बेमौत मरते देखा, केवल वही लोग कोरोना को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं और ये वही लोग हैं जो लॉकडाउन हटने के डेढ़ बाद भी मुंह पर मास्क लगाकर चल रहे हैं।
हालांकि अब कोरोना संक्रमण से बचने के लिए टीकाकरण भी किया जा रहा है, लेकिन टीका लगने के बावजूद सुरक्षा की कोई गारंटी नजर नहीं आ रही है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब वैक्सीन के दो-दो डोज लगने के बाद भी फिर से कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। ऐसे में लोगों को इस बात को अपने दिमाग से निकालना होगा कि हमने टीका लगवा लिया है तो अब दोबारा कोरोना नहीं होगा। इन दिनों जिले में कोरोना के गिनती के मामले भले ही सामने आ रहे हैं, लेकिन इसे हल्के में लेना हमारी सबसे बड़ी भूल होगी, इसलिए जान है तो जहान हैं, इस कहावत को अमल में लाकर खुद भी सुरक्षित रखें और दूसरों को भी कोरोना संक्रमण से बचाने में अपना योगदान दें।
पुलिस के जवान सरकार से परेशान!
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद सरकार ने तमाम वर्ग के लोगों के हितों को ध्यान में रखकर कई नीति-नियम बनाए, कई योजनाएं बनाईं। उनमें से कुछ पर अमल भी हुआ, कुछ पर अमल होना बाकी है। लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं पुलिस विभाग की। छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती दोनों सरकारों ने पुलिस विभाग में कार्यरत कर्मचारियों व जवानों को कभी साप्ताहिक अवकाश देने की नहीं सोची, लेकिन भूपेश सरकार ने पुलिस विभाग में भी साप्ताहिक अवकाश देने की घोषणा कर सबको चौंका दिया था। सरकार की इस ऐतिहासिक घोषणा से पुलिस जवानों और उनके परिवार वालों में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी थी। प्रदेश शासन के गृह विभाग द्वारा इस बारे में पत्र भी जारी किए गए, किंतु उस पर अमल आज पर्यंत नहीं हो पाया। सरकार के ऐलान के बावजूद साप्ताहिक अवकाश का नियम लागू नहीं होने से पुलिस विभाग में सेवारत विशेषकर जवान और छोटे कर्मचारियों में काफी रोष है। इन जवानों का कहना है- सरकार ने जब घोषणा कर दी है तो उस पर अमल भी होना चाहिए। वे भी औरों की तरह इंसान हैं। उनके भी बीबी-बच्चे और परिवार हैं। उन्हें भी अन्य लोगों की तरह पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है। दिनरात सातों दिन सिर्फ ड्यूटी कर-करके वे भी शारीरिक और मानसिक रूप से थक जाते हैं, इसलिए सप्ताह में एक दिन छुट्टी का प्रावधान होना ही चाहिए, ताकि वे भी अपने परिवार के साथ एक दिन का समय बिता सकें।
जिले में राजनीतिक शून्यता हुई दूर
प्रदेश शासन द्वारा हाल ही में निगम, मंडल, आयोग में जिले के नेताओं की नियुक्ति के साथ ही ढाई साल से चली आ रही राजनीतिक शून्यता लगभग दूर हो गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सत्तासीन होने के बाद ढाई साल की अवधि में सिर्फ एक बार राजनांदगांव आगमन सबको याद है। प्रभारी मंत्री रहे मो. अकबर का नांदगांव प्रवास औपचारिक रूप में होते रहा। इससे लोगों को लग रहा था कि अपना जिला इस बार मंत्री विहीन रहेगा, किंतु अब विभिन्न आयोग, निगम, मंडलों में जिले के नेताओं की नियुक्तियां होने के बाद उम्मीद की किरण नजर आ रही है कि अब कुछ नया होगा? हाल ही में जिला कांग्रेस ग्रामीण के अध्यक्ष रहे नवाज खान को जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष, जितेन्द्र मुदलियार को राज्य युवा आयोग का अध्यक्ष, श्रीकिशन खंडेलवाल को खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का सदस्य, निखिल द्विवेदी पर्यटन मंडल के सदस्य, मन्ना यादव को राज्य गौ सेवा आयोग का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया है। इससे कांग्रेस पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में हर्ष देखा जा रहा है, वहीं तमाम प्रयासों के बावजूद कोई पद नहीं मिलने से वंचित कुछ नेताओं में मायूसी है।
बशीर बद्र साहब की प्रसिद्ध
गजल गौर फरमाएं-
सूरते शमा सारी रात जलो
सुबह लेकिन मिशाले गुंचा हंसो।
चांद का दाग देखने वालों
अपने दामन का दाग भी देखो।
चाहे आंखों की रोशनी ले लो
आंसुओं, आज रात भर चमको
ऐ शब गम के जागते तारों
रात काफी है जाओ सो जाओ।
आओ इक दूसरे का गम बांटें
कुछ हमारी सुनो, कुछ अपनी कहो।
कौन जाने कहां बिछड़ जाएं
राह तारीक है, करीब रहो।
वक्त सौ मुन्सिफों का मुन्सिफ है
वक्त आएगा इंतजार करो।
चश्म मांगे हैं आज दिल का लहू
‘बद्र’ बद्र साहब का कोई शेर पढ़ो।।
– दीपक बुद्धदेव