नारायणपुर के गढ़बेंगाल के आदिवासी कलाकार जयराम मंडावी ने बनाई थी यह प्रतिकृति, जर्मनी के म्युजियम में लगाई गई है बस्तर की आदिवासी जनजाति के आराध्य आंगादेव की प्रतिकृति
अजय श्रीवास्तव। जर्मनी के वेस्टवाल म्यूजियम की जनजातिय कला दीर्घा में बस्तर की आदिवासी जनजाति के आराध्य आंगादेव की प्रतिकृति प्रदर्शित की गई है। आंगादेव की इस प्रतिकृति के साथ यहां केनवास पर बनाई गई एक चित्र को लगाया गया है । इस चित्र में एक बाज पक्षी व नाग सांप का चित्रण है। यह दोनों ही कलाकृतियां नारायणपुर के गढ़बेंगाल निवासी जयराम मंडावी ने बनाई है। जयराम मंडावी ने बताया कि गढ़बेंगाल इलाके में उनके परिवार के गिनती के ही लोग इस कला को जानते व बनाते हैं। उनकी इस कला को करीब से देखने व सीखने करीब दस साल पहले जर्मनी से रेगिना राय यहां आईं थी। वे कुछ दिन तक यहां रुक कर इस कला को सीखती रहीं। जर्मनी वापस पहुंचने के बाद भी उन्हें इस कला की याद वापस खींच लाई।
जर्मनी के म्युजियम में लगाई गई है बस्तर की आदिवासी जनजाति के आराध्य आंगादेव की प्रतिकृति
विश्व की वेदियां थीम पर आयोजित प्रतियोगिता : जर्मनी ने साल 2001 में विश्व की वेदियां थीम पर कला व शिल्प प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में विश्व भर के जनजातिय कलाकार आमंत्रित थे। इसी प्रतियोगिता के लिए नारायणपुर के गढ़बेंगाल के कलाकारों को भी जर्मनी बुलाया गया। मयूजियम के तरफ से आए आमंत्रण को स्वीकार करने के बाद जयराम व उनके साथी बुटुराम मंडावी ने अपनी विशिष्ट कला का बनाकर अंजाम तक पहुंचाया।
हवाईजहाज में फोल्ड कर चढ़ाए गए आंगादेव – आंगादेव की प्रतिकृति विशालकाय होती है। इसमें दो मोटी बल्लियां के सहारे एक पालकीनुमा आकृति बनी हुई होती है। इसे चार श्रद्धालु अपने कंधे पर उठाते हुए पूजा अनुष्ठान में शामिल होते हैं। इसका वजन भी सौ किलेा से ज्यादा होता है। गढ़बेंगाल के मंडावी परिवार ने इस आंगा को तय सीमा में बनाया। इसके पूरा होने के बाद इसे ले जाने की समस्या खड़ी हो गई। हवाई जहाज में इतने वजन वाली कलाकृति को ले जाना टेढ़ी खीर थी। आखिरकार इन कलाकारों ने तय किया कि इसे अलग अलग भाग में रखकर ले जाया जाए। किसी तरह से इस आंगादेव को फोल्ड कर हवाई जहाज से नई दिल्ली के रास्ते जर्मनी ले जाया गया। वहां एक सप्ताह तक इसे कला समीक्षकों के लिए प्रदर्शित किया गया। आखिरकार म्यूजियम ने इसे खरीद लिया। इस आंगादेव की साथ् ही जयराम की पेंटिंग भी इस संग्रहालय में बस्तर की आदिवासी परंपरा को सम्मानित किए हुए है।