हमारे शहर की एक विशिष्ट पहिचान है। एक विशिष्ट भूतकाल है। यह शहर ही हमारे शहरवासियों का वतन है। इस कारण यह शहर शहरवासियों को प्राण से भी प्यारा है। किन नागरिकों को क्यों यह शहर अच्छा लगता है? इनके कारणों पर मैं जाना नहीं चाहता। कई शहरवासियों की मीठी स्मृतियां इस शहर के साथ जुड़ी हुई हैं। इसके विपरीत कई रईसों की कड़वी यादें भी इस शहर से लिपटी हुई हैं। शहर का इतिहास रियासतकालीन भी गौरवशाली है। खेल, संगीत, राजनीति, व्यापार-उद्योग, शैक्षणिक क्षेत्रों में भी शहर का भूतकाल अविस्मरणीय है।
अब बात यह कि, हमारे शहर का हकीकत में भाग्योदय जब हुआ, जब पहली मर्तबे डॉ. रमन सिंह ने दिसम्बर 2003 में सी.एम. पद के गोपनीयता की शपथ ली, किन्तु उस समय वे विधायक नहीं थे। 1999 के लोकसभा चुनाव में विजयी होकर राजनांदगांव क्षेत्र से सांसद और फिर अटल सरकार में केन्द्र में मंत्री बने। बाद में उन्होंने हाईकमान के निर्देश पर केन्द्रीय उद्योग राज्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद का जिम्मा संभाला था। उन्होंने एक सांसद के रूप में संगठन का काम किया तथा संघर्ष कर भाजपा की चुनावी रणनीति के तहत पार्टी के अधिकांश उम्मीदवारों को जीत के स्वाद की अनुभूति करवायी।
चूंकि, सी.एम. बनने के बाद विधायक निर्वाचित होना भी जरूरी होता है। इसके लिए डोंगरगांव विधानसभा का उपचुनाव लड़ा और विजयी होकर विधानसभा में भाजपा के विधायक के रूप में चुने गए। उसके बाद के अगले विधानसभा चुनाव के पड़ाव में राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और सम्मानजनक मतों से जीते और वर्तमान में भी वे राजनांदगांव के विधायक हैं।
बाबूलाल अविराम डॉ. रमन सिंह की ‘तारीफ करूं क्या मैं उसकी’ की तर्ज पर बोले जा रहा था। इसी कड़ी में बोला- डॉ. रमन छत्तीसगढ़ के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री रहे हैं। तत्कालिन रमन सरकार की विकासीय योजनाओं का क्रियान्वयन तथा चुनावी घोषणाओं पर अमल होने लगा था। नतीजतन उनके नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव लड़ा गया और प्रदेश की 11 में से 10 लोकसभा क्षेत्र में भाजपा का परचम लहराया था। फिर तो पीछे मुडक़र देखने की जरूरत ही नहीं पड़ी। प्रत्येक जिला स्तरीय नगरीय निकायों, पंचायत व सहकारिता चुनावों में भाजपा सफलता की ओर अग्रसर होते रही। छत्तीसगढ़ भगवामय हो गया, जो एक समय कांग्रेस का गढ़ था। दूसरे विधानसभा चुनाव, फिर तीसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा हाईकमान ने प्रत्याशियों के चयन के लिए 90 विधानसभाओं में रमन सिंह को फ्री-हैण्ड कर दिया था। फलस्वरूप रमन सरकार ने हैट्रिक लगाई थी।
लेकिन फिर राजनैतिक गलियारों से जो बातें छनकर बाहर आयी, वह यह थी कि चौथी मर्तबे के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में रमन को ‘फ्री-हैण्ड’ नहीं किया गया। जिसका ही नतीजा था कि भाजपा को करारी शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा। जिसका एक अन्य कारण भी यह था कि भ्रष्ट नौकरशाहों व सक्रिय माफिया तंत्र के गलबहिया लेते संबंध पर वे मजबूत नकेल डालने में अपेक्षित रूप से सफल नहीं हुवे। किन्तु, इसे कतई नकारा नहीं जा सकता कि रमन सरकार के 15 वर्षीय कार्यकाल में छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में अकल्पनीय विकास ने साकार रूप लिया।
चम्पक ने कहा – ठीक कहते हो बाबूलाल। उनके मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में विकास के लिए तरसते इस शहर ने विकास की बुलन्दियों को छू लिया। राजनांदगांव का तो ऐसा कायाकल्प हुआ कि शहर से बाहर गए लोग जब अपने शहर लौटे तो शहर की सुन्दरता को देख अचम्भित हो गए। अनेक प्रमुख मार्गों का चौड़ीकरण, चौपाटी, ऊर्जा पार्क, एस्ट्रोटर्फ न्यू लुक में स्टेडियम, अंतर्राष्ट्रीय हाकी स्टेडियम, भव्य आडिटोरियम, मेडिकल कालेज, मातृ शिशु अस्पताल, कृषि महाविद्यालय, लवलीहुड कालेज, आई.टी.आई., बीपीओ सेन्टर, गांधी सभागृह और अनेक श्रृंखलाबद्ध विकास शहर में हुवे। हर साल दो साल के अंतराल में सडक़ों आदि का मेन्टेनेस होता था। जरूरतमंद लोगों की उन तक सीधी पहुंच थी। कईयों के साथ उनका निजी सम्पर्क था। जनहित के मुद्दों पर उनकी सकारात्मक सोच की ही फलश्रुति कि वे आज भी क्षेत्र में लोकप्रिय हैं। उनके समय में नगर निगम व ग्राम पंचायतों में विकास कार्यों के लिए करोड़ों रूपए रहते थे।
छ.ग. रमन मुक्त हुआ और अब राजनांदगांव रमन मुक्त करना है, ऐसा कांग्रेस नेता ने क्यों कहा?
शहर के इस ‘माइलस्टोन’ विकास के बावजुद गत दिनों प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक विभाग के अमिन मेमन जब यहां आए थे, तब उन्होंने कहा था कि छत्तीसगढ़ तो रमनमुक्त हो गया है और अब राजनांदगांव को रमन मुक्त करना है, तो क्या बाबूलाल यह संभव है? भाई मेमन का इस तरह का बयान कोई चकित करने वाला नहीं है। प्रदेश स्तर के नेता हैं तो भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह पर बयानबाजी करना उनका राजनैतिक कर्तव्य भी है, चम्पक ने जवाब में कहा। रही बात रमन सिंह की तो जनता के बीच जिसमें अल्पसंख्यक वर्ग के प्राय: अधिकांश नेताओं से भी उनका सम्पर्क रहा है, फिर वे कांग्रेसी ही क्यों न हो? ‘सर्वधर्म समभाव’ के मार्ग पर चलते हुवे दलगत राजनीति से परे अपने सी.एम. कार्यकाल में उन्होंने उन तक पहुंचने वाले सभी को सहयोग दिया है। फार एक्जाम्पल, शहर के गौरव ‘आई.बी. ग्रुप’ के अनेक उद्योगों को शिखर तक पहुंचाने में उनकी सरकार का बड़ा योगदान है। आई.बी. ग्रुप का विस्तार-विकास कारपोरेटर कम्पनी के रूप में राजनांदगांव जिले से लेकर देश के विभिन्न अनेक राज्यों तक तो गया है। हजारों करोड़ों का कम्पनी का टर्नओवर है। शहर स्थित उनके उद्योग में हजारों को उनकी योग्यता अनुसार रोजगार प्राप्त है। डॉ. रमन सिंह के ऐसे प्रत्येक क्षेत्रों में, हर वर्ग के लिए किए गए कार्यों व उल्लेखनीय योगदान को वोटर्स भूला पाए यह संभव नहीं है।
वैसे डीयर बाबूलाल, अमिन ने ऐसा क्यों कहा कि छत्तीसगढ़ रमन मुक्त हो गया है और राजनांदगांव को रमन मुक्त करना है? जबकि, कहना यह चाहिए था कि छत्तीसगढ़ भाजपा मुक्त हो गया है और अब राजनांदगांव को भाजपा मुक्त करना है। ठीक कह रहा हूं न? हां डीयर चम्पक तुमने बिल्कुल ठीक कहा। अमिन ने रमन मुक्त इसलिए कहा होगा कि शायद उनके दिल में भाजपा बाबत साफ्ट कार्नर होगा। राजनीति में तो सब कुछ संभव है।
उद्योग आफत है या वरदान ? नियमों से भी क्या उद्योग चलते हैं?
भीमराव बागड़े एक चिरपरिचित वरिष्ठ मजदूर नेता हैं। जिले के उद्योगपतियों को लगता है कि कितनी अनहद परेशानियों को झेलते हुवे लाखों-करोड़ों की लागत से उद्योग खड़ा करते हैं। कईयों को रोजगार देते हैं। कभी फायदा भी होता है, तो कभी नुकसान भी होता है। औद्योगिक गृहों के मालिकों का ध्येय तो स्वाभाविक रूप से लाभ अर्जित करना होता है। इसके लिए वे सही-गलत को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं रहते। इंजीनियरिंग श्रमिक संघ महासचिव भीमराव बागड़े विवाद में आए उद्योगों में मजदूरों के हित में प्राय: खड़े पाए जाते हैं। जिले की क्रेस्ट कम्पनी फिलहाल सुर्खियों में है। जोरातराई (मनगटा) स्थित उक्त उद्योग के 600 श्रमिकों को पौने दो साल से वेतन नहीं मिला और वे वेतन पाने अब जिला प्रशासन का डोर बेल बजा रहे हैं। बकौल मजदूर नेता बागड़े के्रस्ट स्टील एण्ड पावर में कुल 800 मजदूर हैं और 200 मजदूरों को नियमित वेतन मिल रहा है और 600 मजदूर वेतन से वंचित हैं। उद्योग मालिक का कथन सामने अभी नहीं आया है।
उद्योग लगाना, चलाना और फिर मुनाफा कमाना आज के जमाने में बहुत बड़ा साहसिक काम है। फिर भी उद्यमी साहस करते हैं। इनमें सफल वे ही हो पाते हैं, जिनके पीछे सरकार होती है, सत्ता दाएं-बाएं होती है, मनी पावर-मसल पावर भी आगे-पीछे चलते हैं। वैसे जिले में, नगरीय क्षेत्र में अनेक लघु, मध्यम व वृहद उद्योग हैं। इनमें से कई उद्योग प्रदूषण भी फैला रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण विभाग की मानिटरिंग में रूचि नहीं है। क्यों नहीं है? इसे गैस करें। जोरातराई, टेड़ेसरा, फरहद (सोमनी), भोथीपार, नाथु नवागांव (तह. डोंगरगांव), बांकल व राजनांदगांव में स्थित उद्योगों के उद्योगपतियों में किन्ही ने अपने उद्योग परिसर में तो किन्ही ने उद्योग परिसर के बाहर दूरस्थ अंचलों में पेड़ लगाए हंै। फिर भी प्रदूषण तो फैल रहा है।
जिले में लगभग 2600 पंजीकृत उद्योग हैं। जिन उद्योगों का शुद्ध लाभ 5 करोड़ या उससे अधिक हो, टर्न ओवर 1000 करोड़ या उससे अधिक हो, नेटवर्क 500 करोड़ या उससे अधिक हो, ऐसे स्थापित उद्योग को शुद्ध लाभ का कम से कम दो प्रतिशत सी.एस.आर. मद याने जनहित के कार्यों में खर्च करना जरूरी होता है। सी.एस.आर. मद में भी बड़ा खेल हो जाता है। उद्योगों में श्रम कानून का उल्लंघन, प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण अधिनियम का उल्लंघन सामान्य बात है। राजनांदगांव में बी.एन.सी. मिल का अस्तित्व समाप्त हो गया है। किन्तु, उसके ही समकक्ष आई.बी. ग्रुप की अनेक औद्योगिक इकाईयां हैं, जो दीर्घ (वृहद) उद्योग के अंतर्गत आता है, जहां स्थानीय हजारों लोगों को रोजगार प्राप्त है। बाकी तो जिले में अनेक सूक्ष्म उद्योग हैं। जिनमें से कई नाम बदल-बदल कर उद्योग विभाग की मिलीभगत से लाखों की सब्सिडी का अनुचित फायदा उठाते हैं।
कवि प्रदीप की लिखी चंद पंक्तियां-
वाह मेरे मालिक क्या तेरी लीला!
तूने क्या कमाल…
तुने रचा एक अदभुत प्राणी,
जिसका नाम इन्सान,
जिसकी नन्ही जान के भीतर,
भरा हुआ तूफान।
इस जग में इंसान के दिल को,
कौन सका पहचान?
इसमें ही शैतान छिपा है,
इसमें ही भगवान
बड़ा गजब का है ये खिलौना,
इसकी नहीं मिसाल।
मालिक क्या तेरी लीला!
तूने किया कमाल।
- शहरवासी