प्रदेश में 15 सालों तक सत्ता से बेदखल रहने वाली कांग्रेस को जनता ने अपने सिर आंखों पर बिठाया, लेकिन सीएम भूपेश बघेल के कार्यकाल के ढाई साल पूरे होने के बाद से इन दिनों अटकलों का बाजार गर्म है। ढाई-ढाई साल के फार्मूले को लेकर नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा एक बार फिर जोर-शोर से चल पड़ी है। पंजाब के बदलाव बाद से छत्तीसगढ़ में भी राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। चंपक ने बाबूलाल से कहा। बाबूलाल बोले- भूपेश बघेल और सिंहदेव बाबा दोनों के ही अपने अपने बयान हैं। बघेल कह रहे हैं कि विधायकों के दिल्ली जाने को मीडिया इतनी हवा क्यों दे रहा है, हर बात को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। विधायक अपनी मर्जी से कहीं जा रहे हैं, तो यह उनका अधिकार है। इसे तूल देने का क्या मतलब? यह छत्तीसगढ़ है पंजाब नहीं। उनके इस बयान के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
चंपक ने बात काटते हुए कहा-बाबूलाल! सिंहदेव का कहना है कि ढाई-ढाई साल के फार्मूले की बात मीडिया में फैली हुई है, जो भी फैसला है वह आलाकमान के पास सुरक्षित है। कितने भी विधायक दिल्ली पहुंच जाएं, लेकिन जो फैसला आलाकमान करेगा वह सभी को मानना पड़ेगा। ऐसे में किसी के दिल्ली जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। यह पहली बार नहीं है कि जब कांग्रेस के विधायक दिल्ली गए हों, इससे पहले भी बड़ी संख्या में कांग्रेस विधायक दिल्ली पहुंचे थे, जिनको हाईकमान ने बैरंग लौटा दिया था. अब एक बार फिर से विधायक दिल्ली कूच कर रहे हैं। हाईकमान का क्या रुख होता है यह देखना होगा? छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन की इस सुगबुगाहट के बीच भूपेश बघेल खेमा खुद को मजबूत बताने की कोशिश कर रहा है, जबकि टीएस सिंहदेव का गुड कॉन्फिडेंट हैं, वो अगले मुख्यमंत्री हो जाएंगे।
नेतृत्व परिवर्तन का असर यहां भी होगा?
बाबूलाल ने कहा-चंपक! क्या तुमको इस बात का जरा भी अंदाज है कि यदि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हुआ तो उसका असर राजनांदगांव में भी हो सकता है। चंपक ने तपाक से बात काटते हुए प्रतिप्रश्र किया-वह कैसे? बाबूलाल बोला- चंपक, क्या तुम्हें याद है नगर निगम में निर्दलीय पार्षदों सहित आधे वरिष्ठ पार्षद महापौर से नाराज चल रहे हैं। निगम में भी इस बात को लेकर सुगबुगाहट है कि यदि प्रदेश में सिंहदेव मुख्यमंत्री बने तो यहां पर भी बदलाव संभव है। चंपक ने फिर सवाल करते हुए कहा- किसको बदलेंगे, महापौर को? बाबूलाल बोला- हां, तुमने ठीक समझा। महापौर मुख्यमंत्री बघेल की खास जो हैं। और जब सिंहदेव मुख्यमंत्री बन जायेंगे तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ‘बाबा’ भी अपनी पसंद के व्यक्ति को मौका दे दें? चंपक बोला- अच्छा, अब कुछ-कुछ समझ आ रहा है तभी तो जब टीएस बाबा का राजनांदगांव आगमन हुआ तो महापौर निवास नहीं गये। इसके पहले जब भी नगर में कोई भी मंत्री या प्रभारी मंत्री का आगमन हुआ तो वह उनका पूरे दमखम के साथ अपने कार्यकर्ताओं को लेकर निवास में स्वागत करती रही। शायद इस बार महापौर राजनीतिक भय के चलते निवास में निमंत्रण देना ठीक नहीं समझा। बाबूलाल ने कहा-चंपक, तुम इशारों को इसी बात से समझो कि हाल ही में मंत्री सिंहदेव बाबा जब राजनांदगांव आए, तब वे शहर की प्रथम नागरिक के निवास की बजाय पार्षद सुनीता फडऩवीस और पूर्व पार्षद शारदा तिवारी के घर मिलने पहुंच गए। चंपक बोला- अब पूरा माजरा थोड़ा-थोड़ा समझ आने लगा है कि नगर निगम में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मुझे याद आ रहा है कि एक माह पहले निगम के करीब 15 पार्षदों को घूमने के लिए बस्तर के जगदलपुर भेजा गया था, किंतु 15 पार्षद उस टूर में शामिल नहीं हुए थे। बाबूलाल ने कहा- निगम के निर्दलीय और आधे वरिष्ठ पार्षदों की महापौर के साथ पटरी नहीं बैठ रही है, इसलिए प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन होने की स्थिति में अपना नगर निगम भी प्रभावित हो सकता है? चंपक बोला- यार, तू कुछ भी बोलता है। शहर वालों को दूसरी बार महिला महापौर मिली है। वह काम भी बढिय़ा कर रही है, फिर बदलाव की बात करना बेमानी है। बाबूलाल बोला- ये मैं नहीं कहा रहा हूं, ये सब सुगबुगाहट नगर निगम और राजनीतिक गलियारे में चल रही है। दोनों की बातों की ध्यान से सुनने के बाद शहरवासी ने कहा- यार, तुम लोग राजनीतिक पचड़े में मत पड़ो। इस पर आपस में लडऩे और बहस करने की भी जरूरत नहीं है। समय होत बलवान, यह कहावत तुम सबने सुनी होगी। हमें तो सिर्फ इंतजार करते हुए देखना है कि आगे-आगे होता है क्या? वैसे भी छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन हो भी गया तो हमें कौन सा मंत्री बनना है? भई सरकार तो आखिर कांग्रेस ही रहेगी ना? बस, इतनी सी बात को लेकर फिजूल में बहस कर रहे हो। मुख्यमंत्री बघेल जब बार-बार बोलते आ रहे हैं कि छत्तीसगढ़, पंजाब नहीं बनेगा। मतलब साफ है कि दोनों राज्यों की राजनीतिक परिस्थितियों में एकरूपता नहीं है। शहरवासी की बातों पर चंपक और बाबूलाल ने सहमति जताते हुए अपने-अपने घरों की राह ली।
जिला अस्पताल पुराने रूप में अच्छा
बसंतपुर नया जिला अस्पताल को लेकर कई बार प्रयोग किए जा चुके हैं। दरअसल यह अस्पताल में अपने मूल स्वरूप में ही जनमानस के लिए बेहतर था, लेकिन समय के साथ-साथ इसमें कई बदलाव किए गए। मेडिकल कालेज की मंजूरी मिलने के बाद जमीन के अभाव में इसे जिला अस्पताल सह मेडिकल कालेज का दर्जा देकर उपकरणों के साथ उपचार और चिकित्सकों की संख्या बढ़ाई गई। प्रशासनिक कसावट के चलते व्यवस्था में काफी हद तक सुधार भी आया। अस्पताल को लेकर समय-समय पर जमकर राजनीति भी हुई। हाल ही में इसे पेंड्री में मेडिकल कालेज के लिए बनाए गए भवन में शिफ्ट किए जाने के बाद से आम जनता की परेशानी बढ़ गई है। मरीजों के उपचार के लिए आधा जिला अस्पताल में तो आधा मेडिकल कालेज में सुविधा होने से लोगों को अब असुविधा हो रही है। हाल ही में स्वास्थ्य मंत्री ने बैठक लेकर मेडिकल कालेज में स्वशासी समिति से ही फंड की जरूरतें पूरी करने की बात कही है। इसका मतलब यही हुआ कि मेडिकल कालेज और जिला अस्पताल को शासन स्तर पर कोई सुविधा नहीं मिलने वाली है। सबको पता है कि जिला अस्पताल शहर के बीच में स्थित होने के कारण लोगों को मरीजों को उपचार के लिए ले जाने पर आसानी होती थी, किंतु अब पांच किमी. की दूरी बढ़ गई है। बहुत सारे स्टाफ को भी कालेज में ही शिफ्ट कर दिया गया है, ऐसे में जिला अस्पताल के एक तरह से बुरे दिन शुरू हो गए हैं। शहरवासी तो चाहता है कि जिला अस्पताल को पुराने रूप में ही रहने दिया जाए और मेडिकल कालेज को अलग रूप दिया जाए।
विपक्ष में भी भाजपा में उत्साह
प्रदेश में सत्ता में नहीं होने के बावजूद इन दिनों प्रमुख विपक्षी दल भाजपा का उत्साह पूरे शबाब पर है। अमूमन यही देखने में आता है कि जिस दल की सरकार होती है, उस दल के लोग काफी उत्साहित नजर आते हैं, लेकिन यहां तो उल्टा ही नजर आ रहा है। कांग्रेस वाले सत्ता-सरकार होने के बावजूद अपना सा मुंह किए बैठे हैं, लेकिन भाजपा वाले प्रदेश में सरकार नहीं होने के बावजूद लगातार सक्रिय हैं। इसका ताजा और बड़ा उदाहरण यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए भाजपा द्वारा गत 17 सितंबर से लगातार सेवा समर्पण कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, सांसद संतोष पांडे, पूर्व सांसद अभिषेक सिंह व मधुसूदन यादव सहित पार्टी के तमाम बड़े नेता शिरकत कर अपने कार्यकर्ताओं की हौसला-अफजाई कर रहे हैं। शहर सहित गांवों में सेवा समर्पण अभियान के तहत छोटे-बड़े आयोजनों के माध्यम से आम जनता को केन्द्र सरकार की योजनाओं से वाकिफ कराने के साथ-साथ लोगों से जुडऩे के प्रयास भी किए जा रहे हैं। दूसरी ओर सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता अपनी ढपली, अपना राग की तर्ज पर चल रहे हैं। इन नेताओं को न तो अपनी सरकार होने का गर्व है और न ही कोई उत्साह। चिंता है तो इसी बात की अपनी ही पार्टी के नामी नेता की टांग कैसे खींची जाए, उसे किस तरीके से डामिनेट किया जाए? वैसे भाजपा में डॉ. रमन सिंह सर्वमान्य नेता हैं, लेकिन कांग्रेस में ऐसे नेताओं का अकाल है। आपसी गुटबाजी और गुटीय लड़ाई के कारण कांग्रेस कई खेमे में बंटी हुई है। खींचतान ऐसी कि ये उसी से नहीं उबर पा रहे हैं तो सरकार की योजनाओं को आम जनता तक पहुंचाने और जनता से जुडऩे की बात तो स्वप्र जैसा ही है। दरअसल देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के नेताओं को अब भाजपा वालों से सीख लेनी चाहिए कि वैचारिक मतभेद के बावजूद वे एक होने का प्रमाण जनता को दें और स्वार्थगत राजनीति से ऊपर उठकर जनहित में सोचें।
वार्ड पार्षद, महापौर के समकक्ष ?
शहरवासी की नजर उस दिन रेल्वे स्टेशन के पास बने प्रवेश द्वार पर पड़ गई। वहां देखा कि प्रवेश द्वार के बांये साइड में महापौर की तस्वीर के ठीक बाजू में वार्ड पार्षद की भी तस्वीर लगाई गई है। दांये साइड मुख्यमंत्री और मंत्री जी की तस्वीर लगाई गई है। महापौर के ठीक बाजू में वार्ड पार्षद की तस्वीर देख शहरवासी को थोड़ा आश्चर्य हुआ। मन में ख्याल आया कि क्या कोई वार्ड पार्षद महापौर के समकक्ष हो सकता है? क्योंकि ऐसा पहली बार देखने को मिला। सबको पता है महापौर शहर का प्रथम नागरिक होता है और पार्षद एक वार्ड विशेष का प्रतिनिधि। ऐसे में दोनों को समकक्ष कैसे माना जा सकता है? शहरवासी ने फिर सोचा कि वह पार्षद वरिष्ठ है यानि शायद तीन-चार बार से चुनाव जीतते आया है, इसलिए उनकी तस्वीर लगा दी गई होगी। लेकिन यह तो कोई बात नहीं हुई कि कोई पार्षद लगातार चुनाव जीतते आ रहा है अथवा महापौर से उसका करीबी रिश्ता है या वह महापौर के गुड बुक में है, इसलिए उसकी तस्वीर महापौर के साथ लगा दी जाए।
शहरवासी ने देखा कि वैसे भी जिस प्रवेश द्वार पर इन नेताओं की तस्वीरें लगाई गई हैं, वह अब काफी जर्जर हो चला है। दूर से देखने से पता नहीं चलता, लेकिन प्रवेश द्वार के पास खड़ा होकर करीब से देखने पर साफ पता चलेगा कि उसकी मरम्मत की सख्त जरूरत है। वहीं पर डिवाइडर में स्ट्रीट लाइट के लिए लगाया गया पोल भी काफी झुक गया है, ऐसे में कभी भी कोई हादसा हो सकता है। इसलिए नगर निगम को चाहिए कि सिर्फ तस्वीरें लगाकर अच्छा दिखाने की बजाय जर्जर हो रहे प्रवेश द्वार की मरम्मत कराएं।
नए जिले को लेकर तैयारी जोरों पर
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिले के वनांचल स्थित मोहला-मानपुर-चौकी को मिलाकर नया जिला की सौगात दी है। नए जिले के निर्माण को लेकर युद्धस्तर पर प्रशासनिक तैयारियां शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि आगामी गणतंत्र दिवस यानि 26 जनवरी को नया जिला अपने अस्तित्व में आ जाएगा। नए जिले में कलेक्टर, एसपी, कोर्ट सहित तमाम सरकारी दफ्तरों के संचालन हेतु काम चल रहा है। नया जिला तीन ब्लाक मोहला, मानपुर और अंबागढ़ चौकी को मिलाकर बनाया गया है। राज्य शासन द्वारा यहां सेटअप के अनुसार अधिकारी-कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर काम चल रहा है। इन पदों की भर्ती के लिए हाल ही में पदोन्नत बहुत से अधिकारियों, विशेषकर पुलिस विभाग के अधिकारियों को रोके रखा गया है, ताकि उनकी पदस्थापना नए जिले में की जा सके। वैसे यह अहम बात है कि मोहला को नया जिला बनाने को लेकर कोई बड़ा जन आंदोलन भी नहीं हुआ। कोई तामझाम भी नहीं हुआ। हां, इतना जरूर है कि लंबे अरसे से लोगों में इस बात की सुगबुगाहट रही थी कि वनांचल के लोगों को जिला मुख्यालय तक आने-जाने में काफी दूरी तय करनी पड़ती है, इसलिए मोहला को नया जिला बनाना जनहित में होगा। क्षेत्रीय विधायक इंद्रशाह मंडावी ने मौके की नजाकत को भांपते हुए सत्ता सरकार और मुख्यमंत्री से करीबी होने का लाभ उठाते हुए मोहला-मानपुर, चौकी को नया जिला बनाने में कामयाबी हासिल कर ली, नहीं तो नए जिले को लेकर चर्चा भाजपा शासन काल में भी होती रही, पर बात आगे नहीं बढ़ी और न ही उस क्षेत्र का कोई बड़ा नेता सामने नहीं आया।
विभागों में जब चाहे, तब तबादले
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद यह तो तय हो चुका है कि कोई भी अधिकारी कब तक कहां पदस्थ रहेगा और कब तबादला हो जाएगा, यह कहना कठिन है। क्योंकि भूपेश सरकार में बारहों महीने अधिकारी-कर्मचारियों के आए दिन तबादले होते आ रहे हैं। जब चाहे तब तबादले के पीछे कारण चाहे जो भी हो, लेकिन इससे प्रशासनिक कामकाज जरूर प्रभावित हो रहा है। जब कभी कोई नया अधिकारी आता है तो वह अपने विभागीय कामकाज सहित अपने क्षेत्र को ठीक से समझ नहीं पाए रहता कि उसे फिर कहीं रवाना कर दिया जाता है। एक दौर था जब पूरे प्रदेश में अधिकारी-कर्मचारियों के तबादले के लिए नियम बनाए गए थे। हर साल जून-जुलाई माह में ही थोक में तबादले हुआ करते थे, चाहे वह प्रशासनिक स्तर पर हो या संबंधित की पसंद के अनुरूप, लेकिन अब नया ट्रेंड शुरू हुआ है बारहमासी तबादले का।
हाल ही में शहर के पीएचई मेकेनिकल के ईई आर.के. शर्मा जी रिटायर हो गए। अब उनकी जगह लेने वाला कोई नहीं था तो राज्य शासन ने पीएचई रायपुर के ईई टोप्पो को ही राजनांदगांव का प्रभार दे दिया गया। उन्हें यहां पीएचई का कार्यपालन अभियंता बनाया गया है। श्री टोप्पो पहले से ही रायपुर सहित पांच जिलों का कार्य देख रहे हैं। ऊपर से राजनांदगांव की भी जिम्मेदारी। विभाग वाले बताते हैं कि पीएचई के एक खंड में औसतन पांच जिले आते हैं। यानि कि राजनांदगांव पीएचई मेकेनिकल में राजनांदगांव सहित दुर्ग, बालोद, कवर्धा, बेमेतरा भी शामिल हैं, जिनका कामकाज श्री टोप्पो को रायपुर खंड के पांच जिलों केसंभालना होगा, जो आसान नहीं है। कायदे से तो यही होना चााहिए कि किसी विभागीय अनुभवी अधिकारी को इसका कामकाज सौंपा जाए, ताकि विभागीय योजनाओं का संचालन सुचारू रूप से हो सके। और यदि ऐस अधिकारियों की कमी है तो विभाग में ही पहले से कार्यरत वरिष्ठों को प्रभार देने के साथ ही नई भर्ती की जाए, तभी इस समस्या से मुक्ति मिल सकती है, वरना एक साथ दस जगहों के कामकाज की जिम्मेदारी देने से योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही संचालित होती रहेंगी और उसका लाभ आम जनता को नहीं मिलने वाला है।
चलते-चलते, चंद लाइनें-
राजनीति का काम समाज के लिए,
विकास और उन्नति के लिए नीतियां बनाना है
लेकिन नेताओं ने राजनीति को
राज करने की नीति तक सीमित कर दिया है।
इन नेताओं से कह दो
अगर सियासत करनी है तो इमानदारी से करो
जनता ने जो जिम्मेवारी सौंपी है
उसे तुम जिम्मेवारी से करो
पालिटिकल स्टेटस जिसका ऊंचा होगा,
सियासत का पहुंचा हुआ खिलाड़ी होगा।
इस राजनीति में वही ईमानदार मिलेगा,
जो राजनीति में अभी अनाड़ी होगा।।
– शहरवासी